सीरिया के विद्रोही संगठन HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम के नेता अबू मोहम्मद अल-जोलानी इस समय गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. ईदबिल से निकलकर अलप्पो और आगे बढ़ते हुए होम्स सहित दमिश्क जीतकर जुलानी को लगा था की उसने सीरिया जीत लिया. लेकिन यह हकीकत से अब कोसो दूर दिखाई दे रहा है. असद सरकार के पतन का जश्न अब फीका होता दिखाई दे रहा है जबकि सड़को पर अराजकता की स्थिति व्याप्त होती जा रही है. उससे बड़ा संकट HTS के सामने है सीरिया के उत्तर और पूर्व में स्थिरता बनाए रखना , जबकि दक्षिण में इजरायल के बढ़ते हमलों ने उनके लिए हालात और खराब कर दिए हैं.
उत्तर में अस्थिरता और बाहरी दबाव
अल-जोलानी ने सीरिया के उत्तरी इलाकों पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित नहीं किया है, जहां तुर्की समर्थित SNA यानी सीरियन नेशनल आर्मी , अमेरिका समर्थित SDF यानी सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज और तुर्की के सैनिकों का प्रभाव है. पूर्व में बादिया रेगिस्तान में एक छोटे स्तर का ISIS विद्रोह भी उभर रहा है, जो उनके नियंत्रण को और कमजोर कर रहा है.
दक्षिण से इजरायल का बढ़ता खतरा
इजरायल ने सीरियाई एयरफोर्स के शेष अवशेषों को ध्वस्त कर दिया है, जिससे जोलानी के लिए वायुसेना का पुनर्निर्माण लगभग असंभव हो गया है. उनकी सबसे बड़ी चुनौती अब यह है कि वह ड्रोन और मिसाइलों जैसे आधुनिक हथियारों पर निर्भर होकर इजरायल और अन्य विरोधियों का सामना कैसे करें. वही HTS , SNA, SDF और अलावायत फोर्सेज के बीच वर्चस्व की जारी लड़ाई ने सत्ता के लिए सहमति की संभावनाओं को भी धूमिल कर दिया है. इस हालात का फायदा सिर्फ इजरायल हीं नहीं उठा रहा बल्कि तुर्की भी उठा रहा है जो सीरिया के एक बड़े बॉर्डर एरिया को कब्जा कर सीमा पर बफर क्रिएट कर रहा है.
कूटनीतिक सहयोग की तलाश
वर्तमान स्थिति को देखते हुए, जोलानी अब नए सहयोगियों की तलाश में हैं. ऐसे में HTS के सामने क्या विकल्प हो सकते है इसकी संभावना तलाशी का रही है. असद सरकार जिसके गिरने के बाद उनके समर्थक देश रूस और ईरान हाशिए पर है, सवाल है की क्या ये देश HTS के साथ आ सकते हैं?
सीरिया मामलों पर नजर बनाए हुए जानकारो का कहना है की अल जोलानी
की रणनीति में संभावित रूप से ईरान और रूस के साथ सहयोग करना शामिल हो सकता है, जो पहली नजर में विरोधाभासी लग सकता है.
ईरान की स्थिति
ईरान अपनी खोई हुई दखल को सीरिया में हासिल करने के लिए जोलानी को मजबूत सैन्य सहयोग दे सकता है, लेकिन इसके बदले वह सीरिया में अपना प्रभाव और लेबनान तक भूमि-पुल बनाने की योजना को बढ़ावा देना चाहेगा ताकि ऐक्सिस ऑफ रेजिस्टेंस में नई जान फूंकी जा सके.
रूस की स्थिति
रूस का ध्यान सीरिया में नौसैनिक बंदरगाह और एयरबेस बनाए रखने पर है, जिससे वह घरेलू मामलों में कम हस्तक्षेप करेगा. सीरिया के रूस का टोरटस नेवल बेस अमेरिका को काउंटर करने के लिए एक मजबूत स्तंभ के तौर पर देखा जाता है. वही असद को शरण देकर पुतिन साफ कर चुके हैं की सीरिया से रूस अपना बोरिया बिस्तर नहीं समेटना वाला.
तुर्की की स्थिति
तुर्की पहले से ही HTS को हथियार और अन्य आपूर्ति देता रहा है, लेकिन यह मदद सीमित हो सकती है क्योंकि तुर्की सीरिया के कब्जे वाले क्षेत्रों को लौटाने के लिए तैयार नहीं है. ऐसे में एर्डोगन को सीरिया में जो हासिल करना था वह हो चुका है, यानी असद की सरकार गिर चुकी है, तुर्की सीरिया के सीमावर्ती हिस्सों को बफर बनाकर अपनी सीमा को सुरक्षित कर लेगा. HTS या SDF को मजबूत करने या एक प्लेटफार्म पर लाकर सरकार बनाने से तुर्की के सामने भविष्य की चुनौतियां खड़ी हो सकती है लिहाजा एर्डोगन ऐसा कतई नहीं करेंगे.
भविष्य की रणनीति
अल-जोलानी के सामने अब एक कठिन सवाल है,
वह किस सहयोगी पर भरोसा करें?
क्या वह ईरान के साथ गहरे सैन्य संबंध बनाएंगे, या रूस को तटस्थ सहयोगी के रूप में रखेंगे?
या तुर्की के साथ संबंध बनाए रखते हुए अपने सैन्य संसाधनों को और मजबूत करेंगे?
जोलानी की रणनीति न केवल उनके संगठन, बल्कि पूरे सीरिया के भविष्य को भी प्रभावित करेगी.