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china xinjiang tibet railway project (social media)
चीन जल्द ही अपनी महत्वाकांक्षी शिनजियांग-तिब्बत रेलवे परियोजना शुरू करने जा रहा है, जो 2035 तक शिनजियांग (होटान) को तिब्बत की राजधानी ल्हासा से जोड़ेगी. लगभग 2,000 किलोमीटर लंबी यह रेलवे लाइन मौजूदा ल्हासा-शिगात्से मार्ग से जुड़कर तिब्बत के पठारी इलाकों में 5,000 किलोमीटर का रणनीतिक रेल नेटवर्क तैयार करेगी, जिसका केंद्र ल्हासा होगा.
यह परियोजना शिनजियांग-तिब्बत रेलवे कंपनी के तहत चलाई जाएगी, जो चाइना स्टेट रेलवे ग्रुप की पूर्ण स्वामित्व वाली इकाई है. शुरुआती निवेश 95 अरब युआन यानी करीब 13.2 अरब अमेरिकी डॉलर का है, और यह रेलवे चीन की चार प्रमुख योजनाबद्ध लाइनों में से एक है जो तिब्बत को चीन के पश्चिमी क्षेत्रों से जोड़ेगी.
दुर्गम और खतरनाक भू-भाग
यह रेलवे तिब्बती पठार के सबसे ऊंचे और कठिन इलाकों से होकर गुजरेगी, जिसमें कुनलुन, काराकोरम, कैलाश और हिमालय पर्वतमाला शामिल हैं. निर्माण कार्य में ग्लेशियर, जमी हुई नदियां, परमाफ़्रॉस्ट, -40°C तक का तापमान और ऑक्सीजन की कमी (सामान्य से 44% कम) जैसी चुनौतियां सामने होंगी. इन हालात में काम करने के लिए उन्नत तकनीक, भारी निवेश और मजबूत पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय जरूरी होंगे.
रणनीतिक और सैन्य महत्व
यह रेलवे भारत-चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) के बेहद नजदीक से गुजरेगी, विशेषकर अक्साई चिन जैसे विवादित क्षेत्रों से. इससे चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) को सीमावर्ती इलाकों में तेजी से सैनिक, हथियार और रसद भेजने की क्षमता मिलेगी.
भले ही चीन इसे तिब्बत की आर्थिक प्रगति का हिस्सा बताता है, लेकिन इसका स्पष्ट सैन्य उद्देश्य है - सीमाई क्षेत्रों पर नियंत्रण मजबूत करना और किसी भी टकराव की स्थिति में ट्रूप्स और आर्म्स मोबीलाइज कर भारत पर बढ़त हासिल करना.
चीन पहले से ही "बॉर्डर डिफेंस विलेज" जैसी रणनीति अपनाकर धीरे-धीरे सलामी स्लाइसिंग के जरिए क्षेत्रीय विस्तार कर रहा है. इन गांवों में बसाए गए लोग लगातार उपस्थिति बनाए रखते हैं और वास्तविकता को धीरे-धीरे अपने पक्ष में बदलते हैं, जिससे बिना युद्ध छेड़े जमीन पर स्थिति बदली जाती है.
भारत की जवाबी तैयारी
- चीन की बढ़ती आक्रामकता के जवाब में भारत ने सीमा अवसंरचना को मजबूत करना तेज कर दिया है.
- दर्बुक-श्योक-दौलत बेग ओल्डी (DSDBO) रोड को अपग्रेड किया जा रहा है, ताकि टैंक और लंबी दूरी की मिसाइल ले जाने वाले वाहनों का आवागमन हो सके.
- 130 किलोमीटर की वैकल्पिक सड़क भी बनाई जा रही है, जो चीनी गश्त की निगाहों से दूर होगी, जिससे DSDBO रोड पर निर्भरता कम होगी.
- सीमा क्षेत्रों में कार्यबल और मजदूरी बढ़ाई गई है, ताकि निर्माण गति तेज हो.
- निगरानी और लॉजिस्टिक्स को बेहतर बनाकर आपात स्थिति में सैनिकों की तैनाती तेजी से हो सके.
जाहिर है शिनजियांग-तिब्बत रेलवे सिर्फ विकास परियोजना नहीं, बल्कि चीन की एक सोची-समझी ड्यूल यूज सैन्य रणनीति है. इसके जरिए चीन न केवल तिब्बत में अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है, बल्कि भारत की संप्रभुता और सीमा सुरक्षा को सीधी चुनौती दे रहा है. भारत को अपनी रक्षा अवसंरचना के निर्माण में तेजी लाने, अंतरराष्ट्रीय साझेदारियों को मजबूत करने और चीन की ग्रे-ज़ोन रणनीतियों का मुकाबला करने के लिए लगातार सतर्क रहना होगा.