सऊदी अरब, यूएई, बहरीन, यमन और मिश्र के कतर के साथ कूटनीतिक संबंधों को तोड़े जाने के बाद खाड़ी देशों में राजनीतिक संकट गहराने लगा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ने की संभावना जताई जा रही है।
सऊदी के नेतृत्व में की गई नाकेबंदी ने खाड़ी देशों के लिए भारत की कूटनीतिक और आर्थिक मोर्चे पर मुश्किलों को बढ़ा दिया है।
भारत का सऊदी अरब और कतर के साथ समान रुप से पारस्परिक संबंध है लेकिन अब सऊदी के नेतृत्व में कतर की नाकेबंदी के बाद खाड़ी देशों के लिए भारत की विदेश नीति को संतुलित करना ज्यादा चुनौतीपूर्ण होगा।
पिछले कुछ वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में सऊदी और कतर के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों में तेजी आई है लेेकिन अब इस नाकेबंदी के बाद भारत के लिए सऊदी और कतर के साथ अपने कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को साधने में व्यावहारिक दिक्कतें आएंगी।
चारों देशों ने कतर पर इस्लामी आतंकवाद को बढ़ावा देने और क्षेत्रीय अस्थिरता फैलाने के आरोप सभी तरह के रिश्ते तोड़ लिए हैं। इसके बाद लीबिया और मालदीव ने भी इन देशों के साथ आते हुए कतर से दूरी बना ली है।
ऊर्जा सुरक्षा पर होगा असर
भारत की अर्थव्यवस्था ऊर्जा सुरक्षा के लिए पूरी तरह से खाड़ी देशों से होने वाले तेल के आयात पर निर्भर करता है। भारत कच्चे तेल के लिए जहां सऊदी अरब पर निर्भर है वहीं कतर पर उसकी निर्भरता प्राकृतिक गैस को लेकर है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पिछेल करीब तीन सालों से कच्चे तेल की कीमतें स्थिर बनी हुई, जिसका फायदा भारत को मिलता रहा है।
ऐसे में अगहर आने वाले दिनों खाड़ी देशों के बीच संकट गहराता है तो कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी होगी, जिसका असर भारत के आय़ात बिल पर पड़ेगा, जो महंगाई को बढ़ाएगा। भारत में अभी महंगाई दर नियंत्रण में है लेकिन कच्चे तेल की कीमतों में हुई बढ़ोतरी इसे बढ़ाएगी, जिसे रोजमर्रा के सामानों की कीमतों में बढ़ोतरी होगी।
विदेशी मुद्रा भंडार पर असर
खाड़ी के देशों में बड़ी संख्या में भारतीय कामगार रहते हैं और इनके द्वारा भेजी जाने वाली बचत की रकम भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे अधिक योगदान देती है। कतर के साथ अन्य देशों के खराब रिश्ते की वजह से अगर इस क्षेत्र में काम करने वाले भारतीय कामगारों पर पड़ने वाला असर भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
हालांकि विदेश मंत्री सुषमा स्वाराज ने इन चिंताओं को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि खाड़ी देशों में पहली बार ऐसी स्थिति नहीं बनी है।
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एफडीआई निवेश पर प्रभाव
कतर का हालांकि भारत में विदेशी निवेश मामूली है लेकिन कतर के सॉवरेन फंड और निवेशक भारत के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश की योजना बना रहे हैं।
दिसंबर 2005 में मोदी सरकार ने देश की बड़ी बुनियादी परियोजनाओं की फंडिंग संबंधित दिक्ततों को दूर करने के लिए एनआईआईएफ (NIIF) का गठन किया था।
गठन के बाद इस फंड ने न तो किसी बड़ी परियोजना में निवेश किया है और नहीं इस फंड में किसी निवेशक ने पैसा डाला है। कतर की नाकेबंदी से इस फंड में होने वाले निवेश पर असर पड़ सकता है।
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HIGHLIGHTS
- कतर की नाकेबंदी से परेशान होगा भारत, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी और आयात खर्च में हो सकती है बढ़ोतरी
- भारत की अर्थव्यवस्था ऊर्जा सुरक्षा के लिए पूरी तरह से खाड़ी देशों से होने वाले तेल के आयात पर निर्भर करता है
- भारत कच्चे तेल के लिए जहां सऊदी अरब पर निर्भर है वहीं कतर पर उसकी निर्भरता प्राकृतिक गैस को लेकर है
Source : Abhishek Parashar