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नेपाल सुप्रीम कोर्ट का PM ओली को बड़ा झटका, कहा- संसद को बहाल किया जाए

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका लगा है. आपको बता दें कि इसके पहले पीएम के पी शर्मा ओली ने नेपाल सुप्रीम कोर्ट से संसद को भंग किए जाने की सिफारिश की थी.

Updated on: 23 Feb 2021, 07:12 PM

highlights

  • नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने संसद को बहाल किया
  • 20 दिसंबर 2020 को नेपाल की संसद भंग हुई थी
  • सुप्रीम कोर्ट ने संसद को भंग करना असंवैधानिक बताया

 

 

नई दिल्ली:

नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली को बड़ा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के फैसले को पलटते हुए संसद को बहाल किए जाने का निर्णय सुनाया है. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश भी जारी किया है कि अगले 13 दिनों में नेपाल की संसद को बहाल किया जाए. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली को बड़ा झटका लगा है. आपको बता दें कि इसके पहले पीएम के पी शर्मा ओली ने नेपाल सुप्रीम कोर्ट से संसद को भंग किए जाने की सिफारिश की थी. जिसके बाद नेपाल सुप्रीम कोर्ट ने 20 दिसंबर 2020 को नेपाल की संसद को भंग कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने नेपाल की संसद को भंग करना असंवैधानिक बताया और अगले 13 दिनों में ही संसद सत्र बुलाए जाने का आदेश दिया.

नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में चोलेंद्र शमशेर राणा की अगुआई वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने सभी पक्षों को ध्यान से सुना और उनके द्वारा पेश किए गए सबूतों का ध्यान से अध्ययन करने के बाद ये फैसला सुनाया. इसके पहले इस मामले पर पिछले शुक्रवार को नेपाल की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. इस दौरान न्याय मित्र की ओर से पेश वकीलों ने कहा था कि सदन को भंग करने का प्रधानमंत्री ओली का फैसला संवैधानिक नहीं था. न्याय मित्र की ओर से पांच वरिष्ठ वकीलों ने अदालत में पक्ष रखा था.

सुनवाई के दौरान एक और वरिष्ठ वकील ने बताया कि नेपाल के संविधान में देश के प्रधानमंत्री को संसद को भंग करने का अधिकार नहीं है. यह एक संवैधानिक मामला है ना कि राजनीतिक, इसलिए सर्वोच्च न्यायालय को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए. आपको बता दें कि इसके पहले कार्यकारी प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 20 दिसंबर को नेपाली संसद को भंग करने की सिफारिश को लेकर राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास पहुंचे थे. इसके बाद राष्ट्रपति ने उसी दिन इसे मंजूरी दे दी और संसद को भंग कर दिया था, जिसके बाद से ही नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता है.