इराक में कर्फ्यू, 20 प्रदर्शनकारियों की मौत; गृहयुद्ध की ओर देश?
शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने राजनीति ही छोड़ने का ऐलान कर दिया, तो उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए. विरोधी भी सड़कों पर थे. लेकिन समर्थक पिछले 15 दिनों से हंगामा काटे थे. संसद से लेकर हर जगह कब्जा कर चुके थे. वीडियो दुनिया भर में वायरल हुए थे...
highlights
- शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने छोड़ी राजनीति
- पूरे देश में कोई राजनीतिक व्यनवस्था नहीं
- ग्रीन जोन में घुसने की कोशिश में 20 लोग ढेर
बगदाद:
गाड़ियों में पेट्रोल-डीजल की टंकियों पर लिखा होता था-'इराक का पानी'. पिछले दो दशक में इराक तबाह हो चुका है. अब वो खत्म होने की तरफ बढ़ रहा है. पिछले एक से कोई सरकार नहीं है. कोई मंत्री नहीं है. कोई व्यवस्था नहीं है. बस, जिसके हाथ में ताकत, वो 'अपना-अपना' इलाका चला रहे हैं. लोग परेशान हैं, इससे इतना ही फर्क पड़ा कि सोमवार को ताकतवर शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर ने राजनीति ही छोड़ने का ऐलान कर दिया, तो उनके समर्थक सड़कों पर उतर आए. विरोधी भी सड़कों पर थे. लेकिन समर्थक पिछले 15 दिनों से हंगामा काटे थे. संसद से लेकर हर जगह कब्जा कर चुके थे. वीडियो दुनिया भर में वायरल हुए थे. ऐसे में जब धर्मगुरु ने राजनीति ही छोड़ने का ऐलान कर दिया तो उन्होंने जमकर बवाल काट दिया. हालात ये हैं कि अभी पूरे देश में सेना ने आपातकाल और कर्फ्यू का ऐलान कर दिया है. लोगों से राजधानी बगदाद की तरफ आने से मना कर दिया गया है. इन बीच जारी बवंडर मे पिछले कुछ घंटों में लगभग 20 लोग मारे जा चुके हैं, ऐसा स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़े लोगों ने कहा है.
कहां मारे गए ये लोग?
इराक है. इराक की राजधानी है. राजधानी का नाम है बगदाद. इसी बगदाद के अंदर एक और देश सरीखा इलाका है, जिसे ग्रीन जोन कहते हैं. यहीं से अमेरिका ने पूरे इराक पर कभी कंट्रोल रखा था. अभी भी पूरे इराक में आग लग जाए, लेकिन ग्रीन जोन की तरफ देखना मतलब मौत को दावत देना. शिया धर्मगुरु मुक्तदा अल-सदर के समर्थक इसी को दावत देते हुए बगदाद के अंदर की दूसरी जगहों को छोड़कर ग्रीन जोन की तरफ बढ़ने लगे. ग्रीन जोन की एक गाइडलाइन है, जिसका उल्लघंन कोई नहीं कर सकता. लेकिन मुक्तदा अल-सदर के समर्थकों ने जब ग्रीन जोन की तरफ धावा बोला, तो अंदर से आग बरसने लगी. महज कुछ घंटों में अब तक करीब 20 लोग मारे जा चुके हैं. और जाने कितने घायल हैं.
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क्या है गतिरोध?
इराक में करीब साल भर से कोई सरकार नहीं है. कोई प्रधानमंत्री नहीं है. आबादी के लिहाज से सुन्नी सबसे ज्यादा संख्या में हैं. फिर शिया हैं. फिर कुर्द हैं. कुर्द अपने कुर्दिस्तान तक सीमित हैं. कभी सद्दाम का शासन था तो शिया सत्ता में थे, फिर सुन्नी आ गए. अब शियाओं के समर्थक सड़कों पर हैं, जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. अब दोनों ही पक्ष सड़कों पर हैं और आपस में भिड़ रहे हैं. क्या अंजाम होगा, वो तो वक्त ही बताएगा. फिलहाल सरकारी आवासों, कार्यालयों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा है. ग्रीन जोन में गोलियां चल रही हैं. अमेरिकी दूतावास के लोग निकल चुके हैं. उन्हें हेलीकॉप्टर से निकाला गया. लेकिन मरने को तैयार लोग मर रहे हैं. और ये कब तक चलता रहेगा, कोई नहीं जानता.
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