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इमरान खान अपने ही घर में घिरे, विपक्ष को कुचलने के लिए लेंगे सेना की मदद

इमरान अपनी खिलाफत कर रहे विपक्ष को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटने वाले हैं. पाकिस्तानी मीडिया में ऐसी रिपोर्ट्स है.

Updated on: 19 Oct 2019, 06:11 PM

highlights

  • जमीयत-ए-उलेमा के नेतृत्व में विपक्ष निकाल रहा इस्लामाबाद मार्च.
  • समग्र विपक्ष का समर्थन प्राप्त है इस आजादी मार्च को.
  • इमरान खान इसे दबाने के लिए कर सकते हैं सेना की तैनाती.

New Delhi:

जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 लगाने के फैसले के बाद मोदी सरकार पर कश्मीरी मुसलमानों के मानवाधिकारों के हनन का आरोप लगाने वाले पाकिस्तान के वजीर-ए-आजम इमरान खान खुद मानवाधिकारों को लेकर कितने संजीदा है इसका उदाहरण सिंध-बलूचिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार हैं. यही नहीं, वैश्विक स्तर पर भारी दबाव का सामना कर रहे पाकिस्तान ने अब पत्रकारों को भी वीसा देने से इंकार करना शुरू कर दिया है ताकि उसकी कथनी-करनी का भेद और ना खुले. अब पता चला है कि इमरान अपनी खिलाफत कर रहे विपक्ष को कुचलने के लिए पाकिस्तानी सेना का इस्तेमाल करने से भी पीछे नहीं हटने वाले हैं. पाकिस्तानी मीडिया में ऐसी रिपोर्ट्स है कि जमीयत-ए-उलेमा के इस्लामाबाद मार्च को कुचलने के लिए वह सेना की तैनाती कर सकते हैं.

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31 के आजादी मार्च को संपूर्ण विपक्ष का समर्थन
गौरतलब है कि इमरान खान पर सबसे बड़ा आरोप यही है कि उन्होंने धांधली के जरिये प्रधानमंत्री पद पर कब्जा किया है. ऐसे में बिलावल भुट्टो समेत विपक्ष उनके खिलाफ एकजुट हो रहा है. जमीयत-ए-उलेमा के प्रमुख मौलाना फजल ने 31 अक्टूबर को इमरान सरकार के खिलाफ इस्लामाबाद में मार्च निकालने की घोषणा की है. इस इस्लामाबाद मार्च को पूर्व पीएम नवाज शरीफ की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज, पाकिस्तान पीपल्स पार्टी, एएनपी और पख्तूनख्वा मिल्ली अवाम पार्टी ने इस 'आजादी मार्च' को समर्थन देने की घोषणा की है. पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार विपक्षी दलों के इस मार्च से निपटने के लिए रणनीति तैयार कर रही है. इसके तहत सेना को इस्लामाबाद में तैनात करने के विकल्प पर भी विचार किया जा रहा है.

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पीएम आवास में हुआ सेना की तैनाती का फैसला
रिपोर्ट के मुताबिक पीएम इमरान खान के आवास पर कानून व्यवस्था को लेकर हुई मीटिंग के दौरान मार्च से निपटने के कई विकल्पों पर विचार किया गया. मीटिंग के दौरान यह कहा गया कि शांतिपूर्ण प्रदर्शन किसी का भी हक है, लेकिन इस्लामाबाद को कट्टरपंथियों के मार्च से बंधक बनाने का हक किसी को भी नहीं दिया जा सकता. इस मीटिंग के दौरान संवेदनशील सरकारी प्रतिष्ठानों और विदेशी दूतावासों की सुरक्षा को लेकर भी चर्चा हुई. मीटिंग में यह फैसला हुआ कि फजल समेत सभी विपक्षी दलों से वार्ता की जाएगी. यदि यह वार्ता विफल रहती है तो फिर जरूरी प्रतिष्ठानों और सरकारी संस्थानों की सुरक्षा के लिए राजधानी में सेना को तैनात किया जाएगा.

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सेना अदालती कार्रवाई से है परे
गौरतलब है कि 2014 में खुद इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ और नवंबर, 2017 में तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान के आंदोलन को रोकने के लिए सेना की तैनाती की गई थी. पाकिस्तान के संविधान के अनुच्छेद 245 के मुताबिक यदि सेना नागरिक प्रशासन की सहायता के लिए कोई कार्रवाई करती है तो उसे अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है. इसी का लाभ उठाते हुए पाकिस्तानी सेना समय-समय पर पक्ष-विपक्ष के बीच संतुलन साधा करती है. चूंकि अब इमरान खान सेना के लिए बोझ बनते जा रहे हैं, तो उन्हें घेरने के लिए सेना ऐसी कार्रवाई कर सकती है, जिससे अवाम का गुस्सा उनके प्रति और भड़के. इसके बाद सेना मौका देखकर इमरान खान का तख्तापलट सकती है.