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चीन की चेतावनी दरकिनार‌‌: अमेरिकी परियोजना एमसीसी को पास करेगा नेपाली संसद

चीन के तमाम विरोध, चेतावनी और हस्तक्षेप के बावजूद नेपाल की सत्ताधारी गठबन्धन ने अमेरिकी सहयोग वाली परियोजना एमसीसी को संसद से पास करने का निर्णय कर लिया है.

Updated on: 27 Feb 2022, 03:20 PM

highlights

  • अमेरिकी धमकी के बाद झुका नेपाल
  • माओवादी पार्टी के नेता ने देश को चेताया 
  • यूक्रेन जैसी हो जाएगी नेपाल की हालत

नई दिल्ली:

चीन के तमाम विरोध, चेतावनी और हस्तक्षेप के बावजूद नेपाल की सत्ताधारी गठबन्धन ने अमेरिकी सहयोग वाली परियोजना एमसीसी को संसद से पास करने का निर्णय कर लिया है. आज सुबह सत्तारूढ़ गठबंधन की बैठक में एमसीसी पारित करने के साथ ही व्याख्यात्मक टिप्पणी को भी सदन से पारित कराने का फैसला किया है. रविवार दोपहर से शुरू हो रही संसद की कार्यवाही में 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर के आर्थिक सहयोग संबंधी एमसीसी परियोजना पर बहस करने और आज ही मतदान कर उसे पारित करने का फैसला लिया गया है. अमेरिका ने इस परियोजना को हर हाल में 28 फरवरी तक संसद से पास करने का अल्टीमेटम दिया था. अल्टीमेटम के एक दिन पहले सत्ताधारी गठबंधन में नाटकीय ढंग से आए परिवर्तन के बाद इस परियोजना को संसद से स्वीकृत करने पर सहमति बनी है. 

दरअसल, प्रधानममंत्री शेर बहादुर देउवा के नेतृत्व में रहे गठबन्धन के दो प्रमुख घटक दल माओवादी और एकीकृत समाजवादी पार्टी शुरू से ही इस बात पर अड़ी थी कि एमसीसी नेपाल के हित में नहीं है. यह राष्ट्रघाती समझौता है, इसको स्वीकार नहीं करना चाहिए. माना जा रहा है कि इन दोनों दलों के विरोध के पीछे चीन का दबाव काम कर रहा था. दरअसल, चीन ने खुलेआम नेपाल को एमसीसी नहीं स्वीकारने के लिए नेपाली राजनीतिक दलों पर दबाव डाला था. चीन का यह तर्क था कि एमसीसी के जरिए नेपाल में अपनी सैन्य उपस्थिति बढाएगा और वहां से तिब्बत के जरिए चीन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है. इसको लेकर चीन की सरकारी मीडिया के जरिए लगातार आपत्ति जताई जाने लगी. 

इतना ही नहीं, चाईनीज कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश विभाग हर दूसरे दिन नेपाल के सत्ताधारी नेताओं को फोन के जरिए और वर्चुअली मीटिंग कर एमसीसी को अस्वीकृत करने के लिए दबाव डालते रहे. यही वजह थी कि अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने नेपाल के प्रधानमंत्री देउवा सहित सत्तारूढ दल के नेता प्रचण्ड और माधव नेपाल को फोन कर 28 फरवरी तक हर हाल में एमसीसी को संसद से पारित करने के लिए दबाव डाला . इतना ही नहीं, अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री ने नेपाल सरकार और नेपाली राजनीतिक दलों के नेताओं को चेतावनी दी कि अगर संसद से एमसीसी पास नहीं होता है तो इसे सीधे सीधे चीन का हस्तक्षेप माना जाएगा और उसके बाद नेपाल के साथ कूटनीतिक संबंधों पर अमेरिका पुनर्विचार करने पर मजबूर हो जाएगा. अमेरिकी चेतावनी के बाद प्रधानमंत्री ने इसे गम्भीरता से लिया और सत्तारूढ़ गठबंधन तोड़कर भी एमसीसी पास करने का प्रयास करने लगे. 

अमेरिका के मंत्री की चेतावनी के 24 घंटे बाद ही अमेरिका के विदेश मंत्री ने मीडिया को इंटरव्यू देते हुए नेपाल की अपनी नीति पर पुनर्विचार करने और अमेरिका सहित सभी मित्र देशों और आर्थिक मदत करने वाली संस्थाओं  वर्ल्ड बैंक, एशियाई विकास बैंक, यूएन की तमाम डोनर संस्थाओं के तरफ से हर साल दिए जाने वाले आर्थिक मदत पर इसका सीधा असर पडने तक की बात कह डाली. अमेरिका के इन बयानों के बाद बौखलाए चीन ने अपने विदेश मंत्रालय के जरिए अमेरिका का विरोध करना शुरू कर दिया. पिछले दिनों 24 घंटे में दो बार चीन के तरफ से नेपाल को अमेरिकी सहयोग को लेकर सतर्क रहने को कहा गया. इतना ही नहीं, अमेरिका की चेतावनी पर चीन ने तंज कसते हुए कहा कि यह कैसा आर्थिक मदत है, जो डरा धमका कर दिया जा रहा है. अमेरिका के इस धमकीपूर्ण कूटनीति का हम विरोध करते हैं . नेपाल एक स्वतंत्र और सार्वभौम देश है, इसलिए इस तरह का डर धमकीपूर्ण भाषा को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. 

जवाब में अमेरिका ने भी कहा कि नेपाल अपना निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है और जिस देश से चाहे वो आर्थिक मदत ले सकता है. इसमें किसा तीसरे देश को बोलने की या सलाह देने की कोई जरूरत नहीं है. पलटकर चीन ने भी अमेरिका को अगले ही दिन कहा कि यह आर्थिक मदत है या पंडोरा बक्स जो जबरदस्ती नेपाल के गले में बांधा जा रहा है. 

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अमेरिका और चीन के बीच कूटनीति की तमाम मर्यादा को लांघते हुए निम्न स्तर की भाषा के प्रयोग के बीच आखिरकार चीन को झुकना पड़ा. सिर्फ झुकना ही नहीं पड़ा, बल्कि उसे शर्मिंदगी का सामना करना भी पड़ा. जब सत्ता में बैठे उसके विश्वासपात्र तीन महत्वपूर्ण नेताओं ने चीन का विश्वास भरोसा तोड़कर अमेरिका का पक्ष लेने का फैसला कर लिया है. नेपाल में यह चीन को बहुत बड़ा झटका है और डर त्रास धमकी ही सही अमेरिका ने चीन को उसके पड़ोस में ही पटखनी देने में कामयाब हो गया है. अब बौखलाया चीन नेपाल के खिलाफ क्या कदम उठाएगा, इसको लेकर नेपाल के कम्युनिस्ट नेताओं में अलग ही चिंता का विषय है. 

माओवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता और नेपाल के पूर्व विदेश मंत्री नारायणकाजी श्रेष्ठ ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि चीन के खिलाफ जाकर अमेरिका को सपोर्ट करने से नेपाल की हालत यूक्रेन जैसी न हो जाए. जिस तरह से अमेरिका उकसाहट में यूक्रेन को अभी पड़ोसी रूस के युद्ध और आक्रमण का सामना करना पड़ रहा है. इस तरह के हालात नेपाल में नहीं होंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.