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भारत के पड़ोसी देश नेपाल में बीते दिनों जो कुछ हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा. यहां पर युवाओं की बगावत और फिर तख्तापलट ने एक नई क्रांति को ही जन्म दे दिया. ऐसा ही भारत के अन्य पड़ोसी देशों में भी हो चुका है. बहरहाल नेपाल में हाल में जो कुछ हुआ, वह इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया है. भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और सोशल मीडिया पर पाबंदी के खिलाफ युवाओं के उग्र आंदोलन ने प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को सत्ता से बेदखल कर दिया.
8 और 9 सितंबर को देशभर में फैले Gen-Z प्रदर्शन ने न केवल काठमांडू की सड़कों को जाम कर दिया, बल्कि पूरे राजनीतिक ढांचे को झकझोर कर रख दिया. खास बात यह है कि उग्र आंदोलन से लेकर तख्तापलट तक एक बार फिर पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली दिखाई नहीं दिए. लेकिन अब उनकी पहली झलक देखने को मिली है.
किराए घर में दिन बिता रहे ओली
अपना पद गंवाने और युवाओं के गुस्से का शिकार होने के करीब 10 दिन तक केपी शर्मा ओली किसी को नजर नहीं आए. सबकी नजरों से दूर रहने के बाद ओली 19 सितंबर को पहली बार सार्वजनिक रूप से देखे गए. उन्हें सेना के हेलिकॉप्टर से शिवपुरी से भक्तपुर लाया गया, जहां उनके लिए एक नया किराए का घर तैयार किया गया है. जब वह वहां पहुंचे तो कुछ समर्थकों ने उनका स्वागत भी किया, लेकिन माहौल साफ तौर पर पहले की तरह नहीं था. इसमें भी खासा बदलाव आ चुका है. यह वही ओली नहीं थे जो कभी सत्ता के शीर्ष पर थे. उनकी बॉडीलैंग्वेज ही बता रही थी कि वह पहले की तरह नहीं रहे.
प्रधानमंत्री का इस्तीफा, एक युग का अंत
प्रदर्शनों के बढ़ते दबाव के चलते ओली ने नौ सितंबर को राष्ट्रपति रामचंद्र पौडेल को अपना इस्तीफा सौंपा. इसे 10 सितंबर को औपचारिक रूप से स्वीकार कर लिया गया. इस तरह, एक लंबे समय से चल रही ओली की राजनीतिक यात्रा का एक बड़ा अध्याय समाप्त हुआ. इस्तीफे के बाद से ही ओली और उनकी कैबिनेट के अन्य सदस्य सार्वजनिक नजरों से ओझल हो गए थे, जिससे कई अफवाहें भी फैलने लगीं.
सेना की सुरक्षा में शिवपुरी बैरक
ओली को प्रदर्शनकारियों के गुस्से से बचाने के लिए सेना ने उन्हें तत्काल प्रधानमंत्री निवास से निकालकर कड़ी सुरक्षा के बीच शिवपुरी स्थित सैन्य बैरक में सुरक्षित रखा. यह कदम तब उठाया गया जब प्रदर्शनकारियों ने ओली के काठमांडू स्थित निजी आवास, झापा जिले में उनके पैतृक घर और दमक स्थित अन्य संपत्तियों को आग के हवाले कर दिया.
प्रदर्शन में जान गंवाने वाले 20 से अधिक युवा
बता दें कि इस पूरे घटनाक्रम का सबसे दुखद पहलू यह रहा कि Gen-Z विरोध प्रदर्शनों में अब तक 20 से अधिक युवाओं की मौत हो चुकी है. संसद भवन, सरकारी कार्यालयों और ओली के घरों तक को भीड़ ने आग के हवाले कर दिया. सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध ने आग में घी डालने का काम किया, जिससे आंदोलन और उग्र हो गया.
अब आगे क्या?
नेपाल की राजनीति अब एक निर्णायक मोड़ पर खड़ी है. Gen-Z का यह विद्रोह सिर्फ ओली के खिलाफ नहीं था, बल्कि पूरे राजनीतिक तंत्र के खिलाफ अविश्वास का इजहार था. देश को अब एक नई सोच, पारदर्शिता और जवाबदेही की जरूरत है. ओली भले ही पद छोड़ चुके हैं, लेकिन यह आंदोलन एक नए युग की शुरुआत है – जो युवा तय करेंगे.
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