India Pakistan Ceasefire Violation: पाकिस्तान ने एक बार फिर अपनी नापाक हरकत को अंजाम दिया है. सीजफायर के कुछ घंटों बाद ही उसने इस समझौते का घोर उल्लंघन किया. इन सबके बीच एक और बड़ी खबर सामने आई है. दरअसल भारत-पाकिस्तान तनाव के बीच चीन का असली चेहरा भी सामने आ गया है. चीन ने इन हालातों में पाकिस्तान का समर्थन किया है. भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे हालिया तनाव के दौरान चीन ने एक बार फिर अपने पुराने रुख को दोहराते हुए पाकिस्तान का खुला समर्थन किया है.
क्या बोला चीन
चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार से टेलीफोन पर बातचीत में यह साफ कर दिया कि चीन, पाकिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ मजबूती से खड़ा रहेगा. इस बयान से एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि दक्षिण एशिया में चीन की विदेश नीति किस दिशा में अग्रसर हैं.
चीन का बयान और रणनीतिक संकेत
चीन के विदेश कार्यालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, वांग यी ने पाकिस्तान की “राष्ट्रीय स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता” के समर्थन की बात की. उन्होंने पाकिस्तान के संयमपूर्ण रवैये की सराहना की और कहा कि ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में पाकिस्तान ने परिपक्वता दिखाई है.
यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्षविराम की ताज़ा घोषणा हुई है और दोनों देशों के DGMO स्तर पर बातचीत जारी है.
चीन का रणनीतिक संकेत
दरअसल चीन का यह समर्थन केवल कूटनीतिक नहीं, बल्कि रणनीतिक संकेत भी देता है. चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है, पहले से ही भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाता रहा है. ऐसे में चीन का यह बयान भारत के लिए सीधा संदेश है कि वह पाकिस्तान के पक्ष में अपनी स्थिति बनाए रखेगा.
भारत के लिए क्यों अहम
यह कोई नई बात नहीं है कि चीन, पाकिस्तान का रणनीतिक सहयोगी रहा है. लेकिन वर्तमान संदर्भ में जब भारत और पाकिस्तान एक बार फिर से सैन्य तनाव की स्थिति में हैं और संघर्षविराम की दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाए जा रहे हैं, ऐसे समय में चीन का यह बयान स्थिति को और संवेदनशील बना सकता है. इससे यह भी स्पष्ट होता है कि चीन केवल आर्थिक ही नहीं, बल्कि कूटनीतिक और सामरिक रूप से भी पाकिस्तान के साथ खड़ा रहना चाहता है.
चीन का पाकिस्तान को दिया गया समर्थन इस क्षेत्र में अस्थिरता को और गहरा कर सकता है. ऐसे समय में वैश्विक समुदाय की ज़िम्मेदारी है कि वह दोनों देशों को रचनात्मक संवाद के लिए प्रोत्साहित करे, न कि किसी एक पक्ष के समर्थन में बयानबाज़ी करके हालात को और बिगाड़े.
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