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इस शहर में एक कार पार्किंग से भी कम जगह रहते हैं लोग, देखें माइक्रोफ्लैट और नैनोफ्लैट!

कम ही लोगों को यह बात पता होगी कि हॉन्ग-कॉन्ग में अफॉर्डेबल हाउसिंग के नाम पर 220 स्क्वायर के फ्लैट भी मिलते हैं? यह सुनकर आप सोच में पड़ गए होंगे कि इतनी कम जगह में आप कहां तो बेडरूम बनाएंगे, कहां किचन और कहां बाथरूम? ऐसे में बालकनी की तो बात ही बेम

Updated on: 09 Nov 2021, 11:07 PM

नई दिल्ली:

पिछले कुछ सालों में अफॉर्डेबल हाउसिंग की टर्म काफी प्रचलित हो गई है. आम जनमानस के जेहन में अफॉर्डेबल हाउसिंग का सीधा-सीधा मतलब एक दो कमरे वाला मकान, किचन और बाथरूम आता है. हालांकि कुछ लोग इसमे बालकनी की भी इच्छा रखते हैं. इन सबके लिए आपको कम से कम 500-600 स्क्वायर फुट की जगह चाहिए. लेकिन कम ही लोगों को यह बात पता होगी कि हॉन्ग-कॉन्ग में अफॉर्डेबल हाउसिंग के नाम पर 220 स्क्वायर के फ्लैट भी मिलते हैं? यह सुनकर आप सोच में पड़ गए होंगे कि इतनी कम जगह में आप कहां तो बेडरूम बनाएंगे, कहां किचन और कहां बाथरूम? ऐसे में बालकनी की तो बात ही बेमानी है. 

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दरअसल, अगर आप हॉन्ग-कॉन्ग में रहने का सपना देख रहे हैं तो आपको पास ढेर सारा पैसा होना चाहिए. इसके अलावा एक रास्ता कॉम्प्रोमाइज का भी बचता है. क्योंकि यहां फ्लैट्स की कीमत इतनी ज्यादा है कि माइक्रो और नैनो फ्लैट कस कॉन्सेप्ट ही निकल आया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार माइक्रो फ्लैट लगभग 220 स्क्वायर फुट जगह में बना होता है. जबकि नैनो तो इससे भी कम जगह यानी 130 स्क्वायर फुट के फ्लैट में ही निर्मित होता है. अब तो आपकी समझ में ही गया होगा कि माइक्रोफ्लैट में आप केवल एक बेड, मेज और कुर्सी ही रख पाएंगे. इसका मतलब यह है कि माइक्रोफ्लैट और नोफ्लैट केवल इतनी जगह में बने होते हैं, जितनी की एक कार पार्किंग.

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हॉन्ग-कॉन्ग में अफॉर्डेबल हाउसिंग का कॉन्सेप्ट 2015 के बाद ही आया. जबकि 2015 से पहले  प्राकृतिक रोशनी और वेंटिलेशन का होना जरूरी था. इसके साथ ही किचन का घर से अलग होना जरूरी था. लेकिन हाउसिंग नियम जैसे ही आसान हुए तो ओपन किचन का चलन शुरू हो गया. तब माइक्रो और नैनो फ्लैट की कल्चर शुरू हो गया. इन फ्लैट्स में बाथरूम इतने तंग होते हैं कि कई स्थानों पर टॉयलेट शीट के ऊपर ही शॉवर फिट होता है.