20 साल में दूसरी बार इंटरनेशनल कोर्ट में भारत से हारा पाकिस्तान, पहले 14-2 अब 15-1 से
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने अपना फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव (Kulbhushan Jadhav) की फांसी पर रोक लगा दी.
नई दिल्ली:
कुलभूषण जाधव (Kulbhushan Jadhav) के मामले में भी पाकिस्तान ने मुंह की खाई है. आज से 20 साल पहले भी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) में भारत से पाकिस्तान मात खा चुका है. फर्क सिर्फ इतना है कि उस बार वह 14-2 से मात खाया था और इस बार 15-2 से उसे शिकस्त मिली है. बता दें बुधवार को हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (International Court of Justice) ने अपना फैसला सुनाते हुए कुलभूषण जाधव (Kulbhushan Jadhav) की फांसी पर रोक लगा दी. साथ ही जाधव को काउंसलर एक्सेस की भी सुविधा देने का आदेश दिया. कोर्ट के इस फैसले पर पाकिस्तान ने ऐतराज जताया लेकिन आईसीजे ने इसे खारिज कर दिया. 16 में से 15 जज, भारत के हक में थे. कोर्ट ने 15-1 से भारत के पक्ष में फैसला सुनाया. 16 जज में एक भारतीय और एक पाकिस्तान जज भी शामिल है.
10 अगस्त 1999 को वायुसेना ने गुजरात के कच्छ में पाकिस्तान नेवी के एयरक्राफ्ट एटलांटिक को मार गिराया था. इसमें सवार सभी 16 सैनिकों की मौत हो गई थी. पाकिस्तान का दावा था कि एयरक्राफ्ट को उसके एयरस्पेस में गिराया गया. उसने इस मामले में भारत से 6 करोड़ डाॅलर मुआवजा मांगा था.
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आईसीजे की 16 जजों की बेंच ने 21 जून 2000 को 14-2 से पाकिस्तान के दावे को खारिज कर दिया था. इसके बाद यह दूसरा मौका है, जब पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय अदालत में हार हुई है और कोर्ट ने उससे जाधव की फांसी की सजा पर पुनर्विचार करने को कहा है.
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कोर्ट के अध्यक्ष सोमालिया के जस्टिस अब्दुलकावी अहमद यूसुफ ने फैसला पढ़ा. उन्होंने 42 पन्नों के फैसले में कहा कि पाकिस्तान जब तक पाकिस्तान प्रभावी ढंग से अपने फैसले की समीक्षा और पुनर्विचार नहीं कर लेता है, तब तक कुलभूषण की फांसी पर रोक रहेगी.
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आईसीजे ने कहा- पाकिस्तान ने कुलभूषण के साथ भारत की बातचीत और कॉन्स्युलर एक्सेस के अधिकार को दरकिनार किया. पाकिस्तान ने भारत को कुलभूषण के लिए कानूनी प्रतिनिधि मुहैया कराने का मौका नहीं दिया. पाक ने विएना संधि के तहत कॉन्स्युलर रिलेशन नियमों का उल्लंघन किया. अंतरराष्ट्रीय कानूनी सलाहकार रीमा ओमेर ने कहा- कोर्ट ने यह भी कहा कि पाकिस्तान आर्टिकल 36(1) यानी कॉन्स्युलर एक्सेस दिए जाने के उल्लंघन के संदर्भ में अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.
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