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परवेज मुशर्रफ का विमान कुछ देर और आसमान में रहता तो सीधा होता मौत से सामना

एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल ने 12 अक्‍टूबर 1999 को श्रीलंका से वापस आ रहे परवेज मुशर्रफ़ के विमान को उतरने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया था. इसे पहले ओमान और फिर भारत डायवर्ट किया गया था.

Updated on: 17 Dec 2019, 03:39 PM

नई दिल्‍ली:

पाकिस्तान में 1999 में जब प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने जब आर्मी चीफ जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ को हटाने की कोशिश की तो सत्ता का संघर्ष छिड़ गया. एयर ट्रैफ़िक कंट्रोल ने 12 अक्‍टूबर 1999 को श्रीलंका से वापस आ रहे परवेज मुशर्रफ़ के विमान को उतरने की इजाज़त देने से इनकार कर दिया था. इसे पहले ओमान और फिर भारत डायवर्ट किया गया, लेकिन बाद में मुशर्रफ़ के वफ़ादार सैनिकों ने जब कराची हवाईअड्डे को अपने कब्जे में लिया तब जाकर उनका विमान हवाई पट्टी पर उतरा. इसमें 200 लोग सवार थे और तेल लगभग ख़त्म हो चुका था. कुछ देर बाद ही परवेज मुशर्रफ ने तख़्तापलट की घोषणा की.

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नवाज शरीफ सरकार ने इस तख्तापलट को रोकने की पुरजोर कोशिश की थी. आर्मी चीफ परवेज मुशर्रफ को पद से बर्खास्त करने के साथ-साथ श्रीलंका से आ रहे उनके विमान को पाकिस्तान में न उतरने देने की शरीफ सरकार की प्लानिंग धरी की धरी रह गई. उससे पहले ही मुशर्रफ के वफादार सीनियर ऑफिसर्स ने 12 अक्टूबर 1999 को प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों को गिरफ्तार कर लिया.

तख्तापलट की नींव भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और नवाज़ शरीफ के बीच चल रही शान्ति वार्ता के दौरान ही पड़ गई थी. फरवरी 1997 में शरीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री निर्वाचित हुए थे. साल खत्म होने से पहले ही उन्होंने सेना प्रमुख (सीओएएस) जनरल जहांगीर करामात के कार्यकाल की अवधि घटाते हुए उन्हें हटा दिया और उनके स्थान पर जनरल परवेज मुशर्रफ को सेना प्रमुख बना दिया. 1998 के परमाणु परीक्षणों से उनकी लोकप्रियता बढ़ी. इससे उत्साहित होकर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की ओर से की जा रही शांति पहल के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की, जो सेना के साथ उनके मतभेदों का कारण बनी.

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फरवरी, 1999 में की गई लाहौर शांति पहल को परवेज मुशर्रफ ने कारगिल युद्ध से नाकाम कर दिया. अमेरिका के दबाव और चीन की सलाह पर पाकिस्तान की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर होना पड़ा. तब तक जनरल मुशर्रफ और प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के रिश्ते बुरी तरह बिगड़ चुके थे. शरीफ को इसका अहसास हो गया था और जनरल परवेज मुशर्रफ को बदलने का विफल प्रयास अक्टूबर 1999 के तख्तापलट के साथ उनकी बर्खास्तगी का कारण बना था.