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चीन और पाकिस्तान ने दी तालिबान को मान्यता, जानें भारत के लिए इसके मायने

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है. तालिबानी अब अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने की कवायद जुट गए हैं. तालिबानी लड़ाकों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया है.

Updated on: 19 Aug 2021, 06:36 PM

नई दिल्ली:

अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है. तालिबानी अब अफगानिस्तान में अपनी सरकार बनाने की कवायद जुट गए हैं. तालिबानी लड़ाकों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया है. इस बीच खबर आ रही है कि काबुल एयरपोर्ट पर तालिबानियों ने फायरिंग की है, जिसमें कई लोग मारे गए हैं. तालिबान के लड़ाकों ने अफगानिस्तान के असदाबाद में आजादी का जश्न मना रहे लोगों पर गोलीबारी कर दी. इस घटना में कई लोगों के मारे जाने की जानकारी मिली है. आपको बता दें कि अफगान की असदाबाद सिटी में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक रैली निकाली गई थी. मौके पर मौजूद एक एक शख्स मोहम्मद सलीम ने बताया कि तालिबान की ओर से की गई फायरिंग में कई लोगों की मौत हुई है, जबकि गोलीबारी के चलते मची भगदड़ भी लोगों की मौत का कारण हो सकती है. वहीं, चीन और पाकिस्तान ने तालिबान को मान्यता दे दी है. अब तालिबान को लेकर भारत की क्या कूटनीति रहेगी, आइये जानते हैं यहां...

  • तालिबान ने 15 अगस्त को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर कब्जा कर लिया.
  • इसके एक दिन बाद 16 अगस्त को चीन ने औपचारिक तौर पर तालिबान शासन को मान्यता भी दे दी.
  • चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि चीन अफगान लोगों को अपना भाग्य तय करने के अधिकार का सम्मान करता है. वह अफगानिस्तान के साथ दोस्ताना और सहयोगी संबंध बनाना चाहता है.
  • चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने तियांजिन में तालिबान के नौ सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की थी. इस मुलाकात में तालिबान का सह-संस्थापक और डिप्टी लीडर मुल्ला अब्दुल गनी बरादर भी मौजूद था.

कूटनीतिक मान्यता क्या है?

  • एक तरह से यह कूटनीतिक रिश्ते बनाने का पहला पड़ाव है. एक संप्रभु और स्वतंत्र देश जब किसी दूसरे संप्रभु या आजाद देश को मान्यता देता है तो उन दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्तों की शुरुआत होती है.
  • मान्यता देना या न देना, राजनीतिक फैसला है. कूटनीतिक रिश्ते बनते हैं तो दोनों देश इंटरनेशनल कानून को मानने और उसका सम्मान करने के लिए बाध्य हो जाते हैं.
    मान्यता देने की कार्यवाही सिर्फ इस घोषणा से ही पूरी हो जाती है कि एक सरकार किसी और सरकार से रिश्ते बनाने के लिए तैयार है.
  • नई सरकार को जब अन्य सरकारों से यह मान्यता मिल जाती है तो उसके लिए अपनी आजादी, अस्तित्व और बातचीत के लिए डिप्लोमेटिक चैनल्स और इंटरनेशनल कोर्ट का इस्तेमाल करना आसान हो जाता है.
  • कूटनीतिक मान्यता का मतलब होता है कि दोनों देश विएना कन्वेंशन ऑन डिप्लोमेटिक रिलेशंस (1961) में तय किए गए विशेषाधिकारों और जिम्मेदारियों को स्वीकार करते हैं.
  • अगर किसी देश में सरकारों को मान्यता नहीं मिलती तो वह देश इंटरनेशनल ट्रीटी में शामिल नहीं हो सकते.
  • इंटरनेशनल प्लेटफॉर्म पर उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिलता.
  • उनके कूटनीतिक प्रतिनिधि विदेशों में लीगल एक्शन से छूट नहीं पा सकते हैं.
  • वे किसी और सरकार के सामने या विदेशी अदालतों में प्रोटेस्ट या प्रदर्शन नहीं कर सकते हैं.
  • जब यह माना जाता है कि कोई सरकार अपने देश में विदेशी हितों को सुरक्षित रखने में नाकाम रही है या इंटरनेशनल स्तर पर जवाबदेही पूरा नहीं कर पा रही है तो उसके अन्य देशों से रिश्ते खराब हो सकते हैं.
  • सैन्य विद्रोह या बगावत को भी उस समय मान्यता मिलती है जब वहां की नई सरकारें यह सुनिश्चित करती हैं कि इंटरनेशनल लेवल पर वह जिम्मेदारी निभाने को पूरी तरह तैयार हैं.

चीन ने दी मान्यता, भारत पर असर 

  • 1996 में अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को पाकिस्तान, UAE और सउदी अरब ने ही मान्यता दी थी.
  • इस बार हालात बदले हुए हैं. यह संकेत देता है कि इस बार कई देश तालिबान को मान्यता देने की तैयारी में हैं.
  • चीन ने तो तालिबान शासन को मान्यता देने में जरा भी देर नहीं की.
  • चीन, पाकिस्तान, रूस और ईरान जैसे देशों का प्रभाव बढ़ेगा और अमेरिका का कम होगा.
  • चीन और पाकिस्तान ऐसी स्थिति में तालिबान के कंट्रोल वाले अफगानिस्तान में भारत के एंगेजमेंट को कम करने की कोशिश करेंगे.
  • अब तक भारत की अफगानिस्तान से जुड़ी कूटनीति को अमेरिका से जोड़कर देखा गया है. यह एक बड़ी गलती भी है. इसका फायदा चीन और पाकिस्तान जैसे देश अमेरिका और भारत का प्रभाव कम करने में उठा सकते हैं.
  • ये सब जानते हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान को अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने में मदद की थी, उसने अपने 20 हज़ार लड़के तालिबान की तरफ से लड़ने के लिए अफगानिस्तान भेजे थे.
  • पाकिस्तान की तरफ से लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकवादी संगठन भी अफगानिस्तान जाकर तालिबान के लिए लड़े थे, अब जबकि तालिबान अफगानिस्तान में काबिज हो चुका है, लिहाज़ा ये माना जा रहा है कि तालिबान भी पाकिस्तान की मदद के बदले भारत के खिलाफ उसकी सहायता कर सकता है.
  • दूसरी तरह चीन ने भी तालिबान को मान्यता दे दी है, दरअसल चीन को डर है कि कही तालिबान अफगानिस्तान से सटे उसके शिनझियांग प्रांत में रह रहे वीगर मुसलमानों को चीन के खिलाफ भड़काकर चीन में अराजकता न फैला दे, इसलिए चीन ने तालिबान को तत्काल मान्यता देते हुए उससे दोस्ती कर ली.
  • साथ ही चीन के लिए अपनी वन रोड वन बेल्ट परियोजना को अफगनिस्तान तक पहुंचने में भी आसानी हो जाएगी.
  • अगर भारत पर इसके असर की बात की जाए तो ये भारत के लिए कही से भी अच्छा नहीं कहा जा सकता, इससे न केवल भारत का दखल चीन में कम होगा बल्कि इस क्षेत्र में भारत की भूमिका भी कम हो जाएगी.