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Corona को संक्रामक बनाया गया ताकि तेजी से ले सके इंसानों को चपेट में

कोविड-19 में जेनेटिक सिक्वेंस सिग्नलिंग का एक फीचर है, जो इसके मानव निर्मित होने की आशंका पैदा करता है.

Updated on: 11 Jun 2021, 06:29 AM

highlights

  • नेचर में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट ने नई आशंकाओं को दिया जन्म
  • सिक्वेंस सिग्नल समेत फुरिन क्लीविज साइट से फैला इंसानों में
  • चमगादड़ से किसी दूसरे जानवर फिर इंसानों में फैला कोविड संक्रमण

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस (Corona Virus) संक्रमण की उत्पत्ति को लेकर चीन पर उठ रही आवाजें कम नहीं हो रही हैं. केंद्रीय मसला यही है कि सॉर्स कॉव-2 वायरस प्राकृतिक था या उसे प्रयोगशाला में तैयार किया गया... यह सवाल वैज्ञानिकों के साथ-साथ दुनिया को भी मथ रहा है. इसको लेकर वैज्ञानिक भी दो खेमों में बंटे आ रहे हैं. हालांकि मूल प्रश्न यही उभर रहा है कि यदि वायरस के लैब में तैयार किए जाने के प्रमाण नहीं मिले हैं, तो इसके प्राकृतिक रूप से पैदा होने के तथ्यों की पुष्टि भी अभी नहीं हुई है. इस दुविधा के बीच नेचर में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में आशंका जाहिर की गई है कि वायरस (Corona Epidemic) को इंसानों में तेजी से फैलने के अनुरूप खासतौर पर तैयार किया गया हो सकता है.

जेनेटिक सीक्वेंस सिग्नलिंग का फीचर
नेचर में प्रकाशित रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 में जेनेटिक सिक्वेंस सिग्नलिंग का एक फीचर है, जो इसके मानव निर्मित होने की आशंका पैदा करता है. इसमें कोशिका के भीतर प्रोटीन को निर्देशित किया जा सकता है, जबकि आमतौर पर इस प्रकार के वायरस में पाए जाने वाले प्रोटीन में सिक्वेंस सिग्नल नहीं होते हैं. आशंका जाहिर की गई है कि ऐसा लगता है कि इसे इस प्रकार से तैयार किया गया है कि यह एक इंसान से दूसरे इंसान में तेजी से फैले. सिक्वेंस सिग्नल के अलावा वायरस की फुरिन क्लीविज साइट भी मानव निर्मित प्रतीत होती है. 

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फुरीन क्लीविज साइट से मानव कोशिका में प्रवेश
कैलिफोर्निया के वायरोलाजिस्ट क्रिश्चयन एंडरसन के अनुसार फुरिन क्लीविज साइट एक ऐसा गुण है जो वायस को मानव कोशिका में प्रवेश के लिए जिम्मेदार माना गया है. फुरिन साइट कोविड-19 के स्पाईक प्रोटीन में है. हालांकि वैज्ञानिकों का कहना है कि पहले भी कोरोना वायरस में यह साइट देखी गई है, लेकिन कोविड-19 में वे सभी फीचर एक साथ दिख रहे हैं जो उसे ज्यादा संक्रामक बनाते हैं. यह महज संयोग नहीं हो सकता है. इसके अलावा वायरस के न्यूक्लियोटाइड में अनेक संयोजन भी इस प्रकार के संकेत करते हैं.

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प्राकृतिक होने के भी प्रमाण नहीं 
दूसरी तरफ वायरस के प्राकृतिक होने के प्रमाण भी अभी तक नहीं मिले हैं. वायरस का जीमोन हार्सशू प्रजाति के चमकादड़ से 96 फीसदी मिलता है. यहां संशय इसलिए पैदा होता है कि यदि यह चमकादड़ से इंसान में आया है तो यह ज्यादा मिलना चाहिए. ऐसे में जो वैज्ञानिक इसे प्राकृतिक मानते हैं, उनका दावा है कि यह पहले चमगादड़ से किसी दूसरे जानवर में गया और वहां से इंसान में आया. अब तक 80 हजार संदिग्ध जानवरों के जीनोम की जांच की जा चुकी है लेकिन यह  पता नहीं लग पाया है कि वह जानवर कौन है. हालांकि यह पता लगाना काफी समय गंवाने वाला कार्य है. जाहिर है कि जब तक यह पता नहीं चलता है तब तक इसकी प्राकृतिक उत्पत्ति को भी स्वीकार नहीं किया जा सकता.