Bangladesh New Currency: बांग्लादेश में आर्थिक और राजनीतिक हलचलों के बीच 1 जून 2025 को एक बड़ा बदलाव देखने को मिला, जब नई करेंसी सीरीज जारी की गई. इस बार नए नोटों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इनमें देश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की तस्वीर हटा दी गई है. यह निर्णय बांग्लादेश की अंतरिम सरकार द्वारा लिया गया है, जो देश में हाल के महीनों में हुए राजनीतिक उथल-पुथल के बाद बनी है.
नई करेंसी में मानव आकृति नहीं
बांग्लादेश के नए नोटों में किसी भी मानव आकृति को नहीं दर्शाया गया है. यह पहली बार है जब देश के करेंसी नोटों पर शेख मुजीबुर रहमान या किसी अन्य व्यक्ति की तस्वीर नहीं है.
इस बार नोटों में प्राकृतिक दृश्यों, ऐतिहासिक स्मारकों और सांस्कृतिक प्रतीकों को प्राथमिकता दी गई है. 1,000 टका, 50 टका और 20 टका के नए नोटों को जारी किया गया है. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, यह बदलाव सांस्कृतिक समावेशिता और विरासत के सम्मान के दृष्टिकोण से किया गया है.
धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों को मिला स्थान
एएफपी की एक रिपोर्ट के अनुसार, नए नोटों में हिंदू और बौद्ध मंदिरों, राष्ट्रीय शहीद स्मारक, और प्रसिद्ध कलाकार जैनुल आबेदीन की कलाकृतियों को शामिल किया गया है. यह कदम बांग्लादेश की धार्मिक विविधता और लोक कला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत करने के इरादे से उठाया गया माना जा रहा है.
राष्ट्रीय शहीद स्मारक का चित्र 1971 के मुक्ति संग्राम में शहीद हुए लोगों को समर्पित है. नोटों में धरोहर स्थलों को प्रमुखता देकर देश की ऐतिहासिक पहचान को संजोने का प्रयास किया गया है.
बंगबंधु से विवादित प्रतीक तक
शेख मुजीबुर रहमान, जिन्हें 'बंगबंधु' यानी 'राष्ट्रपिता' कहा जाता है, लंबे समय तक बांग्लादेश की पहचान का केंद्र रहे हैं. वह बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के पिता थे, लेकिन हालिया घटनाओं में उनकी विरासत विवादों में घिर गई है.
कुछ महीने पहले देश में शेख हसीना की सरकार के खिलाफ छात्रों के नेतृत्व में हुए व्यापक विरोध प्रदर्शनों ने राजनीतिक हालात अस्थिर कर दिए. प्रदर्शनकारियों ने रहमान के पूर्व आवास और भित्तिचित्रों को नुकसान पहुंचाया। इन प्रदर्शनों के बाद हसीना भारत में शरण लेने को मजबूर हुईं.
शेख हसीना भारत में निर्वासित
77 वर्षीय शेख हसीना 5 अगस्त 2024 से भारत में रह रही हैं. उनकी 16 साल पुरानी अवामी लीग सरकार को छात्र आंदोलन और व्यापक असंतोष के चलते सत्ता से बेदखल कर दिया गया. अंतरिम सरकार ने अब बांग्लादेश की राष्ट्रीय पहचान और प्रतीकों को राजनीतिक प्रभाव से मुक्त करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं.
मुजीबुर रहमान की हत्या और विरासत
15 अगस्त 1975 को, सैन्य अधिकारियों ने एक तख्तापलट में शेख मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के अधिकतर सदस्यों की हत्या कर दी थी. उस समय उनकी बेटी शेख हसीना जर्मनी में थीं. रहमान की छवि एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में रही है, लेकिन हालिया राजनीतिक घटनाक्रमों ने उनकी विरासत को भी विवादों के घेरे में ला दिया है.
बता दें कि बांग्लादेश में नए करेंसी नोटों का यह बदलाव केवल आर्थिक नहीं, बल्कि राजनीतिक और सांस्कृतिक संदेश भी देता है. यह स्पष्ट संकेत है कि देश अब नए पहचान और नव दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा है, जिसमें व्यक्तिपूजा से हटकर विरासत, विविधता और एकता को महत्व दिया जा रहा है. आने वाले दिनों में यह देखना दिलचस्प होगा कि यह परिवर्तन बांग्लादेश की राष्ट्रीय राजनीति और सामाजिक संरचना को कैसे प्रभावित करता है.
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