भारत को मिलने जा रही है एक और अहम अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी, इस तरह बढ़ेगा कद
सीटीबीटीओ ने परमाणु प्रतिबंधों पर नजर रखने के लिए भारत को पर्यवेक्षक बनाने का प्रस्ताव दिया है. इस तरह भारत आईएमएस में एक महत्वपूर्ण आवाज बनकर उभर सकता है.
highlights
- सीटीबीटीओ सभी जगहों के परमाणु हथियारों एवं विस्फोट पर अपनी नजर बनाए रखती है.
- वर्तमान में आईएमएस के पास 89 देशों में कुल 337 केंद्र हैं.
- हालांकि भारत ने अभी तक नहीं किए हैं सीटीबीटी पर हस्ताक्षर.
वियना.:
सीटीबीटीओ (द कॉपंरिहेंसिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटि ऑर्गेनाइजेशन) ने भारत को पर्यवेक्षक की भूमिका निभाने का प्रस्ताव देते हुए आईएमएस (इंटरनेशनल मॉनीटरिंग सिस्टम) तक पहुंच स्थापित करने की बात कही है. ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में स्थित सीटीबीटीओ हेडक्वार्टर में कार्यकारी सचिव लेसिना जेरबो ने भारतीय पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा, 'मैं इसके लिए किसी अनुबंध की बात नहीं कर रही हूं. मगर मैं सोचती हूं कि इसकी शुरुआत के लिए भारत को मौका देना बेहतरीन कदम हो सकता है.'
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सीटीबीटीओ की जिम्मेदारी है अहम
सीटीबीटीओ इंटरनेशनल मॉनीटरिंग सिस्टम चलाती है जोकि सभी जगहों के परमाणु हथियारों एवं विस्फोट पर अपनी नजर बनाए रखती है और साथ ही इसकी रिपोर्ट अपने सदस्यों को भी भेजती है. वर्तमान में आईएमएस के पास 89 देशों में कुल 337 केंद्र हैं. जेरबो ने कहा, 'मैं मानती हूं कि भारत इस संबंध में काफी डाटा एकत्रित करेगा जोकि अभी तक आपके पास नहीं है. आप कहीं भी समानता से जरूरत का डाटा एकत्रित कर भूकंप व परमाणु से संबंधित विकिरण का पता लगा सकते हैं.'
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भारत ने नहीं किए हैं संधि पर दस्तखत
सीटीबीटी विश्वभर में परमाणु विस्फोट पर प्रतिबंध को लेकर एक वैश्विक संधि है. संयुक्त राष्ट्र महासभा में स्वीकार करने के बाद 1996 में इसे हस्ताक्षर के लिए रखा गया था. यह संधि लागू होनी इसलिए ही जरूरी हो गई थी कि कई देशों द्वारा इस संबंध में पक्षपात जैसा रवैया अपनाया जा रहा था, जिनमें भारत भी शामिल था.
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पांच विकसित देशों के हित साधती है संधि
भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए क्योंकि यह महज पांच परमाणु संपन्न देश चीन, अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन के हित में थी. इस दिशा में भारत पूर्णतया परमाणु हथियारों के प्रतिबंध पर सहमत था. अमेरिका और चीन ने हालांकि इस संधि पर हस्ताक्षर किए. मगर हस्ताक्षर के बावजूद वह इसे प्रमाणित नहीं कर पाए. इस संधि पर पाकिस्तान ने भी अभी तक हस्ताक्षर नहीं किए हैं.
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