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नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ने China के साथ संबंध को कहा NO

इसके बजाय यह (अवधारणा) कहती है कि जब इस तरह की साझेदारी बनाने की बात आती है तो प्रथम दो देशों (चीन और भारत) की बड़ी भूमिकाएं होंगी और तीसरे देश की उससे कम भूमिका होगी.

Updated on: 29 Nov 2019, 11:10 PM

highlights

  • नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने बीजिंग द्वारा दिये गये 'भारत-चीन प्लस' फार्मूले को शुक्रवार को खारिज कर दिया.
  • पूर्व प्रधानमंत्री ने पारस्परिक लाभ पर आधारित नेपाल (Nepal), भारत (India) और चीन (China) के बीच एक त्रिपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का समर्थन किया.
  • इस तरह की साझेदारी बनाने की बात आती है तो प्रथम दो देशों (चीन और भारत) की बड़ी भूमिकाएं होंगी.

काठमांडू:

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल (Nepal Former Prime Minister Pushpa Kamal Dahal) ‘प्रचंड’ ने बीजिंग द्वारा दिये गये 'भारत-चीन प्लस' (India-China Plus) फार्मूले को शुक्रवार को खारिज कर दिया लेकिन पारस्परिक लाभ पर आधारित नेपाल (Nepal), भारत (India) और चीन (China) के बीच एक त्रिपक्षीय रणनीतिक साझेदारी का समर्थन किया. नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (Nepal Communist Party) प्रमुख ने यहां दिन भर के कार्यक्रम में संवाददाताओं से बात करते हुए कहा कि मेरा मानना है कि चीन-भारत प्लस या 2+1 अवधारणा चीन, नेपाल और भारत के बीच समान हिस्सेदारी की बात नहीं करती है.

इसके बजाय यह (अवधारणा) कहती है कि जब इस तरह की साझेदारी बनाने की बात आती है तो प्रथम दो देशों (चीन और भारत) की बड़ी भूमिकाएं होंगी और तीसरे देश की उससे कम भूमिका होगी. उन्होंने कार्यक्रम में कहा कि नेपाल दोनों पड़ोसी देशों के बीच महज एक ट्रांजिट बिंदु नहीं बन सकता, इसके बजाय जब इस तरह की साझेदारी बनाने की बात आती है तो नेपाल को भी बराबर की हिस्सेदारी चाहिए.

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प्रचंड के हवाले से माय रिपब्लिका पोर्टल ने कहा है कि एक संप्रभु और स्वतंत्र देश होने के नाते त्रिपक्षीय साझेदारी में नेपाल के पास समान दर्जा और अधिकार होना चाहिए. गौरतलब है कि अक्टूबर में चीन के उप विदेश मंत्री ने कहा था कि उनका देश अफगानिस्तान,नेपाल, भूटान और अफ्रीका के लिये एक साझा रणनीति विकसित करने के लिये ‘भारत-चीन प्लस’ फार्मूले को आगे बढ़ाने में रूचि रखता है.

प्रचंड ने यह भी कहा कि नेपाल और भारत के बीच सीमा मुद्दा का हल कूटनीतिक और राजनीतिक वार्ता के जरिये होना चाहिए. गौरतलब है कि छह नवंबर को नेपाल सरकार ने कहा था कि मीडिया में आई खबरों में भारत के नये नक्शे में कालापानी इलाके को शामिले किये जाने की ओर ध्यान आकृष्ट किया गया है. प्रचंड ने कहा कि कालापानी और सुस्ता से जुड़े मुद्दे नेपाल और भारत के बीच काफी समय से लंबित विषय हैं. और अब इन मुद्दों का वार्ता के जरिये हल करने का उपयुक्त समय है.

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उन्होंने कहा कि नेपाल सरकार को कालापानी और लिम्पीधुरा पर अपने दावे के समर्थन में अवश्य ही ऐतिहासिक दस्तावेज प्रस्तुत करने चाहिए. ये इलाके नेपाल के सुदूर पश्चिम में स्थित सीमावर्ती दलाके हैं. उन्होंने यह भी कहा कि मीडिया संचार का एक शक्तिशाली माध्यम है और हमें सकारात्मक जनमत बनाने में इसका उपयोग करने की जरूरत है.