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राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप Photograph: (ANI)
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियां एक बार फिर वैश्विक आर्थिक माहौल में हलचल पैदा कर रही हैं. कभी भारत के साथ बड़े ट्रेड डील के संकेत, तो कभी अचानक मनमाने टैरिफ उनका रुख हमेशा अनिश्चित रहा है. रूस से तेल खरीदने को लेकर तो उनकी सख्ती लगातार बढ़ रही है. भारत पर पहले से ही रूसी तेल खरीदने के कारण 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाने की तैयारी चल रही है, और अब ट्रंप ने चेतावनी दी है कि रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर 500% तक शुल्क लगाया जा सकता है.
यह धमकी ठीक उस वक्त दी गई है जब राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन 5 दिसंबर को भारत आने वाले हैं. माना जा रहा है कि पीएम मोदी और पुतिन के बीच होने वाली वार्ता में ऊर्जा, तेल और व्यापार प्रमुख मुद्दे होंगे. लेकिन ट्रंप का यह बयान साफ दिखाता है कि अमेरिकी प्रशासन पुतिन के भारत दौरे से पहले ही दबाव बनाना चाहता है.
500% टैरिफ की धमकी से दुनिया में चिंता
ट्रंप ने कहा कि वह ऐसे कानून का समर्थन कर रहे हैं जिसमें रूस से व्यापार करने वाले देशों पर बेहद सख्त प्रतिबंध या 500% तक टैरिफ लगाया जा सके. उनका दावा है कि यह कदम रूस की अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाकर यूक्रेन में जारी युद्ध को रोकने में मदद करेगा. अमेरिकी रिपब्लिकन सांसद पहले से ऐसे बिल तैयार कर रहे हैं जिनमें रूस से व्यापार जारी रखने वाले देशों को कठोर दंड देने का प्रावधान है.
ट्रंप इतने आक्रामक क्यों?
ट्रंप का मानना है कि रूस की आय का बड़ा हिस्सा तेल व्यापार से आता है. ऐसे में यदि दुनिया के प्रमुख खरीदार रूस से दूरी बनाते हैं, तो क्रेमलिन की आर्थिक स्थिति कमजोर होगी. इसी वजह से उन्होंने यहां तक कहा कि ईरान को भी इस सूची में शामिल किया जा सकता है. उनका उद्देश्य आर्थिक दबाव के माध्यम से रूस पर कड़ा संदेश देना है.
भारत पर सीधा असर
भारत रूस का दूसरा सबसे बड़ा तेल खरीदार है. अक्टूबर 2025 में भारत ने 28,000 करोड़ रुपये से अधिक का तेल रूस से खरीदा, जो दोनों देशों के ऊर्जा संबंधों को दर्शाता है. हालांकि, अमेरिकी दबाव के बाद कई भारतीय रिफाइनरियां धीरे-धीरे रूसी तेल से दूरी बनाने की कोशिश कर रही हैं. दो प्रमुख रूसी तेल कंपनियों पर अमेरिका पहले ही प्रतिबंध लगा चुका है, और अब 500% टैरिफ की चेतावनी ने भारत की रणनीति को और चुनौतीपूर्ण बना दिया है.
ट्रंप के बयान के बाद भारत को अपनी ऊर्जा नीति, कूटनीतिक संतुलन और आर्थिक हितों को नए सिरे से तौलने की जरूरत पड़ सकती है. पुतिन की यात्रा के दौरान यह मुद्दा सबसे अहम रहेगा कि भारत सस्ता रूसी तेल चुनेगा या अमेरिकी दबाव को प्राथमिकता देगा.
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