म्यांमार के रखाइन प्रांत में फैली हिंसा के दौरान रोहिंग्याओं की हत्या करने के मामले में सात सैनिकों को 10 साल की सज़ा सुनाई गई है।
सज़ा भुगत रहे 7 सैनिकों में से 4 सेना के आधिकारी हैं। इन सभी को इनके पद से हटा दिया गया है साथ ही 10 साल जेल की सज़ा सुनाई गई है।
बता दें कि अगस्त 2017 में म्यांमार सेना पर सैन्य अभियान के दौरान रोहिंग्याओं के गांवों को जलाने, हत्या करने और उनकी महिलाओं, लड़कियों के साथ दुष्कर्म करने के आरोप लगे थे।
म्यांमार में 25 अगस्त को उग्रवादी समूह के सैन्य चेकपोस्ट पर हमले में 12 सुरक्षाकर्मियों की मौत के बाद फैली हिंसा में करीब 415,000 रोहिंग्या मुस्लिम बांग्लादेश पलायन कर गए। इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।
सेना के इस हमले पर संयुक्त राष्ट्र और अन्य मानवाधिकार संगठनों ने आंग सान सू और उनकी सरकार पर इस जातिगत हिंसा को खत्म करने के लिए दबाव भी डाला था।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों के प्रमुख जिद राय अल-हुसैन ने 11 सितंबर को इस हमले पर कटाक्ष करते हुए कहा था, 'हालात जातीय सफाये का एक जीता-जागता उदाहरण है।'
मानव अधिकार समूहों की माने तो सेना ने म्यांमार रखाइन राज्य में रोहिंग्या संकट पर काम करने वाले कई संवाददाताओं का भी कत्ल कर दिया और नेटवर्क को 'ध्वस्त' करने के लिए कई का अपहरण कर लिया है। इससे अब इस राज्य में जो कुछ हो रहा है उसकी बहुत कम रिपोटिर्ंग हो रही है।
रोहिंग्या समुदाय के समाचार पोर्टल 'द स्टेटलेस' में संपादक रोहिंग्या शरणार्थी मोहम्मद रफीक कहते हैं कि सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद से रखाइन के 95 प्रतिशत से अधिक मोबाइल संवाददाता गायब हो गए हैं।
उन्होंने कहा, 'सुरक्षा बलों और सेना द्वारा अभी भी रोहिंग्या गांवों में दुष्कर्म, हत्या और आगजनी की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा हैं लेकिन रोहिंग्या मोबाइल रिपोर्टर नेटवर्क अब नाकाम हो चुका है। विश्वसनीय मीडिया रिपोर्ट तैयार करने के लिए जरूरी हिंसा की विस्तृत जानकारी हम तक नहीं पहुंच रही है।'
'गार्डियन' ने रफीक के हवाले से बताया, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के संवाददाता और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी रोहिंग्या मोबाइल रिपोर्टर नेटवर्क के जरिए ही उत्पीड़न और हिंसा से संबंधित जानकारियां एकत्र करते थे। हमारे साथ ही सभी मीडिया आउटलेट को रखाइन से कोई जानकारी नहीं मिल रही है।
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Source : News Nation Bureau