भारत के खिलाफ जहर उगल रहे एर्दोगान संग कर रहा ऊपर वाला इंसाफ
ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं की तर्ज पर भारत के खिलाफ जमकर जहर उगलने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगान के खिलाफ अब उनके ही देश में संकट के बादल छा रहे हैं.
highlights
- एर्दोगान की पार्टी के खिलाफ आधा दर्जन विपक्षी पार्टियों की धड़ेबंदी
- ओपिनियन पोल में एर्दोगान की पार्टी को 32 फीसद वोट
- एर्दोगान की सत्ता को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है
नई दिल्ली:
ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नहीं की तर्ज पर भारत के खिलाफ जमकर जहर उगलने वाले तुर्की के राष्ट्रपति रिसेप तैयप एर्दोगान के खिलाफ अब उनके ही देश में संकट के बादल छा रहे हैं. बताते हैं कि 2023 में तुर्की में राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं और एर्दोगान की पार्टी जस्टिस एंड पार्टी के खिलाफ कम से कम आधा दर्जन विपक्षी पार्टियों ने मजबूत धड़ेबंदी कर ली है. यही नहीं, तालिबान सरकार को समर्थन और पाकिस्तान को शह देने की वजह से भी उनकी लोकप्रियता में भारी गिरावट दर्ज की गई है. कम से कम ओपिनियन पॉल्स तो यही संकेत दे रहे हैं कि उनके राजनीतिक भविष्य के लिए आने वाला समय सही नहीं है.
प्राप्त जानकारी के मुताबिक ओपिनियन पोल्स में जस्टिस एंड पार्टी का वोट शेयर लगातार घटता दिखाई दे रहा है. गौरतलब है कि 2019 के स्थानीय चुनावों में भी एर्दोगन के प्रभुत्व को झटका लगा था. अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ मूरत येतकिन के मुताबिक तुर्की में विपक्ष कुछ ऐतिहासिक करने की कोशिश कर रहा है. ये लोग सत्ताधारी पार्टी को हटाने के लिए एकजुट हो रहे हैं. सबा अखबार के संपादकीय में दिलेक गुंगोर लिखते हैं कि जस्टिस एंड पार्टी अपने काडर को प्रेरित करने में नाकाम होती दिख रही है और यह रिसेप तैयप एर्दोगान के लिए खतरे की घंटी है.
इसके पीछे के कारणों की चर्चा करते हुए विशेषज्ञ बेइंतहा बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी, कोरोना वायरस संक्रमण, आर्थिक संकट और जंगल की आग से निपटने की आलोचना को जिम्मेदार बता रहे हैं. इन सभी कारणों से एर्दोगन सरकार के लिए समर्थन कम हो रहा है. हाल ही में कराए गए ओपिनियन पोल में एर्दोगान की जस्टिस एंड पार्टी को लगभग 32 फीसद वोट मिले. सिर्फ जस्टिस पार्टी ही नहीं उनकी सहयोगी पार्टी की लोकप्रियता में भी कमी आई है. ऐसे में चिंता जताई जा रही है कि यदि ओपिनियन पोल्स जैसे नतीजे चुनाव नतीजे में भी आते हैं तो एर्दोगान को सत्ता से बेदखल होना पड़ सकता है. राजनीतिक मामलों के जानकारों की मानें तो अगर विपक्षी गठबंधन एर्दोगान पर निशाना साधते रहे और अपनी नीतियों को लेकर जनता को जागरूक करने में सफल रहे तो एर्दोगान की सत्ता को गंभीर खतरा पैदा हो सकता है.
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