पाकिस्तान में 2024 सबसे खतरनाक साल साबित हुआ. पाकिस्तान में आतंकवादी हमलों और सुरक्षा अभियानों में 2,546 लोगों की मौत हुई और 2,267 घायल हो गए. हालांकि, पाकिस्तानी सेना और उसकी मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने इन हत्याओं को छिपाने की पुरजोर कोशिश की, जिससे असली आंकड़े सार्वजनिक न हो पाएं.
आधिकारिक बनाम असली आंकड़े: बड़ा फर्क
ISPR के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, सिर्फ 95 सैनिकों की मौत हुई (45 पाकिस्तानी सेना के और 50 अन्य). जबकि, स्वतंत्र ओपन-सोर्स इंटेलिजेंस (OSINT) के अनुसार, साल भर में सैकड़ों सैनिकों ने अपनी जान गंवाई। पाकिस्तानी सेना का यह झूठा प्रचार पहली बार नहीं है. कारगिल युद्ध (1999) से लेकर विभिन्न आतंकवाद विरोधी अभियानों में सेना ने हमेशा अपने नुकसान को छिपाया है.
गुप्त मौतों का खुलासा
OSINT रिपोर्ट में वजीरिस्तान, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा और पाक-अफगान सीमा पर बड़ी संख्या में छिपाई गई मौतों का पता चला है।
प्रमुख घटनाएं और हताहतों की संख्या
कुर्रम और बन्नू हमला (जनवरी 2024)
- मेजर अहदिन और लांस नायक गुलाम मुस्तफा आतंकी हमले में मारे गए.
- बारूदी सुरंग विस्फोट और आतंकी घात में कई सैनिक मारे गए.
वजीरिस्तान और बलूचिस्तान में संघर्ष (फरवरी-मार्च 2024)
- नायक मोहम्मद रिजवान, हवलदार साबिर और नायक खुर्शीद जैसे कई सैनिकों की हत्या हुई.
- आतंकवादियों ने उत्तर और दक्षिण वजीरिस्तान में सेना पर हमला किया.
पाक-अफगान सीमा पर झड़पें (अप्रैल-मई 2024)
- कम से कम 8 पाकिस्तानी सैनिकों की सीमा पार गोलीबारी में मौत हो गई.
- क्वेटा और खैबर में आईईडी विस्फोट में कई सैनिकों की मौत हो गई.
बलूचिस्तान में विद्रोह (जून-जुलाई 2024)
- कलात, खुजदार और ग्वादर में आतंकवादी हमलों में दर्जनों सैनिकों की मौत हो गई.
- उच्च रैंकिंग अधिकारी लेफ्टिनेंट उजैर महमूद और सूबेदार तारिक इकबाल की भी मौत हो गई.
लक्षित हत्याएं और सीमा संघर्ष (अगस्त-दिसंबर 2024)
- वजीरिस्तान, बन्नू और कश्मीर में भी कई सैनिकों की मौत को ISPR ने छिपा लिया.
- सीमा पार गोलीबारी और लक्षित हत्याओं में सुरक्षा बलों को निशाना बनाया गया.
सच्चाई को छुपाने की परंपरा
पाकिस्तानी सेना द्वारा अपने नुकसान को छुपाने की रणनीति भी लंबे समय से चली आ रही है. इसका मकसद-
- सैनिकों का मनोबल बनाए रखना– असली मौतों का खुलासा करने से सैनिकों और जनता का भरोसा डगमगा सकता है.
- जनता को गुमराह करना– हताहतों की जानकारी देश में अस्थिरता की सच्चाई को उजागर कर सकती है.
- राजनीतिक प्रभाव– हताहत दर स्वीकार करने से सरकार की असफलताओं पर सवाल खड़े हो सकते हैं.
सैनिकों का अपमान और सच्चाई से परहेज
बता दें, पाकिस्तानी सेना का अपने सैनिकों की शहादत को नकारने का इतिहास कारगिल के समय से ही जारी है. आइएसपीआर शहीदों के हताहतों की जानकारी छिपाता है. ये शहीदों का अपमान है. अगर पाकिस्तान को अपनी स्थिति में सुधार करना है तो पारदर्शिता और जवाबदेही को अपनाना होगा.