बंगाली समाज में सिंदूर खेला की रस्म का खास महत्व है.

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पूरे साल मां दुर्गा साल एक ही बार अपने मायके आती हैं. वह अपने मायके में 10 दिनों तक रुकती हैं.

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इन्हीं 10 दिनों को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है.

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सिंदूर खेला की रस्म पश्चिम बंगाल में ही पहली बार शुरू हुई थी.

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लगभग 450 साल पहले बंगाल में दुर्गा विसर्जन से पहले सिंदूर खेला का त्योहार मनाया गया था.

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इस दिन पान के पत्तों से मां दुर्गा के गालों को स्पर्श करते हुए उनकी मांग और माथे पर सिंदूर लगाते हैं

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इस दिन महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं.

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इस त्योहार को मनाने के पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से मां दुर्गा उनके सुहाग की उम्र लंबी कर देती है.

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इस दिन मां को पान और मिठाइयों का भोग भी लगाया जाता है.

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ये भी माना जाता है कि भगवान इससे प्रसन्न होकर उन्हें सौभाग्य का वरदान देंगे.

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