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पुतिन की 30 साल पुरानी कसक, यूक्रेन सहित कहीं और भी है नजर

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने बाल्टिक देशों को भी चिंता में डाल दिया है जो 2004 में नाटो में शामिल हुए थे.

Updated on: 26 Feb 2022, 04:13 PM

highlights

  • यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद कई पड़ोसी देशों पर चिंता की लकीरें खिचीं
  • सिर्फ यूक्रेन पर हमले करना लक्ष्य नहीं, आगे भी है रूस की नजर
  • यूक्रेन हमले के बाद एस्टोनिया, लाटविया और लिथुआनिया जैसे देश चिंतित

नई दिल्ली:

Russia-Ukraine War : यूक्रेन पर रूस (Russia) के हमले के बाद कई पड़ोसी देशों पर चिंता की लकीरें खिच आई हैं. भले ही रूस को पश्चिमी देशों से कड़े प्रतिबंधों और अलग-अलग प्रतिक्रिया की धमकियों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन सोवियत विघटन से अलग हुए कुछ देशों के सुरक्षा और राजनयिक विशेषज्ञों ने कहा है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) सिर्फ यूक्रेन में हमला करने के बाद चुप नहीं बैठेंगे. पुतिन के हालिया भाषणों और बयानों से संकेत मिलता है कि यूक्रेन रूस के कुछ पुराने गौरव को बहाल करने की उनकी बड़ी महत्वाकांक्षा का हिस्सा हो सकता है. जिस तरह से शीत युद्ध की समाप्ति ने सोवियत संघ और रूस के वैश्विक प्रभाव को समाप्त किया था, उससे वह बहुत आहत हुए हैं.

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यूक्रेन पर आक्रमण के साथ पुतिन अब मानते हैं कि रूस और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के बीच उनके सुरक्षा हित को आगे बढ़ाने और महान रूसी सपने को आगे बढ़ाने के लिए उनके पास एक रणनीतिक बफर है. नाटो कई सोवियत संघटकों (पूर्वी यूरोप में अपने पड़ोस में) को अमेरिका-प्रभुत्व वाले सैन्य गठबंधन में लाने के लिए तेजी से विस्तार कर रहा है. विशेषज्ञों ने कहा है कि यूक्रेन पर आक्रमण करने के बाद उत्साहित पुतिन शीत युद्ध के बाद की सुरक्षा और सीमा व्यवस्था को फिर से परिभाषित करने की कोशिश जारी रख सकते हैं. रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन को लेकर पहले ही पश्चिमी देशों को चेतावनी देते हुए संकेत दे चुके थे. पुतिन ने कहा था कि यूक्रेन रेड लाइन है और अगर नाटो ने इसे किसी भी सूरत में पार किया तो अंजाम ठीक नहीं होगा.

कुछ और रणनीति पर काम कर रहा होगा रूस

यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के वरिष्ठ शोध सहयोगी व्लादिमीर पास्तुहोव ने कहा है कि पुतिन अयातुल्ला (ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता) की तरह दिखते हैं, जो इतिहास की किताबों में अपना स्थान सुनिश्चित करने के लिए धार्मिक उत्साह दिखा रहे हैं. पास्तुहोव ने बीबीसी को बताया, रूस यहीं नहीं रुक सकता है. वह यूक्रेन से आगे जाने के लिए सब कुछ करेगा. यूक्रेन में अमेरिका के पूर्व राजदूत विलियम टेलर ने भी कहा है कि उत्साहित रूस के केवल सोवियत काल के घटक यूक्रेन में रुकने की संभावना नहीं है. टेलर ने एक साक्षात्कार में कहा, पोलैंड, रोमानिया और चेक गणराज्य देश भी तनाव में आ चुके होंगे और वे बहुत चिंतित होंगे क्योंकि वे यूक्रेन में रूसी टैंकों प्रवेश के बाद रूस कुछ और रणनीति पर काम कर रहा होगा.

बाल्टिक देश भी चिंतित

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण ने बाल्टिक देशों को भी चिंता में डाल दिया है जो 2004 में नाटो में शामिल हुए थे. खासकर तब जब बाल्टिक देशों ने वर्तमान संघर्ष में यूक्रेन का समर्थन किया है. कई रिपोर्टों से पता चलता है कि कई एस्टोनियाई, लातवियाई और लिथुआनियाई जो कभी सोवियत रूस के नियंत्रण में थे, उन्हें डर है कि वे अगला रूसी निशाना हो सकते हैं. चैथम हाउस में रूस और यूरेशिया कार्यक्रम के प्रमुख जेम्स निक्सी ने कहा है कि बाल्कन अब कमजोर है. बाल्कन पर पश्चिमी देशों की उतनी नजर नहीं है और इस प्रकार अगले रूसी लक्ष्य हो सकते हैं. उदाहरण के लिए, हंगरी और सर्बिया पहले से ही कमजोर है. मोल्दोवा में एक रूसी भाषी अलगाववादी क्षेत्र जिसे ट्रांस-डेनिएस्टर कहा जाता है, एक और फ्लैशपॉइंट हो सकता है क्योंकि वहां कम्युनिस्ट नेतृत्व रूस समर्थक है. नाटो ने मोल्दोवा की स्थिति को चिंताजनक बताया है.  

जब रूस ने जॉर्जिया पर किया था आक्रमण

जब रूस ने वर्ष 2008 में एक और पूर्व सोवियत गणराज्य जॉर्जिया पर आक्रमण किया, तो उसने कहा कि जॉर्जियाई नरसंहार से ओस्सेटियन को बचाने के लिए बल के उपयोग की आवश्यकता थी. हालांकि, बाद में इसका ज्यादा कानूनी औचित्य नहीं मिला. वर्ष 2014 में रूस ने क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया जो काला सागर और आज़ोव सागर के बीच यूक्रेन क्षेत्र का एक हिस्सा है. यूक्रेन एक सैन्य हमले करने करने में विफल रहा और रूस ने ऐसा नहीं करने के आश्वासन के बावजूद उस पर आक्रमण किया. यह और ट्रांस-काकेशस क्षेत्र में रूस की बढ़ती सैन्य उपस्थिति भी अजरबैजान के कुछ विशेषज्ञों को परेशान कर रही है. अजरबैजान ने नाटो या यूरोपीय संघ की सदस्यता के लिए कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई. पुतिन अन्य पड़ोसियों और बेलारूस जैसे पूर्व सोवियत राज्यों के प्रति भी आक्रामक रहे हैं. पुतिन का मानना ​​​​है कि रूस एक साम्राज्य है और यूक्रेन की तरह बेलारूस कोई राज्य नहीं है और रूस के साथ फिर से जुड़ना चाहिए. पुतिन ने यूक्रेन में प्रवेश करने के लिए बेलारूस के क्षेत्र का उपयोग किया है. 

उत्साहित हैं सोवियत कमांडर

समाचार रिपोर्टों ने तत्कालीन सोवियत सेना के कई पूर्व कमांडरों के हवाले से कहा है कि यूक्रेन रूस में लौटने वाला एकमात्र देश नहीं होगा. पूर्व कमांडरों ने कहा है कि पोलैंड, बुल्गारिया, हंगरी और कुछ अन्य भी ऐसा ही करेंगे और उनके अनुसार यूक्रेन की रणनीति के समान ही उनकी अपनी रणनीति होगी. रूस की रणनीति इसके तहत विद्रोही प्रभावित क्षेत्रों की स्वतंत्रता को मान्यता देना, वहां सेनाएं भेजना, जनमत संग्रह कराना और रूस की सीमा का विस्तार करना शामिल है. पूर्व सोवियत सेना के एक पूर्व कमांडर को यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि 1990 का दशक हमें मार नहीं सका, इसने हमें मजबूत बनाया. नाटो को पीछे हटना होगा. 

अमेरिका के साथ युद्ध का तत्काल कोई खतरा नहीं

यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद नाटो पूर्वी यूरोप में अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है, लेकिन यूक्रेन में प्रवेश करने की उसकी कोई योजना नहीं है. अमेरिका ने यह भी कहा है कि जब तक किसी नाटो सदस्य देश पर हमला नहीं होता है, तब तक उसकी सेना रूसियों को निशाना नहीं बनाएगी. हालांकि, यह रूस के पड़ोस  पोलैंड और रोमानिया में अपनी सैन्य उपस्थिति को मजबूत कर रहा है. लिथुआनियाई विदेश मंत्री गेब्रियलियस लैंड्सबर्गिस ने चेतावनी दी है कि हमले के तहत किसी भी सदस्य का बचाव करने के लिए सभी सहयोगियों को अनिवार्य करने वाला नाटो चार्टर पुतिन के लिए एक धमकी देना होगा, लेकिन उन देशों की लड़ने की इच्छा होनी चाहिए. यह यूरोप के लिए एक लड़ाई है. निश्चित रूप से पुतिन आगे जाना चाहेंगे.


क्या प्रतिबंधों से रूस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा ?

पुतिन ने संकेत दिया है कि वह पूर्वी यूरोप में अपने सुरक्षा हितों को आगे बढ़ाने के लिए पश्चिम देशों की ओर से लगाए गए प्रतिबंधों को सामना करेंगे. उनका मानना ​​​​है कि क्रीमिया प्रायद्वीप के विनाश के बाद 2014 में प्रतिबंधों के साथ प्रभावित रूस की वित्तीय प्रणालियों ने समायोजन किया है. रूसी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा ने बीबीसी को बताया, हम जानते थे कि प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा. पश्चिम ने बार-बार इस हथियार का इस्तेमाल किया है. उन्होंने कहा, प्रतिबंधों का कोई मतलब नहीं है. पश्चिमी देशों में रूस की प्रतिष्ठा के बारे में क्या है? पश्चिम की प्रतिष्ठा के बारे में क्या है ? इसका कोई मतलब नहीं है. शोधकर्ता व्लादिमीर पास्तुहोव भी कहते हैं कि पश्चिमी देशों को लगता है कि प्रतिबंध गेम-चेंजर होंगे, लेकिन पुतिन पूरी तरह से दृढ़ हैं. 

सस्पेंस और तनाव

अभी तक इस बारे में बहुत कम स्पष्टता है कि चीजें कैसे आगे बढ़ेंगी. क्रेमलिन ने कहा है कि पुतिन ही तय करेंगे कि यूक्रेन में सैन्य अभियान कितने समय तक चलेगा. लिलिया शेवत्सोवा ने बीबीसी को बताया, पुतिन का पसंदीदा हथियार सस्पेंस बनाए रखना है. वह तनाव बनाए रखना पसंद करते हैं. शेवत्सोवा ने पुतिन की रूस पुस्तक लिखी है.

लड़ाई की जड़ 30 साल पुरानी

रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई की जड़ 30 साल पुरानी है. दोनों देश पहले एक ही देश सोवियत संध के हिस्सा थे. वर्ष 1991 में कम्युनिस्ट शासन के खत्म होने के बाद सोवियत संघ का विघटन हो गया. कई नए देश का निर्माण हो गया। उस समय यूक्रेन भी एक नया देश बन गया.