तिब्बत में 'वॉटर बम' तैयार कर रहा चीन, भारत के लिए कितना खतरा

चीन पहले ही 2015 में तिब्बत में $.5 बिलियन डॉलर के जंप हाइड्रो पावर स्टेशन को शुरू कर चुका है. लेकिन जो नया डैम बन रहा है उसका स्केल और पावर कहीं ज्यादा है. इसकी लोकेशन भी भारत के लिए बेहद संवेदनशील है.

चीन पहले ही 2015 में तिब्बत में $.5 बिलियन डॉलर के जंप हाइड्रो पावर स्टेशन को शुरू कर चुका है. लेकिन जो नया डैम बन रहा है उसका स्केल और पावर कहीं ज्यादा है. इसकी लोकेशन भी भारत के लिए बेहद संवेदनशील है.

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Mohit Sharma
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चीन ने एक बार फिर ऐसा कदम उठाया है जिससे भारत की चिंता बढ़ गई है. अरुणाचल प्रदेश की सीमा के बिल्कुल करीब तिब्बत के न्यिंगची शहर में चीन ने ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया के सबसे बड़े बांध का निर्माण शुरू कर दिया है. यह कोई मामूली प्रोजेक्ट नहीं है बल्कि इसका साइज दुनिया के सबसे बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में गिना जा रहा है. यहां तक कि चीन का ही फेमस थ्री गॉर्जियस डैम भी इसके सामने छोटा पड़ सकता है. चीन की सरकारी एजेंसी के मुताबिक इस मेगा डैम प्रोजेक्ट का भूमि पूजन खुद चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग ने किया. इस डैम को ब्रह्मपुत्र के उस हिस्से पर बनाया जा रहा है जिसे स्थानीय भाषा में यारलुंग जांग्बो कहा जाता है. इसी जगह से ब्रह्मपुत्र नदी का एक विशाल यूटर्न लेकर भारत के अंदर प्रवेश करती है.

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अब आइए समझते हैं कि यह प्रोजेक्ट कितना बड़ा है. इसमें कुल पांच हाइड्रो पावर स्टेशन होंगे और कुल निवेश करीब 1.2 ट्रिलियन युवान यानी लगभग 167.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है. 2023 की रिपोर्ट के अनुसार यह डैम हर साल करीब 300 बिलियन किलोवाट घंटे बिजली पैदा करेगा जो लगभग 30 करोड़ लोगों की सालाना जरूरत के लिए काफी है. यह बिजली तिब्बत समेत बाहरी इलाकों को सप्लाई की जाएगी. और हां इस प्रोजेक्ट को चीन की नेशनल डेवलपमेंट एंड रिफॉर्म कमीशन और पावर कॉरपोरेशन का पूरा समर्थन है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि साइट पर जिओ इंजीनियरिंग और सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है क्योंकि यह इलाका टेक्टोनिक प्लेट के करीब है और भूकंप की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है. अब सवाल यह उठता है कि आखिर भारत को चिंता क्या है?

चीन पहले ही 2015 में तिब्बत में $.5 बिलियन डॉलर के जंप हाइड्रो पावर स्टेशन को शुरू कर चुका है. लेकिन जो नया डैम बन रहा है उसका स्केल और पावर कहीं ज्यादा है. इसकी लोकेशन भी भारत के लिए बेहद संवेदनशील है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चीन चाहे तो युद्ध जैसी स्थिति में भारी मात्रा में पानी छोड़कर बाढ़ जैसी स्थिति ला सकता है. यानी यह प्रोजेक्ट सिर्फ एनर्जी प्रोजेक्ट नहीं बल्कि एक रणनीतिक दृष्टिकोण से वाटर वेपन की तरह इस्तेमाल हो सकता है. भारत और चीन के बीच 2006 से एक एक्सपर्ट लेवल मकैनिज्म है. इसके तहत चीन मॉनसून के समय ब्रह्मपुत्र और सतलुज नदियों की जानकारी भारत को देता है. लेकिन डाटा शेयरिंग भर से भारत की चिंताएं खत्म नहीं होती. खासकर तब जब यह डैम एक ऐसी जगह बन रहा है जहां भूकंप का खतरा हमेशा बना रहता है.

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