अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 2016 की चुनावी घोषणा के मुताबिक पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलने की घोषणा कर दी है।
समझौते से अलग होने के बाद ट्रंप ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, 'हमारे नागरिकों के संरक्षण के अपने गंभीर कर्तव्यों को पूरा करने के लिए अमेरिका का पेरिस जलवायु समझौते से हटना ज़रुरी है।'
ट्रंप ने कहा कि वे चाहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को लेकर पेरिस समझौते में अमेरिकी हितों के लिए एक उचित समझौता किया जाए। हालांकि ट्रंप ने आगे फिर से अपनी शर्तों पर बातचीत करने का भरोसा भी दिलाया है।
बता दें कि ट्रंप सरकार के इस निर्णय से ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के वैश्विक प्रयासों और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को झटका लगेगा। हालांकि यूएन के महासचिव ने भरोसा जताते हुए कहा है कि पेरिस एग्रीमेंट से जुड़े बाकी सभी देश इस मसले पर अपना सहयोग जारी रखेंगे।
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फ़्रांस, जर्मनी, इटली ने यूएस के इस फैसले पर अपनी निराशा ज़ाहिर करते हुए एक संयुक्त बयान में कहा है कि पेरिस जलवायु समझौते पर फिर से बातचीत नहीं हो सकती।
वहीं फ़्रांस के राष्ट्रपति ने कहा है कि इस मसले पर कोई प्लान बी नहीं है क्योंकि प्लेनेट B का कोई दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं है।
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लेकिन क्या आपको पता है कि पेरिस समझौता क्या है और ये इतना ख़ास क्यों है?
दरअसल साल 2015 में 191 देशों के बीच जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में सहमति बनी थी। इस समझौते का मक़सद है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाए।
पेरिस समझौते की मांग ग़रीब देशों की तरफ़ से रखी गई थी। जिसके मुताबिक सभी देशों को वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है।
बता दें कि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि 2 डिग्री से ऊपर के तापमान से धरती की जलवायु में बड़ा बदलाव हो सकता है। जैसे कि समुद्र तल की ऊंचाई बढ़ना, बाढ़, ज़मीन धंसने, सूखा, जंगलों में आग जैसी आपदाएं हो सकती हैं।
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वैज्ञानिक ने आगाह करते हुए कहा है कि ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन से प्रकृतिक आपदाओं की संभावना बहुत तेज़ी से बढ़ेंगी और इसे बढ़ाने के लिए ज़िम्मेदार होगी बिजली उत्पादन, गाड़ियां, और फ़ैक्टरी जैसी इंसानी ज़रूरतें।
चीन और अमरीका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है। वहीं प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन की बात करें तो भारत का इसमें दसवां स्थान है।
भारत का हर व्यक्ति 2.5 टन से कम कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन करता है। जबकि अमेरीका पहले नंबर पर आता है, जहां हर आदमी क़रीब 20 टन कार्बन उत्सर्जित करता है।
हालांकि भारत, चीन, रुस और ब्रिटेन जैसे कई देश इस समझौते का समर्थन करते हैं। इनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन से बचाव वैश्विक ज़िम्मेदारी है।
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HIGHLIGHTS
- साल 2015 में 191 देशों के बीच जलवायु परिवर्तन पर पेरिस में सहमति बनी थी।
- समझौते का मक़सद है कि वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखा जाए।
- अमेरीका पहले नंबर पर आता है, जहां हर आदमी क़रीब 20 टन कार्बन उत्सर्जित करता है।
- भारत, चीन, रुस और ब्रिटेन जैसे कई देश इस समझौते का समर्थन करते हैं।
Source : Deepak Singh Svaroci