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सरकार बनाने को लेकर याकूब-हक्कानी गुटों में खींचतान, तालिबान का अगला रास्ता क्या?

तालिबान को इस बात की चिंता सता रही है कि कंधारियों का एक अफगान समर्थक गुट और हक्कानी का पाकिस्तान समर्थक गुट आमने-सामने हो सकते हैं. 

Updated on: 01 Sep 2021, 12:57 PM

highlights

  • अफगानिस्तान में सरकार बनाने की कवायद शुरू
  • पाकिस्तान सरकार में चाहता है अहम भूमिका
  • कंधार में सरकार बनाने को लेकर हो रही बैठकों का दौर

काबुल:

अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही नई सरकार के गठन पर काम शुरू हो चुका है. सरकार के गठन को लेकर तालिबान नेतृत्व और हक्कानी नेटवर्क के बीच बातचीत चल रही है. हक्कानी नेटवर्क और कंधार को नियंत्रित करने वाले मुल्ला याकूब के गुट में खींचतान चल रही है. दरअसल तालिबान नेतृत्व गुट अफगान और हक्कानी का पाकिस्तान समर्थक गुट आमने-सामने हो सकते हैं. तालिबान की मदद करने वाला पाकिस्तान भी सरकार में अपनी स्थिति को देख रहा है. मीडिया हाउस की मानें तो पाकिस्तान अफगानिस्तान की नई सरकार में अहम किरदार चाहता है. एक निजी चैनल के मुताबिक अफगानिस्तान में अगली सरकार ईरान की तर्ज पर हो सकता है. 

एक खबर के मुताबिक सुन्नी पश्तून संगठन के सर्वोच्च नेता मुल्ला हिबतुल्ला अखुंदजादा सरकार के गठन पर चर्चा के लिए काबुल पहुंच सकते हैं. बुधवार शाम या गुरुवार सुबह तक तालिबान सत्तारूढ़ मंत्रिमंडल का ऐलान कर सकता है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकवादी समूह के भीतर कई गुट बन चुके हैं. अमीर-उल-मोमीन मुल्ला उमर के बेटे मुल्ला याकूब राजनीतिक तत्वों के बजाय सैन्य तत्वों को कैबिनेट में लाना चाहते हैं. सुन्नी इस्लामवादी समूह के सह-संस्थापक मुल्ला बरादर इसके खिलाफ हैं.

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तालिबान के भीतर मुल्ला याकूब और वर्तमान में काबुल को नियंत्रित करने वाले हक्कानी आतंकी साम्राज्य के बीच तनाव के साथ कई चिंता करने वाली रेखाएं भी उभर रही हैं. गैर-पश्तून तालिबान और कंधार गुट के बीच सत्ता को लेकर ठीक वैसे ही संघर्ष बढ़ता जा रहा है, जैसे पश्तून और गैर-पश्तून जनजातियों के बीच मतभेद बढ़ रहा है. अफगान सरकार में हर कोई अपने फायदे के लिए लड़ रहा है. तालिबान के भीतर खुले तौर पर सामने आने वाले मतभेदों से 1990 के मुजाहिदीन दिनों की तरह हर गुटों में हिंसा बढ़ने की आशंका भी पैदा हो गई है.

जहां पर सुप्रीम लीडर के तौर पर तालिबान नेता हैबतुल्ला अखुंदजादा को चुना जा सकता है. वहीं अफगानिस्तान में सुप्रीम काउंसिल का भी गठन होगा. जो राजधानी काबुल से संचालित होगी. वहीं सुप्रीम लीडर कंधार में ही बने रहेंगे. सुप्रीम काउंसिल में 11 से 72 लोगों को शामिल किया जा सकता है और प्रधानमंत्री इसका नेतृत्व करेंगे. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर कौन विराजमान होगा इसे लेकर दो दावेदार बताए जा रहे हैं.  तालिबानी नेता मुल्लाह बरादर या मुल्लाह याकूब ये संभावित नाम है जो प्रधानमंत्री बन सकते हैं.

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संविधान में हो सकता है बदलाव
यह भी कहा जा रहा है कि यहां के संविधान में भी बदलाव किया जा सकता है. नया संविधान तालिबान लागू कर सकता है. 1964-65 के दौरान अफ़ग़ानिस्तान के संविधान को कुछ बदलाव के साथ दोबारा लागू किया जा सकता है. तालिबान का मानना है कि मौजूदा संविधान विदेशी ताकतों की देखरेख में बनाया गया.

अहमद मसूद भी सरकार में होना चाहते हैं शामिल
यह भी कहा जा रहा है कि इस सरकार में अहमद मसूद को भी शामिल किया जा सकता है. जबकि अमरउल्लाह सालेह को तालिबान ने किनार कर दिया है. अहमद मसूद की चाहत है कि वो सरकार में शामिल हो. लेकिन अभी बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला है. बता दें कि अहमद मसूद के नेतृत्व में नॉर्दर्न अलांयस तालिबान को पंजशीर में चुनौती दे रही है. पंजशीर पर अहमद मसूद का कब्जा है.