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पाकिस्तान का नापाक चेहरा फिर हुआ बेनकाब, हिंदुओं के जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ विधेयक नहीं किया पेश

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सिंध की सरकार ने प्रांतीय विधानसभा में एक बार फिर जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ विधेयक को पेश नहीं होने दिया.

Updated on: 09 Oct 2019, 10:00 PM

नई दिल्ली:

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए आवाज उठाने में सबसे आगे रहने का दावा करने वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) की सिंध की सरकार ने प्रांतीय विधानसभा में एक बार फिर जबरन धर्म परिवर्तन के खिलाफ विधेयक को पेश नहीं होने दिया. पाकिस्तानी मीडिया में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, ग्रैंड डेमोक्रेटिक अलायंस (जीडीए) के विधायक नंदकुमार गोकलानी ने मंगलवार को सिंध विधानसभा में आपराधिक कानून (अल्पसंख्यकों का सरंक्षण) विधेयक सौंपा और सरकार से आग्रह किया कि उनके इस निजी विधेयक को विचार और पारित करने के लिए सदन में पेश किया जाए. लेकिन, सरकार की प्रतिक्रिया पूरी तरह से ठंडी रही. यह दूसरी बार है जब सिंध सरकार ने संबंधित विधेयक को ठंडी प्रतिक्रिया दी है.

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नवंबर 2016 में सिंध विधानसभा ने इस आशय का विधेयक पारित कर वाहवाही बटोरी थी. यह विधेयक नाबालिग लड़कियों, विशेषकर हिंदू समुदाय की लड़कियों के जबरन धर्म परिवर्तन की कई शिकायतों के बाद सर्वसम्मति से पारित किया गया था. लेकिन, सदन के बाहर धार्मिक दलों ने सड़क पर उतरकर इस विधेयक का तगड़ा विरोध किया. उनका कहना था कि धर्म परिवर्तन किसी भी उम्र में किया जा सकता है.

साल 2016 के घटनाक्रम की जानकारी रखने वाले सिंध सरकार के एक अधिकारी ने 'एक्सप्रेस ट्रिब्यून' को नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि उस समय जमाते इस्लामी नेता ने पीपीपी नेता आसिफ अली जरदारी से मिलकर इस विधेयक का विरोध किया था. इसके बाद तत्कालीन सिंध गवर्नर से पीपीपी की तरफ से कहा गया कि वह इस विधेयक को मंजूरी न दे. इसके बाद गवर्नर ने विधेयक को सिंध विधानसभा को 'पुनर्विचार' के लिए लौटा दिया.

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अब गोकलानी ने तमाम आपत्तियों पर कानून के जानकारों से सलाह कर नए सिरे से विधेयक को तैयार किया और मंगलवार को विधानसभा को सौंपा. उन्होंने कहा कि उन्होंने आपत्तियों का निपटारा करते हुए विधेयक तैयार किया है और विधानसभा अध्यक्ष से आग्रह किया कि वे इसे सदन में पेश करें. इस पर अध्यक्ष ने सिंध के स्थानीय प्रशासन मंत्री नासिर हुसैन शाह से पूछा कि इस पर सरकार का रुख क्या है. उन्होंने पूछा, "आप इसका समर्थन करते हैं या विरोध?."

इस पर शाह ने कहा कि सिंध कैबिनेट इस विधेयक पर फैसला करेगी. उन्होंने विधेयक को कैबिनेट के पास भेजने का आग्रह किया. इस पर गोकलानी और जीडीए के अन्य सदस्यों ने उनसे आग्रह किया कि कम से कम विधेयक को सदन में औपचारिक रूप से पेश तो किया जाए, लेकिन शाह ने आग्रह को ठुकरा दिया और कहा कि विधेयक को एक बार (2016 में) गवर्नर खारिज कर चुके हैं. अब इसे फिर से पेश करने के लिए कैबिनेट की सहमति चाहिए.

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जीडीए के विधायक आरिफ मुस्तफा जटोई ने विधेयक का समर्थन किया और कहा कि इसे कैबिनेट को भेजे जाने के बजाए सदन में ही निपटाया जाए. इसे सदन की स्थाई समिति के पास भेजा जा सकता है. अध्यक्ष ने चेताया कि अगर विधेयक को कैबिनेट के पास नहीं भेजा गया और सदन में इस पर वोटिंग हुई और विधेयक को समर्थन नहीं मिला तो फिर इसे पेश नहीं किया जा सकेगा.

इसके बाद सदस्यों के आग्रह पर विधेयक पर वोटिंग हुई और सत्ता पक्ष के सदस्यों द्वारा इसके खिलाफ मत देने से इसे खारिज कर दिया गया. सदन के बाहर गोकलानी ने कहा कि पीपीपी अब बेनकाब हो चुकी है. पार्टी को हिंदू समुदाय के पर्व होली-दिवाली को मनाने का ड्रामा अब बंद कर देना चाहिए. उन्हें खुद को अल्पसंख्यक अधिकारों का चैंपियन कहना बंद कर देना चाहिए. जबकि, शाह ने कहा कि पीपीपी विधेयक के खिलाफ नहीं है लेकिन नियमों के खिलाफ नहीं जा सकती.