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इमरान खान ने जिसे समझा था अपना, अब वही उनकी राह में बिछा रहे कांटे

सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (Army Chief General Qamar Javed Bajwa) ने जहां उद्योगपतियों के साथ बैठक कर एक संकेत दिया, वहीं जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख फजलुर रहमान ने आजादी मार्च का एलान कर उनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं.

Updated on: 05 Oct 2019, 09:16 PM

नई दिल्ली:

क्रिकेटर से राजनेता बने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाकिस्तान की प्रमुख विपक्षी पार्टियों पीपीपी और पीएमएल-नवाज को टक्कर देने के लिए जिस पाकिस्तानी सेना और चरमपंथी गुटों को साथ किया था, अब वही उनकी राह के कांटे बनने लगे हैं. सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा (Army Chief General Qamar Javed Bajwa) ने जहां उद्योगपतियों के साथ बैठक कर एक संकेत दिया, वहीं जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख फजलुर रहमान ने आजादी मार्च का एलान कर उनकी मुसीबतें बढ़ा दी हैं. संयुक्त राष्ट्र महासभा में कश्मीर मुद्दे को जोर-शोर से उठा कर स्वदेश लौटे इमरान का जिस तरह देश में भव्य स्वागत हुआ था, वह 24 घंटे भी नहीं टिका और सब काफूर हो गया.

UN से लौटने के बाद इमरान अलाप रहे कश्मीर राग

देश की खस्ता अर्थव्यवस्था (Economy) पर चारों तरफ से घिरे इमरान (Imran) को अब कुछ सूझ नहीं रहा तो संयुक्त राष्ट्र से लौटने के बाद भी कश्मीर (Kashmir) राग ही अलाप रहे हैं. वहीं सेना प्रमुख और चरमपंथी मौलाना फजलुर रहमान ने जमीनी हालात को समझते हुए अपनी योजनाओं को खुलासा कर दिया है.

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पीटीआई जुलाई 2018 में केंद्रीय सत्ता में आई

इमरान खान (Imran khan) ने 25 अप्रैल, 1996 को औपचारिक रूप से अपनी राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) की स्थापना की थी. उनकी पार्टी ने विशेष रूप से पाकिस्तान (Pakistan) के युवाओं के बीच लोकप्रियता हासिल की और पार्टी 2013 के चुनाव में खैबर पख्तूनख्वा में एक प्रांतीय सरकार बनाने में सफल रही. पीटीआई जुलाई 2018 में केंद्रीय सत्ता में आई और 17 अगस्त, 2018 को इमरान पाकिस्तान के 22वें प्रधानमंत्री चुने गए.

इमरान खान के सत्ता संभालते ही पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गिर गई

इमरान ने देश की सत्ता तो हासिल कर ली, मगर वह युवाओं व देशवासियों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सके. उनके प्रधानमंत्री बनने के एक साल के अंदर ही पाकिस्तान में गरीबी व बेरोजगारी अपने चरम स्तर पर पहुंच गई. यही वजह है कि अब आम आदमी उनसे जमीनी हकीकत से जुड़े मुद्दों पर सवाल पूछने लगा है. इमरान हालांकि भारत विरोधी बयानों और कश्मीर राग अलापते हुए जनता का ध्यान बंटाने में लगे हुए हैं.

जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के प्रमुख फजलुर रहमान ने शनिवार को अपने 'आजादी' मार्च को सरकार के खिलाफ 'जंग' करार दिया. उन्होंने कहा कि यह तबतक समाप्त नहीं होगा, जबतक इस सरकार का पतन नहीं हो जाता.

उन्होंने पेशावर में एक प्रेस वार्ता में पत्रकारों से कहा, 'पूरा देश हमारा युद्धक्षेत्र(वॉरजोन) होगा.'

जेयूआई-एफ नेता इमरान सरकार के खिलाफ निकालेंगे मार्च

इस दौरान जेयूआई-एफ नेता ने सरकार के खिलाफ 27 अक्टूबर को एक मार्च निकालने की घोषणा की. उन्होंने कहा कि मार्च का समापन राजधानी में होगा और पार्टी की यहां धरना-प्रदर्शन करने की योजना है.

उन्होंने कहा, 'हमारी रणनीति एकसमान नहीं रहेगी. हम किसी भी स्थिति से निपटने के लिए इसमें बदलाव करते रहेंगे. पूरे देश से लोगों का जनसैलाब इस मार्च में भाग लेने आ रहा है और फर्जी शासक इसमें एक तिनके की तरह डूब जाएंगे.'

पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) दोनों प्रमुख विपक्षी पार्टियों ने हालांकि मार्च में शामिल होने को लेकर कोई आश्वासन नहीं दिया है. पीपीपी प्रमुख बिलावल भुट्टो-जरदारी ने शुक्रवार को कहा था कि वह रहमान को सहयोग देने के मुद्दे पर पार्टी बैठक में फैसला लेंगे. वहीं पीएमएल-एन ने रहमान से मार्च कार्यक्रम को आगे बढ़ाने का आग्रह किया था.

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धार्मिक कार्ड का फायदा नहीं उठा पाएंगे पीपीपी और पीएलएल-एन

उधर इमरान खान ने कहा कि मौलाना फजलुर रहमान पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी(पीपीपी) और पाकिस्तान मुस्लिम लीग(पीएलएल-एन) के इशारे पर सरकार के खिलाफ 'धार्मिक कार्ड' का फायदा उठाने में कामयाब नहीं हो पाएंगे.

समाचर पत्र डॉन के मुताबिक, प्रधानमंत्री खान के एक करीबी सहयोगी ने कहा मौलाना फजलुर को पीपीपी और पीएमएल-एन ने सरकार के खिलाफ अपने एजेंडे को पूरा करने के लिए काफी धनराशि दी है.