पाकिस्तान की लोकतांत्रिक संस्थाएं एक नए खतरे का सामना कर रही हैं। ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने यह दावा किया है।
8 मार्च को विपक्षी राजनीतिक दलों ने पाक प्रधानमंत्री इमरान खान को हटाने के लिए संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने की मांग की थी। सरकारी अधिकारियों ने हिंसा की धमकी देकर और संसद के दो सदस्यों (सांसदों) को हिरासत में लेकर इसका जवाब दिया। स्थिति को लेकर बात की जाए तो खतरनाक टकराव का जोखिम है।
पाकिस्तान के संविधान के तहत, यदि नेशनल असेंबली के अधिकांश सदस्य अविश्वास प्रस्ताव के लिए मतदान करते हैं, तो प्रधानमंत्री पद पर बने रहना इमरान खान के लिए संभव नहीं रह पाएगा। सरकार ने ऐलान किया है कि यह वोटिंग 28 मार्च को होगी।
10 मार्च को, राजधानी इस्लामाबाद में पुलिस ने सांसदों के अपार्टमेंट में धावा बोल दिया और कई अन्य विपक्षी कार्यकर्ताओं के साथ दो विपक्षी सांसदों को हिरासत में ले लिया। पुलिस ने आरोप लगाया कि विपक्षी जमीयत-उलेमा-ए-इस्लाम एफ (जेयूआई-एफ) के स्वयंसेवकों ने बिना अनुमति के अपार्टमेंट में प्रवेश किया था। सभी को घंटों के भीतर रिहा कर दिया गया।
चार दिन बाद, संघीय मंत्री गुलाम सरवर खान ने एक आत्मघाती हमले में विपक्ष को उड़ा देने की धमकी दी। प्रधानमंत्री के एक विशेष सहायक शाहबाज गिल ने कहा कि प्रधानमंत्री खान की पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के किसी भी ऐसे सदस्यों की, जो खान के खिलाफ वोट करते हैं, उन गद्दारों की तस्वीरें शहरों में प्रदर्शित की जाएंगी, ताकि लोग उन्हें पहचान सकें।
सूचना मंत्री फवाद चौधरी ने सुझाव दिया कि दस लाख समर्थक मतदान के दिन इस्लामाबाद आएंगे और चेतावनी दी कि जो कोई भी खान के खिलाफ मतदान करना चाहता है, उसे संसद भवन के अंदर और बाहर इन लोगों से गुजरना होगा।
जवाब में, विपक्षी पाकिस्तान डेमोक्रेटिक एलायंस (पीडीएम) ने अपने स्वयं के समर्थकों से इस्लामाबाद में इकट्ठा होने का आह्वान किया, जिससे संभावित हिंसक टकराव के लिए मंच तैयार हो चुका है।
एचआरडब्ल्यू ने कहा कि सरकार की जिम्मेदारी है कि वह संविधान को बनाए रखे और अविश्वास प्रस्ताव पर धमकी या हिंसा के बिना मतदान की अनुमति दे।
इसने आगे कहा कि सरकार और विपक्ष दोनों को अपने समर्थकों को एक कड़ा संदेश देना चाहिए कि वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया को न बिगाड़ें या डराने-धमकाने या अन्य आपराधिक कृत्यों के माध्यम से वोटिंग को प्रभावित न करें। संसदीय मतदान एक प्रमुख लोकतांत्रिक सिद्धांत है और इसे बाधित करने का प्रयास प्रतिनिधि सरकार और कानून के शासन के लिए महत्वपूर्ण संस्था को और कमजोर करता है।
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Source : IANS