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Nepal Crisis: भारत के पड़ोसी देश नेपाल में बीते 48 घंटों के दौरान जो कुछ हुआ उसे पूरी दुनिया ने देखा. सोशल मीडिया बैन से उठा विरोध प्रदर्शन तख्तापलट तक पहुंच गया. जन आंदोलन अब सिर्फ विरोध तक सीमित नहीं रहा बल्कि हिंसक भी हो गया. जहां शुरुआत राजनीतिक असंतोष और जनभावनाओं की अभिव्यक्ति के तौर पर हुई थी, वहीं अब यह आंदोलन संपत्ति की लूट, आगजनी और हिंसा में तब्दील हो चुका है. राजधानी काठमांडू से लेकर देश के अन्य हिस्सों तक अफरा-तफरी का माहौल है. प्रदर्शन के बीच लोगों ने जमकर लूटपाट भी की. जिसके हाथ जो लगा उसे ले भागा. हालांकि फिलहाल सेना ने मोर्चा संभाला हुआ है और उत्पातियों की धर पकड़ भी की जा रही है.
प्रदर्शनकारियों का आक्रोश, संसद और राष्ट्रपति भवन बने निशाना
प्रदर्शनकारियों ने अपना गुस्सा संसद भवन, प्रधानमंत्री आवास और राष्ट्रपति भवन पर निकालते हुए आगजनी और तोड़फोड़ की घटनाओं को अंजाम दिया. कई संवेदनशील सरकारी इमारतों में आग लगा दी गई है. इसमें राष्ट्रपति भवन से लेकर पार्टी कार्यालय और कई मंत्रियों के घर भी शामिल हैं. पुलिस की ओर से भीड़ को नियंत्रित करने के प्रयास लगातार विफल हो रहे हैं.
शहरों में खुलेआम लूटपाट, मॉल और शोरूम बने निशाना
इस अराजक माहौल में अपराधी और उपद्रवी तत्व सक्रिय हो गए हैं. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि लोग शोरूम और मॉल्स में घुसकर महंगे सामान जैसे कि टीवी, फ्रिज, एसी और अन्य इलेक्ट्रॉनिक आइटम्स को लूट रहे हैं. यह सब दिनदहाड़े और बिना किसी डर के किया जा रहा है, जिससे यह साबित होता है कि कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई है.
पुलिस और सेना की कोशिशें जारी, कई गिरफ्तारियां भी हुईं
हालात काबू में लाने के लिए पुलिस और सेना को तैनात किया गया है. अब तक कई लोगों को लूट और हिंसा के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है. सुरक्षा एजेंसियों की ओर से वीडियो फुटेज के जरिए तोड़फोड़ और लूटपाट करने वालों की पहचान की जा रही है. वहीं प्रदर्शनकारियों की भारी संख्या और देशभर में फैले विरोध के चलते सभी दोषियों तक पहुंच पाना आसान नहीं है.
स्थिरता की चुनौती
नेपाल की सरकार अब राजनीतिक समाधान की दिशा में सोचने पर मजबूर हो गई है. अगर जल्द कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो हालात और बिगड़ सकते हैं. जनता में भरोसा बहाल करना और कानून का राज स्थापित करना सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है.
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