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किसानों के प्रदर्शन पर ब्रिटेन की संसद में होगी बहस, भारत पर दबाव बनाने की कोशिश

ब्रिटेन में सरकार पर भारत में किसानों के प्रदर्शन और प्रेस की स्वतंत्रता पर बहस का दबाव बढ़ता जा रहा है. मांग की जा रही है कि सरकार किसानों के प्रदर्शन और प्रेस की आजादी पर एक सार्वजनिक बयान दे. 

Updated on: 04 Mar 2021, 01:29 PM

लंदन:

ब्रिटेन के सांसद भारत में प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता के मुद्दे पर अगले सोमवार (8 मार्च)  को बहस करेंगे. यह बहस उस ई-अर्जी पर की जा रही है जिसमें एक लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर मिले हैं जो इस तरह की चर्चा के लिए जरूरी होते हैं. इस बात की पुष्टि हाउस ऑफ कॉमन्स याचिका समिति ने कर दी है. इस मुद्दे पर 90 मिनट तक चर्चा की जाएगी. यह चर्चा लंदन में हाउसेस आफ पार्लियामेंट परिसर में वेस्टमिंस्टर हॉल में होगी. जानकारी के मुताबिक इस चर्चा की शुरुआत स्कॉटिश नेशनल पार्टी (एसएनपी) के सांसद और याचिका समिति के सदस्य मार्टीन डे द्वारा की जाएगी. वहीं ब्रिटेन सरकार की ओर से इसका जवाब देने के लिए एक मंत्री की प्रतिनियुक्ति की जाएगी. बहस ‘भारत सरकार से प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा और प्रेस की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का आग्रह करें' शीर्षक वाली अर्जी से संबंधित है जिसमें ब्रिटेन की सरकार से अनुरोध किया गया था कि वह 'किसानों के प्रदर्शन और प्रेस की आजादी' पर एक सार्वजनिक बयान दे.

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अगले हफ्ते इस मुद्दे के बहस के लिए आने की उम्मीद की जा रही है कि इसमें वे सांसद शामिल होंगे जो भारत में किसानों के विरोध के मुद्दे पर मुखर रहे हैं. इन सांसदों में विपक्षी लेबर सांसद तान ढेसी भी शामिल हैं. भारत ने इस बात पर जोर दिया है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को भारत के लोकतांत्रिक लोकाचार और राजनीति के संदर्भ में देखा जाना चाहिए. भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि कुछ निहित स्वार्थी समूहों ने देश के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समर्थन जुटाने की कोशिश की है.

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इस मामले में विदेश मंत्रालय ने पिछले महीने ही एक एक बयान जारी कर कहा था कि 'इस तरह के मामलों पर टिप्पणी करने से पहले, हम आग्रह करेंगे कि तथ्यों का पता लगाया जाए और मुद्दों पर उचित समझ बनाई जाए.' हजारों किसान पिछले साल नवंबर से दिल्ली के कई सीमा बिंदुओं पर डेरा डाले हुए हैं. ये प्रदर्शनकारी किसान सरकार से तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने और उन्हें उनकी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी प्रदान करने की मांग कर रहे हैं. सरकार और किसान यूनियनों के बीच कई दौर की बातचीत होने के बावजूद इस गतिरोध को हल करने में अभी तक मदद नहीं मिल पाई है.