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अफ़ग़ानिस्तान पर वार्ता में तालिबान के प्रतिनिधियों को निमंत्रण दे सकता है रूस ?  

मॉस्को में इस वार्ता से पहले 12 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर ही जी20 देशों का एक सम्मेलन होने वाला है. इस सम्मेलन में तालिबान के सत्ता हासिल करने के बाद देश को मानवीय त्रासदी से बचाने पर चर्चा होनी है.

Updated on: 08 Oct 2021, 11:01 PM

highlights

  • 12 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर ही जी20 देशों का एक सम्मेलन होने वाला है
  • अफ़ग़ानिस्तान में रूस के दूत ज़ामिर काबुलोव ने कहा अफ़ग़ान वार्ता में तालिबान के प्रतिनिधियों को निमंत्रण  
  • रूस ने तालिबान की हुकूमत को अभी तक मान्यता नहीं दी है

 

नई दिल्ली:

तालिबान को लेकर अब विश्व समुदाय का नजरिया बदलने लगा है या अफगानिस्तान के भविष्य को लेकर उसके पड़ोसी देशों की चिंता के मद्देनजर वैश्विक समुदाय नई रणनीति-कूटनीति को आगे बढ़ा रहा है. 20 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान पर होने वाली अंतरराष्ट्रीय वार्ता में तालिबान का भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए रूस तालिबान को निमंत्रण देने जा रहा है. इस अहम बातचीत में चीन, भारत, ईरान और पाकिस्तान भी सम्मिलित होंगे. इस योजना के पीछे अफ़ग़ानिस्तान में रूस के दूत ज़ामिर काबुलोव हैं. काबुलोव ने गुरुवार को ये जानकारी रूसी पत्रकारों को दी. पत्रकारों ने  ज़ामिर काबुलोव से पूछा  कि क्या रूस इस अफ़ग़ान वार्ता में कट्टरपंथी संगठन तालिबान के प्रतिनिधियों को निमंत्रण देने वाला है? इस सवाल के जवाब में काबुलोव ने कहा, "हां."

हालांकि ज़ामिर काबुलोव ने मॉस्को में होने वाली अफ़ग़ान वार्ता के बारे में विस्तार से कुछ नहीं बताया है. वहीं रूसी समाचार एजेंसी टीएएएस के अनुसार ज़ामिर काबुलोव ने माना कि रूस तालिबान को न्योता देने वाला है, लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया है कि संगठन के किस स्तर के प्रतिनिधियों को वार्ता में शामिल करने की योजना की जा रही है.

मॉस्को में होने वाली इस वार्ता से पहले 12 अक्टूबर को अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर ही जी20 देशों का एक सम्मेलन होने वाला है. इस सम्मेलन में तालिबान के सत्ता हासिल करने के बाद देश को मानवीय त्रासदी से बचाने पर चर्चा होनी है.

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इससे पहले मॉस्को मार्च में अफ़ग़ानिस्तान पर एक और अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस की मेजबानी कर चुका है. इसमें रूस, अमेरिका, चीन और पाकिस्तान ने हिस्सा लिया था. इस कॉन्फ्रेंस के बाद जारी किए गए साझा बयान में अफ़ग़ानिस्तान में लड़ रहे पक्षों से शांति समझौते और हिंसा कम करने की अपील की गई थी.

इसी कॉन्फ्रेंस में तालिबान से मार्च से सितंबर के महीनों तक कोई हमला नहीं करने की अपील की गई थी. इसके बाद ही अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान से 20 साल बाद अपने सैनिकों को वापस बुलाने की प्रक्रिया शुरू की थी.

बुधवार को संयुक्त राष्ट्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने अफ़ग़ानिस्तान के मानवीय संकट की ओर बढ़ने को लेकर चेताया था. इस सिलसिले में ज़ामिर काबुलोव से पूछा गया कि क्या रूस अफ़ग़ानिस्तान की मदद करेगा?

तो उन्होंने कहा, "रूस ऐसा करेगा लेकिन इसे कैसे अंजाम दिया जाएगा, इस पर कोई फ़ैसला नहीं लिया गया है. इस पर ग़ौर किया जा रहा है."

रूस ने तालिबान की तरफ़ बातचीत का हाथ तो बढ़ाया है लेकिन अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान की हुकूमत को अभी तक मान्यता नहीं दी है. रूस में तालिबान अभी तक एक चरमपंथी संगठन के रूप में प्रतिबंधित है.

सोमवार को ज़ामिर काबुलोव ने कहा था कि तालिबान के शासन के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों पर पुनर्विचार की प्रक्रिया से अलग नहीं रहेगा.

अगस्त में काबुल पर तालिबान का नियंत्रण स्थापित होने के बाद जब एक तरफ़ ज़्यादातर पश्चिमी देश अपने राजनयिक को अफ़ग़ानिस्तान को हटाने और दूतावास खाली कराने के लिए जल्दबाज़ी कर रहे थे तो रूस ने काबुल में अपना दूतावास खुला रखा था.

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अफ़ग़ानिस्तान के घरेलू मामलों में दूसरे देशों की दखलंदाज़ी की पहले ही आलोचना कर चुके हैं. उन्होंने कहा था कि अफ़ग़ानिस्तान पर सोवियत संघ के हमले से मॉस्को ने सबक लिया है.