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स्टडी का दावा, चीन नहीं यूरोप में था कोरोना (Corona) का पहला मरीज

उत्तर-पूर्व फ्रांस के कॉलमार में स्थित अल्बर्ट श्वित्जर अस्पताल के डॉक्टर माइकल श्मिट की टीम ने दावा किया है कि यूरोप में पहला कोरोना का केस 16 नवंबर 2019 को ही सामने आया था.

Updated on: 02 Jun 2020, 05:59 PM

नई दिल्ली:

कोरोना वायरस (Coronavirus) दुनिया के हर मुल्क में तबाही फैला रखी है. चीन के वुहान से निकला कोरोना वायरस शायद ही कोई ऐसा मुल्क हो जिसे बख्शा है. इस बीच एक चौंकाने वाली खबर सामने आई है. चौंकाने वाला जो खुलासा हुआ है ये वो है कि कोरोना का पहला केस चीन से नहीं आया, बल्कि यूरोप से निकला है. फ्रांस के वैज्ञानिकों की टीम ने यह दावा किया है.

उत्तर-पूर्व फ्रांस के कॉलमार में स्थित अल्बर्ट श्वित्जर अस्पताल के डॉक्टर माइकल श्मिट की टीम ने दावा किया है कि यूरोप में पहला कोरोना का केस 16 नवंबर 2019 को ही सामने आया था. जबकि चीन ने 31 दिसंबर 2019 को कोरोना संक्रमण की जानकारी पूरी दुनिया को दी थी. कोरोना के संक्रमण की खबर 7 जनवरी 2020 को पुख्ता हुई थी.

फ्रांस के अस्पताल में नवंबर में कोरोना वायरस की पुष्टि हुई थी

दरअसल, उत्तर-पूर्व फ्रांस के एक अस्पताल ने नवंबर से दिसंबर के बीच अस्पताल में फ्लू की शिकायत लेकर आए 2500 से ज्यादा लोगों की एक्स-रे रिपोर्ट का अध्ययन किया है. स्टडी के अनुसार नवंबर में ही दो एक्सरे रिपोर्ट ऐसी आई जिनमें कोरोना वायरस की स्पष्ट पुष्टि हुई. हालांकि उस दौरान डॉक्टर्स को इसकी जानकारी नहीं थी.

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कोलमार के अल्बर्ट श्वित्जर अस्पताल के डॉ. माइकल श्मिट और उनकी टीम द्वारा की गई स्टडी से जो बातें सामने आई है वो अभी तक जिन्हें यूरोप के देशों में केस जीरो माना जा रहा है, वो दावे गलत भी साबित हो सकते हैं.

डेली मेल में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस अस्पताल में 16 नवंबर को एक व्यक्ति का एक्सरे किया गया था जिसकी रिपोर्ट देखकर स्पष्ट होता है कि उसे कोरोना संक्रमण था. इसी व्यक्ति का अगले दिन भी एक एक्सरे कराया गया था जिसमें फिर से इस संक्रमण के लक्षण दिखाई दिए.

फ्रांस ने 24 जनवरी को पहले कोरोना संक्रमण के मामले की पुष्टि की थी

बता दें कि फ्रांस ने 24 जनवरी को पहले कोरोना संक्रमण के मामले की पुष्टि की थी. हालांकि इस टीम के दावे के मुतबिक पहला केस 16 नवंबर को सामने आया.

डॉक्टर माइकल श्मिट ने कहा कि 'केस जीरो' जिसे माना जा रहा था वो असल में जीरो पेशेंट नहीं था और इसी के चलते कई मामले ट्रैक नहीं हुए. वो अंजाने में क्लस्टर बन गए. इस टीम के मुताबिक दिसंबर के हुए एक्सरे की जांच में सामने आया कि कुल 12 लोग ऐसे थे जिनमें कोरोना संक्रमण के स्पष्ट लक्षण नजर आ रहे थे.

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अमेरिका के खुफिया एजेंसियों का दावा था कि कोरोना वायरस चीन में नवंबर में फैला

वहीं, अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने दावा किया था कि वुहान में कोरोना वायरस का संक्रमण नवंबर में ही फैला था. डॉ. माइकल श्मिट कहते हैं कि सबसे पहले मरीज का पता लगाने के बाद बीमारी के फैलने और उसके प्रभाव का अध्ययन आसानी से हो सकता है. साथ ही वैक्सीन बनाने में भी मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि हम भविष्य को सुधार सकते हैं अगर इतिहास को जान लें तो.

अक्टूबर में किए गए एक्सरे की जांच की जा रही है ताकि जीरो पेशेंट तक पहुंचा जा सके

वहीं, वॉशिगंटन यूनिवर्सिटी के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. विन गुप्ता ने बताया कि उन्होंने माइकल श्मिट की पूरी रिपोर्ट पढ़ी है.  डॉ. श्मिट के पास इसके प्रमाण भी हैं. हो सकता है कि चीन से पहले शुरुआती कोरोनावायरस के लक्षण ऐसे ही रहे हों जैसे यहां के दो मरीजों के एक्सरे में दिख रहे हैं. डॉक्टर विन के मुताबिक एक्सरे में जो फेफड़े नज़र आ रहे हैं उनमें वो असामान्यता नज़र आ रही है, जो कोरोना संक्रमण से होती है. हालांकि सभी एक्सरे में ऐसा नहीं है. ये टीम अब अक्टूबर में किये गए एक्सरे की जांच भी कर रही है जिससे असल जीरो पेशेंट तक पहुंचा जा सके.