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UN में भारत ने निभाई श्रीलंका से दोस्ती, साधे तमिलनाडु चुनाव समीकरण भी

UNHRC में श्रीलंका के खिलाफ वोटिंग से गैरहाजिर रहकर भारत ने न सिर्फ पड़ोसी धर्म निभाया, बल्कि तमिलनाडु (Tamilnadu) विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक मास्टर स्ट्रोक भी चल दिया.

Updated on: 24 Mar 2021, 10:04 AM

highlights

  • यूएन में श्रीलंका के खिलाफ प्रस्ताव पर वोटिंग हुई
  • भारत ने गैरहाजिर रह निभाया दोस्ती का धर्म
  • साथ ही तमिलनाडु चुनाव की बिसात भी साधी

संयुक्त राष्ट्र:

कूटनीतिक मोर्चे पर मोदी सरकार (Modi Government) के मास्टर स्ट्रोक से एक साथ दो निशाने साधे गए हैं. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (UNHRC) में श्रीलंका के खिलाफ वोटिंग से गैरहाजिर रहकर भारत ने न सिर्फ पड़ोसी धर्म निभाया, बल्कि तमिलनाडु (Tamilnadu) विधानसभा चुनाव के मद्देनजर एक मास्टर स्ट्रोक भी चल दिया. श्रीलंका (Srilanka) सरकार को कठघरे में खड़े करते युद्ध अपराध और मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र की संस्था में यह मतदान हुआ, जिसमें भारत के पड़ोसी देश के खिलाफ प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया. कुल 47 वोटों में से 22 वोट इस प्रस्ताव के पक्ष में पड़े थे. भारत और नेपाल (Nepal) समेत 13 देशों ने वोटिंग से गैरहाजिर रहने का फैसला लिया, वहीं 11 वोट इस प्रस्ताव के खिलाफ पड़े.

मोदी सरकार ने साधे ग्लोबल और लोकल समीकरण
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया है. साफ है कि श्रीलंका के लिए यह एक बड़ा झटका है. हालांकि पाकिस्तान और चीन जैसे  देशों ने उसके पक्ष में वोटिंग की है. इसके अलावा रूस ने भी श्रीलंका का समर्थन किया है. संयुक्त राष्ट्र की संस्था में मतदान से पहले श्रीलंका की ओर से भारत को साधने का प्रयास किया गया था, लेकिन उसे कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिल पाया. दरअसल भारत सरकार पर तमिलनाडु के राजनीतिक दलों की ओर से दबाव था कि वह श्रीलंका के खिलाफ वोटिंग करे. ऐसी स्थिति में भारत ने लोकल राजनीति और ग्लोबल समीकरण दोनों को ही न बिगाड़ने का फैसला लेते हुए वोटिंग से दूर रहना ही उचित समझा.

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भारत सरकार हमेशा रही तमिलों के समान अधिकारों की पक्षधर
इससे पहले 2012 और 2013 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में श्रीलंका के खिलाफ मतदान किया था. दरअसल बीते कुछ सालों में श्रीलंका और चीन के बीच नजदीकी बढ़ गई है, ऐसे में एक बार फिर से द्वीपीय देश के खिलाफ वोटिंग उसे ड्रैगन के और नजदीक ले जा सकती थी. 2014 में भारत ने श्रीलंका के खिलाफ लाए गए प्रस्ताव से दूर रहने का फैसला लिया था. बता दें कि भारत सरकार हमेशा ही श्रीलंका में तमिलों के समान अधिकारों की पक्षधर रही है. 

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चीन को भी लगा झटका
गौरतलब है कि पिछले दिनों भी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने श्रीलंका की एकता की बात करते हुए सभी को समान अधिकार देने का संदेश दिया था. संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी मिशन के सदस्य पवन बाढ़े ने कहा कि हम श्रीलंकों में तमिलों के लिए न्याय, समानता, सम्मान और शांति के पक्षधर रहे हैं. इसके अलावा हम श्रीलंका की एकात्मता, एकता और स्थिरता चाहते हैं. जाहिर है वोटिंग से गैरहाजिर रहकर भारत ने न सिर्फ पड़ोसी धर्म निभाया, बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर चीन को भी तगड़ा झटका दिया है.