ओबामा-ट्रंप में मतभेद जारी, इजराइल विरोधी प्रस्ताव पर ट्रंप चाहते थे वीटो, ओबामा ने वीटो होने से रोका
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच वैचारिक मतभेद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है
नई दिल्ली:
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बीच वैचारिक मतभेद खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। इसकी एक झलक फिर देखने को मिली, जब ओबामा ने इजराइल विरोधी प्रस्ताव पर वीटो नहीं होने दिया। इसका मतलब ये हुआ की बराक ओबामा इजरायल के समर्थन में थे जबकि डोनाल्ड ट्रंप इस फैसले के विरोध में थे।
सुरक्षा परिषद ने इजराइल के फिलीस्तीनी इलाकों वेस्ट बैंक और पूर्वी जेरूसलम में बस्तियां बसाने की निंदा की। जहां एक ओर ट्रंप इस प्रस्ताव पर वीटो के पक्ष में हैं, वहीं ओबामा इसके विरोध में हैं। दोनों के बीच की खींचतान एक बार फिर सार्वजनिक रूप से सामने आ गई है।
साल 1967 में फिलीस्तीनी इलाकों में जोर्डन की कब्जाई गई जमीन पर इजराइल के निर्माण किए जाने और बस्तियां बसाने संबंधी प्रस्ताव को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना गया है। इस प्रस्ताव के पक्ष में सुरक्षा परिषद के 14 सदस्य देशों ने मतदान किया, जबकि अमेरिका ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया।
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इस प्रस्ताव पर वीटो करने के बजाय अमेरिकी स्थायी प्रतिनिधि सामंथा पावर अनुपस्थित रहीं, जिससे यह प्रस्ताव आसानी से पारित हो गया।
ट्रंप ने प्रस्ताव पारित होने के बाद ट्वीट किया, 'संयुक्त राष्ट्र में 20 जनवरी के बाद से चीजें बदल जाएंगी।' इसी दिन वो शपथ लेंगे।
नए राष्ट्रपति ने यह भी ट्वीट किया कि संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव पर वीटो होना चाहिए।
यह प्रस्ताव मिस्र ने पेश किया था, लेकिन ट्रंप ने मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल सीसी पर इस प्रस्ताव को वापस लेने का दबाव डाला था।
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मिस्र ने प्रस्ताव के संबंध में गुरुवार को होने वाली बैठक से पल्ला झाड़ लिया और यह रद्द हो गया। इसके बाद एक नाटकीय घटनाक्रम में न्यूजीलैंड, सेनेगल, वेनेजुएला, मलेशिया ने इस प्रस्ताव को सुरक्षा परिषद में पेश किया जो आखिरकर पारित हो गया।
अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने कहा है कि वाशिंगटन ने इसे इसलिए पारित होने दिया, क्योंकि वह इजराइल-फिलीस्तीन के आपसी संघर्ष का समाधान होते देखना चाहते हैं।
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