सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता को लेकर सदस्यों में मदभेद है : चीन
लावरोव के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि विश्व निकाय में सुधार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में मतभेद हैं.
दिल्ली:
चीन ने भारत और ब्राजील की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावे को कमतर करने का प्रयास करते हुए कहा कि इस मुद्दे पर बड़े मदभेद है और इसके साथ ही ' पैकेज समाधान' का समर्थन किया. उल्लेखनीय है कि रूस के विदेशमंत्री सर्जेइ लावरोव ने बुधवार को दिल्ली दौरे के दौरान सुरक्षा परिषद में भारत और ब्राजील की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया था. लावरोव के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि विश्व निकाय में सुधार के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों में मतभेद हैं. चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से एक है और उसके पास वीटो शक्ति है.
संयुक्त राष्ट्र के शक्तिशाली निकाय सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता की भारत की कोशिश को चीन वर्षों से आम सहमति नहीं होने का हवाला देकर टाल रहा है जबकि अन्य चार स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने दिल्ली की सदस्यता का समर्थन किया है. चीन के नजदीकी और मित्र देश पाकिस्तान ने भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध किया है. संयुक्त राष्ट्र के सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए मिलकर काम करने और दबाव बनाने के लिए भारत, जर्मनी, ब्राजील और जापान ने जी-4 समूह बनाया है.
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चीन ने हालांकि, वर्ष 2021-22 के लिए सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के लिए भारत का समर्थन किया है. गेंग ने गुरुवार को कहा कि सुरक्षा परिषद में सुधार महत्वपूर्ण है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के दीर्घकालिक विकास और सभी सदस्यों के हित से जुड़ा है. उन्होंने कहा, ' सभी पक्षों के बीच इस मुद्दे पर बड़े मतभेद हैं और सुधार पर आम सहमति नहीं है. इसलिए चीन सदस्यों देशों के साथ मिलकर पैकेज समाधान की तलाश के लिए काम करेगा ताकि सभी पक्षों के हितों को संवाद और परामर्श के जरिये समायोजित किया जा सके.'
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गेंग ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय सामूहिक सुरक्षा प्रतिक्रिया का केंद्र है और इसको कुशल बनाने के लिए कोई भी सुधार संयुक्त राष्ट्र घोषणापत्र के अनुसार होना और विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व वाला होना चाहिए ताकि छोटे और मध्यम आकार के देश भी सुरक्षा परिषद की निर्णय प्रक्रिया में शामिल हो सके.
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