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पाकिस्तान में कोरोना की आड़ में शिया-सुन्नी विवाद को दी जा रही हवा, उलेमा विरोध में

संस्था वफाक-उल-मदारिस ने आरोप लगाया है कि देश में कोरोना वायरस (corona Virus) की आड़ में सांप्रदायिकता (Communalism) को हवा दी जा रही है और मस्जिदों व धार्मिक मुद्दों को निशाना बनाकर भड़काने वाली कार्रवाइयां की जा रही हैं.

Updated on: 20 May 2020, 07:59 AM

highlights

  • पाकिस्तान में फिर से शिया-सुन्नी विवाद को दी जा रही हवा.
  • सुन्नी संस्था ने एक फिरके को कोरोना फैलाने के लिए दोषी बताया.
  • कोरोना संक्रमण की आड़ में शिया-सुन्नी पर हो रहे हमले.

पेशावर:

पाकिस्तान (Pakistan) में सैकड़ों सुन्नी मदरसों का प्रबंधन देखने वाली संस्था वफाक-उल-मदारिस ने आरोप लगाया है कि देश में कोरोना वायरस (corona Virus) की आड़ में सांप्रदायिकता (Communalism) को हवा दी जा रही है और मस्जिदों व धार्मिक मुद्दों को निशाना बनाकर भड़काने वाली कार्रवाइयां की जा रही हैं. वफाक-उल-मदारिस से संबद्ध देश के कुछ सबसे खास उलेमा ने बयान जारी कर यह आरोप लगाया. उनके बयान में किसी संप्रदाय का नाम नहीं लिया गया है, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की भी बात की गई है लेकिन इस बयान से साफ है कि सांप्रदायिकता के आरोप का संबंध शिया-सुन्नी के पारंपरिक विवाद से जुड़ा हुआ है.

पाकिस्तान की छवि बनी सांप्रदायिक
बयान में उलेमा ने कहा है कि दुनिया के सामने पाकिस्तानी को एक गैर धार्मिक और सांप्रदायिक देश के रूप में पेश करने की कोशिश की जा रही है. कोरोना की आड़ में मस्जिदों, मदरसों व धार्मिक मामलों को निशाना बनाया जा रहा है. धर्म व धार्मिक परंपराओं के खिलाफ कोरोना का इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं है. बयान में 'इस सिलसिले में सरकारी अधिकारियों, सरकारी प्रतिनिधियों व संस्थाओं के रवैये की' आलोचना की गई है. इसमें उलेमा ने कहा कि कोरोना वायरस को सांप्रदायिकता को हवा देने और लोगों को भड़काने के लिए इस्तेमाल किया गया लेकिन 'धार्मिक नेतृत्व ने हमेशा की तरह इस तरह की सभी कोशिशों को नाकाम कर दिया और सौहार्द बनाए रखा.'

तबलीगी जमात को बनाया निशाना
बयान में उन घटनाओं का जिक्र किया गया है जो इन उलेमा के मुताबिक सांप्रदायिकता को हवा देने के लिए की गईं. इसमें कहा गया है कि जब (ईरान से) कोरोना संक्रमण के संदिग्ध पाकिस्तानी श्रद्धालुओं को वापस देश में लाया गया तो इस मामले में एक 'संतुलन' बनाने के लिए तबलीगी जमात के लोगों को निशाना बनाकर सांप्रदायिक विभेद को हवा दी गई. गौरतलब है कि महामारी की शुरुआत में ही ईरान से पाकिस्तान लौटे अधिकांश श्रद्धालु शिया समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. इनमें से कुछ में कोरोना के होने की पुष्टि हुई थी, जो पाकिस्तान में कोरोना के पहले मामलों में शामिल थे. यह मुद्दा मीडिया में उठा था.

शिया-सुन्नी जलसों पर तंज
जबकि, तबलीगी जमात एक सुन्नी संस्था है. इसके सदस्यों के कोरोना से संक्रमित होना एक अलग मामला है. कोरोना महामारी शुरू होने के समय ही मार्च के पहले पखवाड़े में लाहौर के पास तबलीग के मुख्यालय रायविंड में हजारों तबलीगी जलसे में जमा हुए थे. इनमें से कई को कोरोना हुआ था. यहां से निकलकर देश में अन्य जगहों पर गए लोग भी संक्रमित हुए थे और यह मुद्दा मीडिया में उठा था. गौरतलब है कि भारत में भी तबलीगी जमात के कार्यकर्ताओं के एक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद देश में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी देखने में आई थी.

एतकाफ पर भी विवाद
वफाक-उल-मदारिस के उलेमा ने इसी संदर्भ में हरजरत अली की शहादत दिवस पर निकाले गए जुलूसों और मस्जिदों में एतकाफ (रमजान के महीने में मस्जिदों के एकांत में किया जाने वाला एक तरह का मौन व्रत) पर रोक का भी मुद्दा उठाते हुए इसे भी सांप्रदायिक विभेद से जोड़ा. गौरतलब है कि हजरत अली के शहादत दिवस पर शिया समुदाय ने कुछ स्थानों पर लॉकडाउन प्रतिबंध के बावजूद जुलूस निकाले थे. बयान में कहा गया है कि देश भर के हर मत के उलेमा व धार्मिक नेताओं को तुरंत एक मंच पर आकर सांप्रदायिकता के खिलाफ नीति बनानी चाहिए और धर्म के सामुदायिक महत्व को रेखांकित करना चाहिए.