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रूस-यूक्रेन युद्ध से उपजी महंगाई ने 7.1 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से नीचे धकेला

यूएनडीपी ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि युद्ध शुरू होने के तीन महीनों के भीतर ही 5.16 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए.

Updated on: 09 Jul 2022, 09:09 AM

highlights

  • संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने जारी की रिपोर्ट
  • कोरोना लॉकडाउन से भी ज्यादा गंभीर प्रभाव पड़ा युद्ध का

संयुक्त राष्ट्र:

4 फरवरी को शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) ने वैश्विक समीकरण बदल कर रख दिए हैं. यही नहीं अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की ओर से थोपे गए प्रतिबंधों और रूसी प्रतिक्रिया बतौर तेल और गेहूं की अन्य देशों को आपूर्ति से अभूतपूर्व आर्थिक संकट भी उत्पन्न हो गया है. ऐसे में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की रिपोर्ट इस संकट पर गहराई से प्रकाश डालती है. इस रिपोर्ट में कहा गया कि यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी हमले के बाद खाद्य पदार्थों और ऊर्जा की कीमतों में भारी वृद्धि से दुनिया भर में 7.1 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए हैं. कह सकते हैं कि रूस-यूक्रेन युद्ध से जिस तेजी से लोग प्रभावित हुए, वह महामारी के चरम के दौर की आर्थिक पीड़ा से भी अधिक गंभीर मसला है.

कोरोना के 18 महीने बनाम यूक्रेन पर हमले के 3 माह
यूएनडीपी ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि युद्ध शुरू होने के तीन महीनों के भीतर ही 5.16 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे आ गए. आलम यह है कि ये लोग प्रति दिन 1.90 डॉलर या उससे भी कम पैसे में जीवन यापन कर रहे हैं. इसके साथ ही विश्व की कुल जनसंख्या का करीब नौ प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा के नीचे आ गया है. इसके अलावा करीब दो करोड़ लोग रोजाना 3.20 डॉलर से कम पैसे में जीवन यापन करने पर मजबूर हैं. यूएनडीपी के मुताबिक फरवरी के अंत में यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद के सिर्फ तीन महीनों में 7.1 करोड़ से अधिक लोगों ने गरीबी को महसूस किया, जबकि कोरोना संक्रमण के चरम के दौरान करीब 18 महीने के लॉकडाउन में 12.5 करोड़ लोगों ने इस दंश को झेला था.

गेहूं, चीनी और तेल की कीमतों ने निकाला तेल
कम आमदनी वाले देशों में परिवार अपनी घरेलू आय का 42 प्रतिशत हिस्सा भोजन पर खर्च करते हैं, लेकिन पश्चिमी देशों द्वारा रूस के खिलाफ प्रतिबंध लगाए जाने से ईंधन और मुख्य खाद्य पदार्थों जैसे गेहूं, चीनी और खाना पकाने के काम आने वाले तेल की कीमतें बढ़ गईं हैं. यूक्रेन के बंदरगाहों पर रूसी कब्जे या हमले से कम आय वाले देशों को अनाज निर्यात नहीं कर पाने से भी कीमतों में और वृद्धि हुई. इससे लाखों लोग जल्दी ही गरीबी रेखा से नीचे चले गए.