जब भी कोई आरोपी जेल में बंद होता है किसी आरोप के चलते तो जैसे ही उसकी सजा पूरी होती है.
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उसकी जमानत होती है. लेकिन वहीं जमानत भी अलग अलग प्रकार की होती है.
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जिनका फर्क बहुत कम लोगों को पता होगा. वहीं जमानत में आपको जरूरत पड़ने पर अदालत में पेश होना पड़ता है
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इसके साथ ही एक राशि भी दी जाती है. कोई व्यक्ति गैर जमानती अपराध करता है.
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उसे दंड प्रकिया संहिता धारा 437 के तहत जमानत के लिए आवेदन करना पड़ता है.
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अंतरिम जमानत कोर्ट तब देता है जब रेगुलर बेल की एप्लीकेशन पर सुनवाई चल रही होती है.
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वहीं कोर्ट इस मामले में रेगुलर बेल या नियमित जमानत की मांग करता है. इस जमानत में समय लगता है.
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ऐसे में आरोपी को हिरासत में रहना पड़ता है. साथ ही आरोपी अंतरिम जमानत की मांग भी कर सकता है.
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जब किसी व्यक्ति को लगे कि उसे किसी ऐसे अपराध में फंसाया जा रहा है. जो उसने कभी किया ही नहीं है.
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तो वह अग्रिम जमानत की मांग कर सकता है.
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