आर्थिक मंदी और खपत में कमी के कारण चीन ने 2025 में 42 अरब डॉलर के ट्रेड इन योजना की घोषणा की है. इस योजना के तहत लोग पुराने सामान जैसे एयर कंडीशनर, मोबाइल फोन और इलेक्ट्रिक वाहनों को नए बेहतर एफिशिएंसी वाले सामान से बदल सकते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना से रिटेल बिक्री में तेज ग्रोथ देखने को मिलेगी. हालांकि चीन ने इस पर अभी किसी तरह की ठोस रणनीति नहीं बनाई है.
इस रिपोर्ट में स्थानीय नागरिकों के हवाले से बताया गया है कि वे सरकार की इस स्कीम का लाभ उठा रहे हैं. उनका कहना है कि अगर बेहतर विकल्प मिलता है तो वे सब कुछ अपग्रेड करने को तैयार हैं.
बाजारों में लौटी रौनक
मई में चीन की रिटेल बिक्री 64 प्रतिशत बढ़ी. ये इकोनॉमिस्ट की उम्मीदों से अधिक थी. खासकर उपकरण और स्मार्टफोन की मांग में बढ़ोतरी देखने को मिली. इस योजना में एनर्जी एफिशिएंसी वाले मॉडल्स 20 प्रतिशत की छूट दी गई. यह इतनी लोकप्रिय हुई कि कई शहरों में फंड खत्म होने के डर से इसे रोका गया.
क्या है चीन की नई रणनीति
बीजिंग ने पारंपरिक बुनियादी ढांचे के बजाय घरेलू खपत को बढ़ावा देने की प्लानिंग कर रही है. पहले के खर्चों से स्थानीय सरकारें कर्ज में डूबीं. चीन की सरकार अब चाहती है कि जिस तरह से उसके यहां पर मैन्युफैक्चरिंग हो रही है, उसी तरह से कंज्यूमर को बढ़ाने का प्रयास किया जाए. राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने भी अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर के असर को कम करने के लिए कंज्यूमर डिमांड को बढ़ाने की कोशिश की है.
चीन की यह योजना 2024 के अंत में आरंभ हुई. अमेरिका के ट्रेड वार से निपटने के लिए इसे तैयार किया गया है. इसमें अब कई इलेक्ट्रिॉनिक्स और घरेलू उपकरण शामिल हैं. हालांकि शुरुआती रिजल्ट काफी साकारात्मक नजर आए. मगर विशेषज्ञों का मनना है कि इसके अधिक दिन तक बने रहने पर संदेह है.
चीन के सामने क्या हैं आर्थिक चुनौतियां
दशकों तक चीन की अर्थव्यवस्था बुनियादी ढांचे और रियल एस्टेट पर सरकारी खर्च पर निर्भर रही है. मगर अब यह मॉडल टूटने की कगार पर है. सरकारें कर्ज में डूबी हैं. घरों की कीमतें गिरने लगी हैं. युवाओं में बेरोजगारी बढ़ी है. चीन के सस्ते सामानों के एक्सपोर्ट को लेकर ग्लोबल चिंता खड़ी होने लगी है. इसका असर मैन्युफैक्चरिंग पर पड़ा रहा है.