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तालिबान बनेगा पाकिस्तान के पैर पर कुल्हाड़ी, जानें कैसे

अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा करने के बाद तालिबान (Taliban) ने कत्लेआम शुरू कर दिया है. तालिबान के लड़ाकों ने गुरुवार को अफगानिस्तान के असदाबाद में आजादी का जश्न मना रहे लोगों पर गोलीबारी कर दी.

Updated on: 19 Aug 2021, 07:52 PM

नई दिल्ली:

अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा करने के बाद तालिबान (Taliban) ने कत्लेआम शुरू कर दिया है. तालिबान के लड़ाकों ने गुरुवार को अफगानिस्तान के असदाबाद में आजादी का जश्न मना रहे लोगों पर गोलीबारी कर दी. इस घटना में कई लोगों के मारे जाने की जानकारी मिली है. आपको बता दें कि अफगान की असदाबाद सिटी में स्वतंत्रता दिवस (Afghanistan Independence Day) के अवसर पर एक रैली निकाली गई थी. मौके पर मौजूद एक एक शख्स मोहम्मद सलीम ने बताया कि तालिबान की ओर से की गई फायरिंग में कई लोगों की मौत हुई है, जबकि गोलीबारी के चलते मची भगदड़ भी लोगों की मौत का कारण हो सकती है.

तालिबान बनेगा पाकिस्तान के पैर पर कुल्हाड़ी

  • पाकिस्तान तालिबान का खुला समर्थक है. ISI तालिबान को फंड करती रही है. तालिबान में बड़ी तादाद में पाकिस्तानी लड़ाके भी हैं. काबुल पर तालिबान के काबिज होते ही पाकिस्तान ने खुशी का इजहार किया है.
  • सवाल, लेकिन ये है कि अफगानिस्तान में तालिबान की जीत पर पाकिस्तान की ये खुशी कब तक रहेगी? खासकर तब जब पाकिस्तान में कई आतंकवादी समूह सक्रिय हैं और कई इस्लामवादी राजनीतिक पार्टियां हैं.
  • पाकिस्तान में कट्टर इस्लामी पार्टियों का ठोस आधार है और कई पार्टियों के कार्यकर्ता अपना एजेंडा लागू करने के लिए हिंसा का रास्ता अपनाने के लिए भी तैयार दिखते हैं. भले ही इन राजनीतिक पार्टियों के पास संख्याबल न हो, लेकिन 'इस्लामिक देश' में इनका प्रभाव संख्याबल से कहीं ज्यादा है.
  • तहरीक-ए-लब्बैक या रसूलअल्लाह, जमात-ए-इस्लामी और जमितयत-ए-उलेमा-इस्लाम जैसी पार्टियों का असर तो खासा बढ़ रहा है. पिछले साल ही तहरीक-ए-लब्बैक के कार्यकर्ताओं ने इस्लामाबाद के रास्ते बंद कर दिए थे.
  • और सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही नहीं, पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान जैसे कई इस्लामवादी आतंकवादी समूह भी हैं.
  • अल कायदा, लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, हरकत-उल-मुजाहीदीन और इस्लामिक स्टेट इन खैबर पख्तूनख्वा, ऐसे संगठन हैं जिनकी गतिविधियां किसी से छुपी नहीं हैं.
     

इमरान खान ने किया समर्थन

इमरान खान ने न सिर्फ पाकिस्तान में रहने वाले तालिबानियों को 'सामान्य नागरिक' बताया बल्कि कहा कि समूह ने अफगानिस्तान को 'गुलामी की जंजीरों' से आजाद कराया है. पाकिस्तान भारत के साथ अलग-अलग मोर्चों पर टकराव में अफगानिस्तान को अपना साझेदार मानता है. यही कारण है कि वह तमाम विरोध और आलोचना के बाद भी काबुल में संभावित तालिबान सरकार को मान्यता देना चाहता है.
 
चरमपंथी समूहों के सक्रिय होने का खतरा

  • पाकिस्तान सरकार के भीतर कुछ गुटों ने तालिबान के प्रति अपना विरोध जताया है.
  • लिहाजा पाकिस्तान के लिए तालिबान या तो एक 'अहम' सहयोगी बन सकता है या क्षेत्र में नियंत्रण बनाने के संघर्ष में एक दुश्मन.
  • हालांकि, तालिबान के आने से पाकिस्तान को नुकसान होने की उम्मीद ज्यादा है. समूह की वापसी से पाकिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान या टीटीपी जैसे चरमपंथी समूहों को हौसला मिल सकता है.
  • पाकिस्तान के लिए ये कहा जा सकता है कि तालिबान की जीत एक शार्ट टर्म जियो पॉलिटिकल विक्ट्री है, लेकिन लांग टर्म में पाकिस्तान पर नकारात्मक असर डाल सकती है.
  • अफगानिस्तान में तालिबान की कामयाबी का असर पाकिस्तान के समाज पर बहुत नकारात्मक पड़ेगा. पाकिस्तान में इस्लामी हुकूमत या निजाम-ए-मोहम्मदिया जैसे नारे इस्तेमाल करने वाले संगठनों की, जिनमें तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान भी शामिल है, हिम्मत बढ़ेगी. न सिर्फ उनके हौसले बढ़ेंगे, बल्कि अफगानिस्तान तालिबान से उन्हें सहयोग भी मिलेगा.
  • अफगानिस्तान एक इतना बड़ा देश है कि उस पर पूरी तरह नियंत्रण करना किसी एक ग्रुप के बस में नहीं हैं. अफगानिस्तान में ऐसी कई जगहें होंगी, जहां पर हथियारबंद समूह अपने अड्डे ऑपरेट कर सकते हैं. ये हथियारबंद ग्रुप न सिर्फ चीन और भारत, बल्कि खुद पाकिस्तान के लिए सिक्योरिटी रिस्क बन सकते हैं.
  • पाकिस्तान में भी इस्लामी हुकूमत (शरिया कानून) लागू करने का जोश बढ़ जाएगा और इससे पाकिस्तान में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों की हालत और बुरी होती जाएगी. एक तरह से तालिबान पाकिस्तान के लिए भी मसला बन सकता है.