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पाकिस्तान ने नवाज शरीफ पर भारत के प्रति नरम रुख रखने का आरोप लगाया, जानें क्यों

पाकिस्तान की एक पूर्व राजनयिक ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भारत के प्रति नरम नीति अपनाई.

Updated on: 16 Mar 2020, 08:28 PM

इस्लामाबाद:

पाकिस्तान की एक पूर्व राजनयिक ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ (Nawaz Sharif) ने भारत के प्रति नरम नीति अपनाई. इस नीति के तहत शरीफ ने विदेश मंत्रालय को भारत और मौत की सज़ा पाए कुलभूषण जाधव (Kulbhushan Jadhav) के खिलाफ बोलने से मना किया था. विदेश कार्यालय में 2013 से 2017 के बीच प्रवक्ता रहीं तसनीम असलम ने इस्लामाबाद के एक पत्रकार के यूट्यूब चैनल को दिए साक्षात्कार में रविवार को यह दावा किया.

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असलम ने दावा किया कि नवाज शरीफ विदेश कार्यालय के जरिए भारत और जाधव के खिलाफ कुछ नहीं कहना चाहते थे. जाधव (49) को पाकिस्तान की एक सैन्य अदालत ने ‘जासूसी और आतंकवाद’ के आरोप में अप्रैल 2017 में मौत की सजा सुनाई थी. इसके बाद भारत ने अंतरराष्ट्रीय अदालत का रुख किया था और जाधव की मौत की सजा रोकने की मांग की थी. पाकिस्तान ने दावा किया है कि उसके सुरक्षा बलों ने मार्च 2016 में जाधव को बलूचिस्तान प्रांत से गिरफ्तार किया था, जहां वह कथित रूप से ईरान से गए थे.

भारत के खिलाफ नरम नीति अपनाना मुल्क के लिए फायदेमंद नहीं हुआ: असलम

असलम ने कहा कि भारत के खिलाफ नरम नीति अपनाना मुल्क के लिए फायदेमंद नहीं हुआ. उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री के भारत के साथ कारोबारी हित होने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसने मुल्क को फायदा नहीं पहुंचाया, लेकिन मुझे नहीं पता कि इसने उनके (शरीफ) हितों को फायदा पहुंचाया या नहीं. शरीफ परिवार के भारत समर्थक होने के सवाल पर उन्होंने कहा कि हां, बिल्कुल. 

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असलम ने कहा कि नवाज शरीफ 2014 में भारत गए तो उन्होंने हुर्रियत के नेताओं से मुलाकात नहीं की. उन्होंने कहा कि आमतौर पर, पाकिस्तान का हर प्रधानमंत्री हुर्रियत नेताओं से मिलता है, लेकिन जब शरीफ भारत गए तो वह उनसे नहीं मिले. उन्होंने यह भी कहा कि शरीफ ने (2016 में) संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में सिर्फ कश्मीर के बारे में बात की, जबकि भारत या जाधव का जिक्र नहीं किया.

असलम ने कहा कि कुछ नेताओं को लगता है कि भारत के प्रति तुष्टिकरण काम करेगा, लेकिन यह मुश्किल है. असलम पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के शासनकाल के दौरान 2005 से 2007 तक भी विदेश कार्यालय की प्रवक्ता रहीं थी. वह 2017 में सेवानिवृत्त हो गई थीं.