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नेपाल में सियासी हलचल जारी, केपी शर्मा ओली ने प्रचंड को उनके पद से हटाया

केपी ओली ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' को उनके कार्यकारी अध्यक्ष के पद से हटा दिया है. इसके अलावा ओली ने नारायांकाजी श्रेष्ठ को प्रवक्ता के पद से हटाया दिया है.

Updated on: 22 Dec 2020, 05:19 PM

नई दिल्ली:

हमारे पड़ोसी देश नेपाल में सियासी संग्राम जारी है जिसकी वजह से वहां के सियासी समीकरण बार-बार बदल रहे हैं. नेपाली प्रधानमंत्री ने नेपाल की संसद को भंग करने का फैसला लेने के बाद अब एक और बड़ा फैसला किया है. केपी ओली ने नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पुष्पकमल दहल 'प्रचंड' को उनके कार्यकारी अध्यक्ष के पद से हटा दिया है. इसके अलावा ओली ने नारायांकाजी श्रेष्ठ को प्रवक्ता के पद से हटाया दिया है. ओली ने पार्टी के 1199 सदस्यों की एक महाधिवेशन कमेटी बनाई है. पार्टी के सभी निवर्तमान सांसदों को केंद्रीय कमेटी का सदस्य बना दिया गया, साथ ही पार्टी के महाधिवेशन को नवंबर 2021 में बुलाया गया है. 

आपको बता दें कि इसके पहले 20 दिसंबर को पीएम केपी शर्मा ओली की मनमानी पर राष्ट्रपति ने भी अपनी मुहर लगा दी थी. नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने पीएम केपी शर्मा ओली की मनमर्जी पर फिर मुहर लगाते हुए संसद भंग कर आम चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था. मध्यावधि चुनाव 30 अप्रैल और 10 मई को दो चरणों में होगा. विपक्षी दलों की आकस्मिक बैठक की गई. सरकार और राष्ट्रपति के खिलाफ आंदोलन करने की चेतावनी दी है. सुप्रीम कोर्ट में सरकार के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की गई है. 

प्रचंड के मंत्रियों से लिया इस्तीफा
इतना ही नहीं ओली सरकार से प्रचंड के मंत्रियों ने इस्तीफा दे दिया है. वर्षमान पुन, ऊर्जा मंत्री रामेश्वर राय यादव, श्रम मंत्री योगेश भट्टाराई, पर्यटन मंत्री बिना मगर, जलश्रोत शक्ति बस्नेत, वन मंत्री घनश्याम भूषाल, कृषि मंत्री गिरिराज मणि पोखरेल, शिक्षा मंत्री ने इस्तीफा दे दिया है. प्रचंड के दो मंत्रियों ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है. गृहमंत्री रामबहादुर थापा और उद्योग वाणिज्य मंत्री लेखराज भट्ट ने इस्तीफा देने से इंकार कर दिया है. 

संसद भंग करने की सिफारिश कर दी
चीन की मदद से अपनी कुर्सी बचाते आ रहे नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने संविधान के खिलाफ जाते हुए संसद भंग करने की सिफारिश कर दी. रविवार सुबह आनन-फानन बुलाई गई कैबिनेट बैठक में गिने-चुने सांसदों के बीच प्रस्ताव पारित कराने के बाद पीएम ओली खुद राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी के पास संसद भंग करने का प्रस्ताव लेकर पहुंचे. गौरतलब है कि ओली के इस फैसले का विरोध उनकी ही पार्टी कर रही है. ओली के इस कदम से नेपाल में एक बार फिर सियासी संग्राम बढ़ता नजर आ रहा है. 

ओली के विरोध में उतरी उनकी ही पार्टी
नेपाली पीएम ओली के इस संविधान विरुद्ध कदम का विरोध उनकी ही पार्टी में हो रहा है. सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता नारायणकाजी श्रेष्ठ ने इसे संविधान विरुद्ध बताया है. उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में रविवार सुबह अचानक बुलाई गई कैबिनेट की बैठक में तमाम मंत्री नहीं पहुंचे थे. यह निर्णय लोकतांत्रिक नियमों के विरुद्ध है और यह देश को पीछे ले जाना वाला कदम साबित होगा. सबसे बड़ी बात इसे अदालत में आसानी से चुनौती दी जा सकती है.