सैन्य और आर्थिक शक्ति का धौंस जमाने वाले चीन के खिलाफ लामबंद होती दुनिया
शी दुनिया को यही जताना चाहते हैं कि महाशक्ति के रूप में अंतत: चीन का उदय हो चुका है, परंतु दुनिया की दिलचस्पी इसमें अधिक है कि यह उभार किस प्रकार हो रहा है?
highlights
- दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता निरंतर जारी है
- चीन पड़ोसियों से सीमा विवाद कर उनकी जमीन पर कब्जा करता है
- चीन अपने छोटे पड़ोसी देशों को परेशान करता रहा है
नई दिल्ली:
चीन दुनिया भर में अपनी सैन्य और आर्थिक शक्ति का प्रदर्शन करता रहा है. साथ ही वह अपने पड़ोसी देशों से सीमा विवाद पैदा कर उनकी जमीन पर कब्जा करता रहा है. वर्तमान में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग घरेलू सत्ता पर बड़ी तेजी से अपनी पकड़ को और मजबूत बना रहे हैं. इसके साथ ही वह चीन की बहुप्रचारित व्यापक शक्ति के प्रदर्शन में भी जुटे हैं. चीनी तिकड़में जितनी आक्रामक हो रही हैं, रणनीतिक विस्तार के लिए बीजिंग की महत्वाकांक्षाएं उतनी ही जटिल होती जा रही हैं. शी दुनिया को यही जताना चाहते हैं कि महाशक्ति के रूप में अंतत: चीन का उदय हो चुका है, परंतु दुनिया की दिलचस्पी इसमें अधिक है कि यह उभार किस प्रकार हो रहा है?
कुछ दिन पहले ही चीन ने आसियान देशों के साथ संवाद संबंधों के तीन दशक पूर्ण होने पर एक विशेष वर्चुअल कार्यक्रम आयोजित किया. उसमें शी ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को आश्वासन देने का प्रयास किया कि चीन अपने छोटे पड़ोसी देशों को कभी परेशान नहीं करेगा.
सम्मेलन में उन्होंने जोर देकर कहा, ‘चीन हमेशा से आसियान का अच्छा पड़ोसी, मित्र और सहयोगी था, है और रहेगा.’ चीनी राष्ट्रपति यह जताने में लगे थे कि चीन आसियान की एकता और स्थायित्व का हिमायती होने के साथ-साथ क्षेत्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय मामलों में उसकी व्यापक भूमिका का समर्थन भी करता है.
चूंकि चीन ने आसियान देशों को कोरोना संकट से निपटने के लिए वित्तीय संसाधन और टीके उपलब्ध कराए थे, इसलिए जब उनके साथ तीस वर्षो के कूटनीतिक एवं आर्थिक रिश्तों का जश्न मनाने का मौका हो तो उस अवसर पर डराने-धमकाने जैसे मुद्दों की चर्चा बेमानी लगती है. इसके बावजूद सच यही है कि उसके सभी रिश्तों में दादागीरी-दबंगई का भाव है. आसियान देश भी छिटपुट तरीकों से उससे छुटकारे की फिराक में हैं.
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आसियान नेता चीन के इस दबाव में नहीं झुके कि म्यांमार सैन्य तानाशाही के मुखिया को सत्र में भाग लेने की अनुमति दी जाए और म्यांमार को एक गैर-राजनीतिक प्रतिनिधि भेजने पर बाध्य किया जाए. सम्मेलन के बाद जारी संयुक्त बयान में अंतरराष्ट्रीय कानूनों के अनुपालन की महत्ता को भी रेखांकित किया गया.
इनमें संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून संधि (1982) को सम्मान के साथ-साथ दक्षिण चीन सागर में मुक्त आवाजाही और उसके ऊपर से उड़ानों को अनुमति देने की प्रतिबद्धता भी दोहराई. यह हिंदू-प्रशांत को लेकर आसियान के नजरिये के अनुरूप ही है, जिसका एक भौगोलिक इकाई के रूप में चीन लगातार विरोध करता आया है. इस क्षेत्र में चीन को लेकर उसके कुछ निकट सहयोगियों के नरम रवैये का जमीनी स्तर पर शायद ही कुछ असर दिखे.
दक्षिण चीन सागर में चीनी आक्रामकता निरंतर जारी है. छल-प्रपंच से जुड़ी अपनी तिकड़मों के जरिये वह विवादित जल क्षेत्र में अपने हवा-हवाई दावों को दोहरा रहा है. उसकी इस रणनीति के खिलाफ पीड़ित देशों के पास अभी तक कोई कारगर तोड़ नहीं. विवादित क्षेत्रों में चीन सैन्य दस्तों का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहा है. यहां तक कि इलाकों पर कब्जे के ऐसे निर्लज्ज प्रयासों के खिलाफ आसियान देशों को एक संयुक्त मोर्चा बनाना मुश्किल पड़ रहा है.
जिस दिन शी कह रहे थे कि चीन छोटे पड़ोसी देशों को तंग नहीं करेगा, उससे कुछ दिन पहले ही उनके तटरक्षक दस्ते विवादित जल क्षेत्र में फिलीपींस सेना की आपूर्ति से जुड़ी नौकाओं की राह रोकने में लगे थे. वे जहाजों पर वाटर कैनन का इस्तेमाल कर रहे थे. जहां फिलीपींस ने सम्मेलन में इस मुद्दे को उठाया, वहीं अन्य देशों ने मौन रहना ही मुनासिब समझा.
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