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UNGA में बोलीं बांग्लादेश की PM शेख हसीना, रोहिंग्या देश की स्थिरता पर गंभीर संकट

इस मामले में बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने यूएन से प्रभावी भूमिका निभाने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि रोहिंग्याओं की लंबे समय तक उपस्थिति ने सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाला है.

Updated on: 24 Sep 2022, 08:06 AM

highlights

  • यूएन से प्रभावी भूमिका निभाने का आग्रह किया
  • सीमा पार से संगठित अपराध लगातार बढ़ रहे हैं: हसीना
  • कहा, स्थिति संभावित रूप से कट्टरता को बढ़ावा दे रही है

न्यूयॉर्क:

संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77 वें सत्र को संबोधित करते हुए बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने देश रोहिंग्या शरणार्थी संकट को उजागर किया. उन्होंने कहा कि ये शरणार्थी बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, सुरक्षा और देश की सामाजिक-राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाल रहे हैं. इस मामले में उन्होंने यूएन से प्रभावी भूमिका निभाने का आग्रह किया. बांग्लादेश में रोहिंग्याओं की लंबे समय तक उपस्थिति ने सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता पर गंभीर प्रभाव डाला है.

पीएम हसीना यूएनजीए में भाग लेने के लिए न्यूयाॅर्क पहुंची हैं. उन्होंने कहा कि शरणार्थी समस्या के कारण देश में व्यापक निराशा का माहौल है. मानव और मादक पदार्थों की तस्करी सहित सीमा पार से संगठित अपराध लगातार बढ़ रहे हैं. पीएम हसीना ने कहा कि स्थिति संभावित रूप से कट्टरता को बढ़ावा दे रही है. अगर समस्या आगे भी बनी रहती है तो यह क्षेत्र और उससे आगे की सुरक्षा और स्थिरता पर प्रभाव डालेगी.

2017 में म्यांमार से बांग्लादेश में रोहिंग्याओं का बड़े पैमाने पर पलायन हुआ था. उन्होंने बीते पांच वर्षों को याद करते हुए कहा कि नायपीडॉ के साथ जुड़ाव और संयुक्त राष्ट्र के साथ जुड़ाव के बावजूद एक भी रोहिंग्या को म्यांमार में उनके पैतृक घरों में वापस नहीं लाया गया. उन्होंने कहा कि देश में चल रहे राजनीतिक उथल-पुथल और हथियारों के संघर्ष ने रोहिंग्याओं की वापसी को और भी मुश्किल बना दिया है. मुझे उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र इस संबंध में प्रभावी  भूमिका निभाएगा.

हसीना ने कहा कि इस संकट का हल निकालने में यूएन की बहुपक्षीय प्रणाली आधारशिला बन सकती है. लोगों का सभी स्तर पर विश्वास हासिल करने के लिए संयुक्त राष्ट्र को सामने से नेतृत्व करना होगा. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश का मानना ​​है कि युद्ध या आर्थिक प्रतिबंध, प्रतिबंध जैसी कवायद कभी किसी देश का भला भला नहीं कर सकती. संकटों और विवादों को सुलझाने के लिए संवाद बेहतर विकल्प है.