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Omicron पर शोध से बढ़ी चिंताएं, अधिकांश टीके नहीं है कारगर

वहीं शोध के अनुसार अन्य टीके एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और चीन और रूस में निर्मित टीके शामिल हैं जो ओमीक्रॉन के प्रसार को रोकने के लिए काफी नहीं है. अधिकांश देशों ने इन टीकों के इर्द-गिर्द अपने टीकाकरण कार्यक्रम बनाए हैं.

Updated on: 20 Dec 2021, 08:48 AM

highlights

  • भारत से लेकर दुनिया में ओमीक्रॉन का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है
  • केवल फाइजर और मॉडर्ना टीके ही ओमीक्रॉन वेरिएंट में कारगर हैं
  • ये दोनों टीके दुनिया के अधिकांश लोगों के लिए अभी भी उपलब्ध नहीं है

वाशिंगटन:

भारत से लेकर दुनिया में ओमीक्रॉन का खतरा बढ़ता जा रहा है, लेकिन इस बीच आई खबर से लोगों की चिंताएं बढ़ गई है. अब तक किए गए प्रारंभिक अध्ययनों के अनुसार, अधिकांश टीके ओमीक्रॉन संक्रमणों से रक्षा करने में ज्यादा सक्षम नहीं है. प्रारंभिक शोध से पता चलता है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में उपयोग किए जाने वाले कोविड-19 टीके अत्यधिक तेजी से फैल रहे ओमीक्रॉन को लेकर प्रभावी नहीं है, हालांकि बाजार में आए अभी तक जितने भी टीके उपलब्ध हैं उनमें केवल फाइजर और मॉडर्ना टीके ही हैं जो बूस्टर डोज के साथ इस संक्रमण को रोकने में काफी हद तक कारगर है, जबकि ये टीके दुनिया के अधिकांश लोगों के लिए अभी भी उपलब्ध नहीं है.

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वहीं शोध के अनुसार अन्य टीके एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन और चीन और रूस में निर्मित टीके शामिल हैं जो ओमीक्रॉन के प्रसार को रोकने के लिए काफी नहीं है. अधिकांश देशों ने इन टीकों के इर्द-गिर्द अपने टीकाकरण कार्यक्रम बनाए हैं. दुनिया के अरबों लोगों का अभी भी टीकाकरण नहीं हुआ है. ऐसे में कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लोगों के लिए अभी भी चिंता का विषय है. महामारी से निपटने के लिए अलग-अलग देशों की क्षमता में असमानता है जो गहरी चिंता का विषय है.


फाइजर और मॉडर्ना टीके काफी हद तक कारगर

अब तक के अधिकांश सबूत प्रयोगशाला प्रयोगों पर आधारित हैं. फाइजर और मॉडर्ना टीके नई एमआरएनए तकनीक का उपयोग करते हैं, जिसने अब तक सभी वेरिएंट्स से संक्रमण के खिलाफ सबसे अच्छी सुरक्षा प्रदान की है. चीनी वैक्सीन सिनोफार्म और सिनोवैक जो विश्व स्तर पर दिए गए सभी टीके का लगभग आधा हिस्सा बनाते हैं जो ओमीक्रॉन से सुरक्षा प्रदान करने में सहायक नहीं है. चीन में अधिकांश लोगों ने इन्हीं टीकों को लिया है. ब्रिटेन में एक प्रारंभिक अध्ययन में पाया गया कि ऑक्सफोर्ड-एस्ट्राजेनेका वैक्सीन ने टीकाकरण के छह महीने बाद ओमीक्रॉन संक्रमण को रोकने की कोई क्षमता नहीं दिखाई है. भारत में 90 प्रतिशत टीकाकरण वाले लोगों ने कोविशील्ड टीका प्राप्त किया है. इसका व्यापक रूप से अफ्रीका में भी उपयोग किया गया है, जहां वैश्विक कोविड-19 वैक्सीन कार्यक्रम COVAX ने 44 देशों को इसकी 67 मिलियन खुराक वितरित की है.

शोधकर्ताओं ने कहा- अब तक डेल्टा से कम खतरनाक है ओमीक्रॉन

शोधकर्ताओं का अनुमान है कि रूस का स्पुतनिक वी वैक्सीन, जिसका उपयोग अफ्रीका और लैटिन अमेरिका में भी किया जा रहा है वह ओमीक्रॉन के खिलाफ बेहतर तरीके से कारगर नहीं है. जॉनसन एंड जॉनसन वैक्सीन की मांग अफ्रीका में बढ़ रही थी, क्योंकि इसकी सिंगल-शॉट डिलीवरी कम-संसाधन सेटिंग्स में वितरित करना आसान बनाती है, लेकिन यह भी ओमीक्रॉन संक्रमण को रोकने में ज्यादा प्रभावी नहीं है. सेंटर फॉर इंटरनेशनल एंड स्ट्रैटेजिक स्टडीज में ग्लोबल हेल्थ पॉलिसी सेंटर के निदेशक जे. स्टीफन मॉरिसन ने कहा कि ओमीक्रॉन अब तक डेल्टा वेरिएंट की तुलना में कम घातक प्रतीत होता है, लेकिन यह सुरक्षा ओमीक्रॉन को वैश्विक व्यवधान पैदा करने से रोकने के लिए पर्याप्त नहीं होगी.   


लैटिन अमेरिका के लोग चीन औ रूसी टीकों पर निर्भर

लैटिन अमेरिका का अधिकांश हिस्सा चीनी और रूसी टीकों और एस्ट्राजेनेका पर निर्भर है. चिली विश्वविद्यालय में इम्यूनोलॉजी के प्रोफेसर मारियो रोज़मब्लैट ने कहा कि 90% से अधिक चिली के लोगों के पास एक टीके की दो खुराकें थीं, लेकिन इनमें से अधिकांश कोरोनवैक, सिनोवैक टीके थे. उन्होंने कहा कि उच्च टीकाकरण कवरेज के साथ प्रारंभिक रिपोर्टों में कहा गया है कि ओमीक्रॉन गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनता है, जिससे देश में सुरक्षा की झूठी भावना पैदा हो रही है. वैश्विक वैक्सीन गठबंधन गावी के सीईओ डॉ. सेठ बर्कले ने कहा कि ओमीक्रॉन के खिलाफ टीकों की प्रभावशीलता के बारे में निष्कर्ष निकालने से पहले अधिक डेटा की जरूरत है और त्वरित टीकाकरण को महामारी को लेकर फोकस जारी रखना चाहिए.