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ईरान और सऊदी अरब बने मध्य पूर्व में चीन के नए लांच पैड

चीन इसके बदले में रणनीतिक तौर पर मध्य पूर्व के क्षेत्र को अपने प्रभाव में लाने की बड़ी महत्वाकांक्षा रखे हुए है.

Updated on: 19 Sep 2020, 10:00 AM

बीजिंग:

चीन (China) मध्य पूर्व में अपने प्रभाव का विस्तार करने के लिए ईरान (Iran) और सऊदी अरब (Saudi Arab) के करीब आ रहा है. यह ऐसे समय में हो रहा है, जब तेहरान इंटरनेशनल आइसोलेशन का सामना कर रहा है और रियाद परमाणु ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. ईरान को संयुक्त राज्य अमेरिका (America) के नए दबाव का सामना करना पड़ रहा है, जिसने गंभीर रूप से महत्वपूर्ण तेल और गैस निर्यात सहित ईरान की आर्थिक जीवन रेखा को बाधित करने का प्रयास किया है. इसलिए अब ईरान समर्थन के लिए चीन तक पहुंच स्थापित करने के प्रयास में है.

मध्य पूर्व को अर्दब में लेने की कोशिश
चूंकि चीन के हर मामले में अपने निहितार्थ छुपे हुए होते हैं, इसलिए वह इसके बदले में भी अपना हित साधना चाहता है. चीन इसके बदले में रणनीतिक तौर पर मध्य पूर्व के क्षेत्र को अपने प्रभाव में लाने की बड़ी महत्वाकांक्षा रखे हुए है. जून में ईरान और चीन के बीच 25 साल के रणनीतिक समझौते पर बातचीत पूरी हुई थी और चीन के साथ रणनीतिक सहयोग के तहत ईरान ने आर्थिक और सुरक्षा आयामों के साथ इसे मंजूरी दी थी, जिसकी कीमत लगभग 600 अरब डॉलर है. संधि के तहत ऊर्जा का भूखा चीन इसके तहत चीन ईरान से बेहद सस्ती दरों पर तेल खरीदेगा.

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बहुस्तरीय विकास में मदद करेगा बीजिंग
सुनिश्चित ऊर्जा आपूर्ति के बदले में, चीन ईरान की आर्थिक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करेगा, जिसे चीन-केंद्रित पारिस्थितिकी तंत्र में एकीकृत किया जाएगा, जिसमें व्यापार, वित्त, निवेश और बाजार पहुंच शामिल होगी. दूरसंचार क्षेत्र की दिग्गज चीनी कंपनी हुआवे की ओर से ईरान की साइबर नेटवर्क में भी मदद की जाएगी, जिसमें विशेषकर 5जी डोमेन में उसकी मदद की जाएगी. न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा चीन बैंकिंग, आधारभूत ढांचे जैसे दूरसंचार, बंदरगाह, रेलवे, हवाई अड्डे और ट्रांसपोर्ट आदि में निवेश करेगा. चीन उत्तरी पश्चिमी ईरान के मकु में मुक्त-व्यापार क्षेत्र भी विकसित करेगा.

इजरायल पर भी निशाना
चीन के पास हथियार विकसित करने के लिए एक संयुक्त आयोग स्थापित करने और वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए ईरानी प्रतिभा को टैप करने की योजना है, जिसमें साइबरवार भी शामिल है. इस पहल से क्षेत्र में खुफिया जानकारी इकट्ठा करने की अभूतपूर्व क्षमता के साथ मध्य पूर्व में चीन की सैन्य उपस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है. इस समझौते के साथ आगे बढ़ने पर चीन पहली बार मध्य पूर्व कॉकपिट में बैठा फ्रंटलाइन खिलाड़ी बन जाएगा. इसका असर ईरान के कट्टर दुश्मन इजरायल पर भी निश्चित तौर पर पड़ेगा.

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सैन्य महत्वाकांक्षाएं
यह बात भी ध्यान देने वाली है कि मध्य पूर्व में चीन की सैन्य महत्वाकांक्षाएं भी छुपी हुई हैं. चीन बीजिंग केंद्रित बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) को फैलाने के लिए ईरान को एक लॉन्च पैड के रूप में देखता है, जो एक विशाल अंतरमहाद्वीपीय संपर्क परियोजना है, जिसका उद्देश्य चीन की वृद्धि को एक बेजोड़ महाशक्ति के रूप में लॉन्च करना है. अगर ईरान सहमत होता है तो चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) को पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से पश्चिम की ओर भी बढ़ाया जा सकता है.

एक तीर से दो निशाने
वहीं दूसरी ओर चीन ईरान के प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब के साथ परमाणु क्षेत्र में साझेदारी करने से सहमत हो गया है. यह एक ऐसा क्षेत्र है, जहां अधिकांश देश प्रवेश करने के लिए अनिच्छुक हैं. परमाणु क्षेत्र में रियाद के साथ साझीदारी करने से सहमत होकर सऊदी अरब के प्रतिद्वंद्वी सऊदी अरब के अंदरूनी हिस्से में चीन भी प्रवेश कर गया है. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने यह कहा है कि अगर ईरान परमाणु बम विकसित करता है, तो रियाद भी इसी तरह का कदम उठाएगा.