(रिपोर्ट- मधुरेंद्र)
ऑपरेशन ग्रिम बीपर इतिहास के सबसे आश्चर्यजनक खुफिया अभियानों में से एक है. यह आधुनिक युग का 'ट्रोजन हॉर्स' है, जिसे डिजिटल रूप में पुनः परिभाषित किया गया है. इस ऑपरेशन की कहानी इतनी प्रभावशाली है कि यह उसी प्रकार की किंवदंती बननी चाहिए, जैसे ट्रोजन हॉर्स की प्राचीन गाथा. यदि हमें इस पर उतना आश्चर्य नहीं हो रहा है जितना होना चाहिए, तो इसका कारण यह है कि हमने बहुत अधिक जेम्स बॉन्ड और ब्लैक मिरर जैसी फिल्में देख ली हैं, जिनसे हमारे वास्तविकता के प्रति दृष्टिकोण प्रभावित हुआ है.
यह ऑपरेशन वास्तविक जीवन में असाधारण है, जिसमें कई स्तरों पर कार्रवाई की गई है. इसमें चार प्रमुख चरण शामिल थे…
पहला चरण- इस्राइल ने हिज़बुल्लाह से सप्लाई चेन की पूरी तरह मैपिंग की.
दूसरा चरण- मोसाद ने एक विशेष विस्फोटक उपकरण विकसित किया, जो इतना छोटा था कि इसे एक हाथ में पकड़े जाने वाले उपकरण में छिपाया जा सके, और इसे दूर से सक्रिय किया जा सके. यह विस्फोटक इतना शक्तिशाली था कि यह गंभीर क्षति पहुंचा सके, लेकिन इसका पता लगाना मुश्किल था.
तीसरा चरण- इस्राइल ने हिज़बुल्लाह के सप्लाई नेटवर्क में इतनी बड़ी भूमिका निभाई कि उन्होंने इन उपकरणों पर भौतिक नियंत्रण प्राप्त कर लिया और उन्हें विस्फोटकों से लैस किया.
चौथा चरण- उन्होंने एक ही समय में कई भौगोलिक क्षेत्रों में एकसाथ इन उपकरणों को सक्रिय किया.
यदि इन चारों चरणों में से कोई भी विफल हो जाता, तो पूरा ऑपरेशन असफल हो जाता. इस प्रकार की तकनीकी और सामरिक दक्षता को देखकर यह प्रश्न उठता है कि विश्व में कौन सी अन्य शक्ति इतनी कल्पनाशील, तकनीकी रूप से परिपक्व और साहसी हो सकती है जो इस प्रकार का ऑपरेशन सफलतापूर्वक अंजाम दे सके?
इतिहास में पहली बार
यह इतिहास का पहला ऐसा मामला है, जिसमें चिन्हित व्यक्तियों को सामूहिक रूप से मारा गया. हर व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से चुना गया था, फिर भी सभी को एक ही समय में हमला किया गया. इस ऑपरेशन की सफलता यह थी कि इस्राइल ने हिज़बुल्लाह को ही अपने लक्ष्यों का चयन करने के लिए मजबूर किया. हमले का परिणाम यह था कि हिज़बुल्लाह का संगठनात्मक ढांचा उजागर हो गया, जिसमें अंधा हुआ लेबनान का ईरानी राजदूत भी शामिल है, जो इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) का अधिकारी है.
ह्यूमन शील्ड रणनीति को किया विफल
इस्राइल ने इस ऑपरेशन के माध्यम से हिज़बुल्लाह की ' ह्यूमन शील्ड' रणनीति को भी विफल कर दिया. हिज़बुल्लाह और हमास जैसे संगठन नागरिकों को युद्ध में अपनी ढाल के रूप में इस्तेमाल करते हैं, ताकि पश्चिमी देश उनके खिलाफ उठाए गए कदमों की निंदा करें. लेकिन ऑपरेशन ग्रिम बीपर के तहत किए गए हमले इतने सटीक थे कि उन्हें युद्ध के दौरान किए गए सबसे स्वच्छ हमलों में गिना जा सकता है.
यह ऑपरेशन न केवल इस्राइल पर लगाए गए युद्ध के सख्त नियमों का पालन करता है, बल्कि इसे नैतिक रूप से भी सराहा जाना चाहिए. हिज़बुल्लाह एक आतंकवादी संगठन है जो ईरान का एक प्रमुख हथियार है, जिसने अरब दुनिया में कहर बरपाया है. हिज़बुल्लाह ने ईरान, रूस और असद सरकार के साथ मिलकर सीरिया के प्रमुख शहरों को तहस-नहस कर दिया. ऐसे संगठनों के साथ कूटनीति नहीं की जा सकती, उन्हें केवल टिट फॉर टैट के माध्यम से रोका जा सकता है.
बाइडन प्रशासन ने की हमले की निंदा
हालांकि, बाइडेन प्रशासन इस ऑपरेशन की निंदा करते हुए 'डी-एस्केलेशन' की बात करता है, जबकि हिज़बुल्लाह और ईरान की मंशा कभी भी शांति कायम करने की नहीं होती. यह स्पष्ट है कि हमास के हमले के बाद से हिज़बुल्लाह द्वारा 8 अक्टूबर को इस्राइल पर किए गए हमले का उद्देश्य, इजरायल को इंगेज करना, अमेरिका के गठबंधन को कमजोर करना और ईरान के परमाणु कार्यक्रम को सुरक्षित करना था.
ऑपरेशन ग्रिम बीपर ने हिजबुल्ला और लेबनान के खिलाफ साइकोलॉजिकल वॉर फेयर का भी एक नया उदाहरण सेट किया है.
साथ हीं लेबनान और तेहरान के बीच भी अविश्वास के बीज बो दिए हैं. इससे हिज़बुल्लाह के भीतर गहरे मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़े हैं, जिससे उनकी संचार प्रणाली में गड़बड़ी आई है. इसके साथ ही, यह भी सवाल उठता है कि क्या हिज़बुल्लाह अब ईरान द्वारा निर्मित या प्राप्त किसी भी चीज़ पर भरोसा कर सकता है, क्योंकि यह स्पष्ट हो गया है कि मोसाद ने ईरान के भीतर गहरे पैठ बना ली है, इसका एक बड़ा उदाहरण मोसाद ने तेहरान की जमीन पर हमास चीफ इस्माइल हानिया को भी मारकर पेश किया था.
इस प्रकार, ऑपरेशन ग्रिम बीपर न केवल तकनीकी रूप से अभूतपूर्व है, बल्कि रणनीतिक रूप से भी एक ऐतिहासिक जीत है, जिसने हिज़बुल्लाह के संगठनात्मक ढांचे को झकझोर दिया है.