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इजराइल में साढ़े तीन साल में 5वीं बार चुनाव, फिर आएंगे PM Modi के दोस्त!

इजराइली संसद में किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए 61 सीटें चाहिए होती हैं. जाहिर है आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली केंद्रित चुनाव होने से किसी एक पार्टी के लिए 61 प्रतिशत वोट हासिल करना टेढ़ी खीर होती है.

Updated on: 01 Jul 2022, 03:11 PM

highlights

  • नफ्ताली बेनेट इजराइल के सबसे कम समय तक रहे पीएम
  • 12 साल सत्ता में रहने का रिकॉर्ड बेंजामिन नेतन्याहू का
  • नेसेट यानी इजराइली संसद के लिए नवंबर में होगा चुनाव

तेल अवीव:

दुनिया में सामरिक हथियारों के मामले में विकसित देशों को कड़ी चुनौती देने वाला इजराइल राजनीतिक तौर पर अस्थिर देश कहा जा सकता है. इसकी वजह यह है कि बीते साल ही बनी नफ्ताली बेनेट की सरकार गिर चुकी है और इस साल के अंत यानी नवंबर में आम चुनाव होंगे. सरकार गिरते ही बेनेट इतिहास में भी दर्ज हो गए हैं. इजराइल के इतिहास में बेनेट सबसे कम समय तक प्रधानमंत्री पद पर रहे हैं. उनकी सरकार अस्तित्व में आने के एक साल बाद ही गिर गई. इस तरह बीते साढ़ें तीन साल में इजराइल पांचवीं बार आम चुनाव का सामना करने जा रहा है. अगर राजनीतिक इतिहास की बात करें तो इजराइल में लंबे समय से किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है. नफ्ताली बेनेट की सरकार भी गठबंधन सरकार थी, जो आठ विपरीत विचारधाराओं के मेल से बनी थी. ये सभी आठ पार्टियां पूर्व नेता बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बाहर करने के लिए अपने-अपने मतभेदों को पीछे छोड़ एक साथ आई थीं. बेंजामिन नेतन्याहू सरकार ने 12 साल लगातार काम कर इतिहास रचा था.

प्रत्याशियों की जगह पार्टियों को वोट
सवाल यह उठता है कि आखिर इजराइल में इतनी जल्दी-जल्दी चुनाव क्यों हो रहे हैं? इसका जवाब छिपा है इजराइल की संसदीय प्रणाली में. जानकारी के मुताबिक इजराइल में आम चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर होता है. यानी इजराइल का वोटर प्रत्याशियों की जगह पार्टी को वोट देता है. इसके बाद पार्टियों को मिले मत प्रतिशत के अनुपात में उन्हें संसद की सीटें दे दी जाती हैं. उदाहरण के तौर पर इजराइल की किसी पार्टी को अगर आम चुनाव में 10 प्रतिशत वोट मिलते हैं, तो आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के आधार पर उसे कुल 120 संसदीय सीटों में से 10 प्रतिशत यानी 12 सीटें आवंटित कर दी जाती हैं. चुनाव की यह प्रक्रिया 28 दिनों में पूरी कर ली जाती है. अब संबंधित पार्टी इन सीटों पर अपने सांसदों को नियुक्त करती है. 

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बहुमत के लिए 61 का आंकड़ा जरूरी
इजराइली संसद में किसी भी पार्टी या गठबंधन को बहुमत के लिए 61 सीटें चाहिए होती हैं. जाहिर है आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली केंद्रित चुनाव होने से किसी एक पार्टी के लिए 61 प्रतिशत वोट हासिल करना टेढ़ी खीर होती है. इसी कारण पार्टियों को चुनाव से पहले और चुनाव बाद गठबंधन की आवश्यकता आन पड़ती है. बीते साल भी यही हुआ था. गौरतलब है कि अप्रैल 2019 के चुनावों के परिणाम जब आए तो अधिकांश नेसेट सदस्यों के दक्षिणपंथी होने के बावजूद इजराइल की सबसे बड़ी लिकुड पार्टी के प्रमुख बेंजामिन नेतन्याहू सरकार नहीं बना सके. ऐसे में उन्होंने नेसेट को भंग करने का ऐलान कर दिया. छह महीने बाद फिर हुए चुनाव में भी सरकार नहीं बनी और नेसेट अपने आप भंग हो गई. फिर मार्च 2020 में नेतन्याहू और ब्लू एंड व्हाइट पार्टी के प्रमुख बेनी गैंट्ज़ के बीच गठबंधन सरकार बनी, लेकिन उसी साल दिसंबर में इसका पतन हो गया. उसके बाद मार्च 2021 में फिर चुनाव हुए और नेतन्याहू की पार्टी लिकुड और उसके सहयोगी दल बहुमत नहीं पा सके. इस कारण विपक्षी नेता नफ्ताली बेनेट ने यायिर लैपिड और बाकी की 8 विपक्षी पार्टियों के साथ सरकार बनाई, जिनकी विचारधारा कतई मेल नहीं खाती थी. अंततः बेनेट सरकार भी अब गिर गई. 

बेंजामिन नेतन्याहू को अभी से बढ़त दे रहे ओपीनियन पोल
गौरतलब है कि बेनेट सरकार दक्षिणपंथी, वामपंथी और मध्यमार्गी के साथ-साथ इस्लामिक अरब पार्टी के गठबंधन से बनी थी. अलग-अलग विचारधारा होने की वजह से सरकार चलाने में दिक्कत आ रही थी, तो इजराइली संसद यानी नेसेट को शून्य के मुकाबले 92 मतों से भंग करने का प्रस्ताव आसानी से पास हो गया. इजराइल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि बेनेट सरकार में अरब पार्टी सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा थी. बेनेट सरकार के गिरने के बाद हुए एक ओपीनियन पोल में नेतन्याहू गठबंधन को आगामी आम चुनाव में मौजूदा 52 सीटों के मुकाबले 58 से 60 सीटे मिल सकती हैं. हालांकि इसके बावजूद नेतन्याहू गठबंधन 120 सदस्यीय सदन में बहुमत के 61 के जादुई आंकड़े से दूर हैं. फिलहाल बेनेट सरकार गठबंधन में हुए समझौते की वजह से विदेश मंत्री 58 वर्षीय यायिर लैपिड अब कार्यवाहक प्रधानमंत्री होंगे. वह प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट के पद छोड़ने के बाद कार्यवाहक प्रधानमंत्री का कार्यभार संभालेंगे.

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इस तरह नेसेट यानी संसद में पहुंचते हैं सांसद
इजराइली संसद यानी नेसेट हिब्रू भाषा का शब्द है. इजराइली परंपरा के अनुसार प्राचीन नेसेट 120 ऋषियों और पैगंबरों की एक विधानसभा थी. नेसेट के सदस्य का कार्यकाल चार साल का होता है. इसके जरिए ही प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का चुनाव होता है. नेसेट में ही इजराइल का कानून बनता है. इसमें कुल 120 सदस्य होते हैं. यहां मतदान करने की न्यूनतम उम्र 18 साल है. परंपरा के अनुसार किसी भी पार्टी को नेसेट (संसद) में पहुंचने के लिए कुल हुए मतदान का न्यूनतम 3.25 फीसदी वोट हासिल करना जरूरी है. यानी अगर किसी पार्टी को वोट प्रतिशत 3.25 से कम मिलता है तो उसे संसद में सीट नहीं दी जाती है. चूंकि पार्टियां चुनाव लड़ती है फिर आवंटित सीटों पर अपने सांसद देती हैं. ऐसे में आम चुनाव से पहले इजरायल की हर पार्टी अपने उम्मीदवारों के प्रिफरेंस के आधार पर एक सूची जारी करती है. इस सूची यानी प्रिफरेंस के आधार पर चुनाव में जीत के बाद सांसद चुना जाता है. यही नहीं, कार्यकाल के दौरान यदि किसी सांसद की मौत हो जाती है तो प्रिफरेंस सूची में शामिल बाद के नेताओं को सांसद बनने का मौका दिया जाता है.

वेस्ट बैंक में अफरातफरी के बीच राजनीतिक अस्थिरता
इजराइल की संसद यानी नेसेट को भंग करने का फैसला ऐसे समय आया है जब देश वेस्ट बैंक में अभूतपूर्व और अफरातफरी वाले कानूनी दांवपेंच की दहलीज पर खड़ा है. एक तरफ इजराइल वेस्ट बैंक में रहने वाले यहूदियों को कानूनी मान्यता देने की तैयारी कर रहा है. दूसरी तरफ वेस्ट बैंक में रहने वाले फलस्तीनियों के लिए अलग कानूनी व्यवस्था बनायी जा रही है. यह कदम 1967 में अस्तित्व में आए कानून के नाम पर उठाया जा रहा है. इस कानून का हर पांच साल में नवीनीकरण किया जाता है. इस लिहाज से इसकी समय सीमा गुरुवार को ही समाप्त हो रही है. गौरतलब है कि इज़राइल ने 1967 की जंग में वेस्ट बैंक पर कब्जा कर लिया था. हाल के महीनों में वेस्ट बैंक में हिंसा में बढ़ोतरी देखी गई है. इज़राइल के अंदर फलस्तीनियों ने कई हमले किए थे जिनमें 19 इज़राइलियों की मौत हुई थी, जिसके बाद इज़राइली सैनिक करीब-करीब रोज़ वेस्ट बैंक में छापेमारी कर रहे हैं, जिसमें अब तक कई दर्जन फलस्तीनी मारे गए हैं.