7 सालों में और कट्टर हुआ पाकिस्तान, शरिया को एकमात्र कानून बनाए जाने के पक्ष में हर तीन में दो पाकिस्तानी: सर्वे
गैलप पाकिस्तान और गिलानी रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि पाकिस्तान की 67 फीसदी आबादी देश में एकमात्र कानून के तौर पर शरिया कानून की पक्षधर हैं।
highlights
- हर तीन में से दो पाकिस्तानी देश में शरिया कानून को लागू किए जाने के पक्ष में हैं
- गैलप पाकिस्तान और गिलानी रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में हुआ खुलासा
- पाकिस्तान की 67 फीसदी आबादी देश में एकमात्र कानून के तौर पर शरिया कानून की पक्षधर हैं
New Delhi:
हर तीन में से दो पाकिस्तानी देश में शरिया कानून को लागू किए जाने के पक्ष में हैं। गैलप पाकिस्तान और गिलानी रिसर्च फाउंडेशन की तरफ से किए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि पाकिस्तान की 67 फीसदी आबादी देश में एकमात्र कानून के तौर पर शरिया कानून की पक्षधर हैं।
सर्वे यह बता रहा है कि पाकिस्तान तेजी से कट्टर समाज बनता जा रहा है। करीब सात साल पहले किए गए सर्वे में शामिल 51 फीसदी लोगों ने कहा कि देश में शरिया ही एकमात्र कानून होना चाहिए।
वहीं महज पांच फीसदी लोगों ने कहा कि वह देश में शरिया कानून को लागू किए जाने के पक्ष में नहीं है। लेकिन अब पाकिस्तान में शरिया चाहने वाले लोगों की आबादी बढ़कर 67 फीसदी हो गई है।
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सर्वे में पाकिस्तान के पंजाब, सिंध, बलोचिस्तान और खैबर पख्तूनवा प्रांत की महिलाओं और पुरुषों को शामिल किया गया। इनमें से 67 फीसदी लोगों ने कहा कि देश में एकमात्र कानून शरिया होना चाहिए वहीं 24 फीसदी लोगों ने माना कि देश में शरिया होना चाहिए लेकिन यही एकमात्र कानून नहीं होना चाहिए।
जबकि महज पांच फीसदी लोगों ने शरिया को खारिज किया जबकि 4 फीसदी लोगों ने कहा उनका इस पर कोई विचार नहीं है।
2010 में हुए इस सर्वे में 51 फीसदी पाकिस्तानियों ने कहा था कि शरिया ही देश का एकमात्र कानून होना चाहिए वहीं 30 फीसदी लोगों ने कहा था शरिया होना चाहिए लेकिन एकमात्र कानून नहीं होना चाहिए। जबकि 8 फीसदी लोगों ने शरिया को खारिज किया था वहीं 11 फीसदी लोगों ने कहा था उनका इस मामले में कोई विचार नहीं है।
सर्वे के मुताबिक पाकिस्तान में कट्टरता में तेजी से इजाफा हुआ है। इस दौरान 16 फीसदी आबादी पहले के मुकाबले कट्टर हुई है जो देश में शरिया कानून की हिमायती है। वहीं ऐसे लोगों की संख्या में 6 फीसदी की कमी आई है जो देश में शरिया कानून के पक्षधर नहीं है।
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